भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
प्रेस विज्ञप्ति
10 अक्टूबर 2013
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करो!
क्रांतिकारी जनताना सरकार ही लुटेरी व्यवस्था का एक मात्र विकल्प है!
भ्रष्टाचारी, जनविरोधी, देशद्रोही व फासीवादी कांग्रेस और भाजपा को मार भगाओ!
आगामी 11 व 19 नवम्बर को छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनाव का मतलब यह तय करने का अवसर है कि शोषक-लुटेरों में से कौन-कौन से सदस्य आने वाले पांच सालों तक जनता को लूटेंगे और उसका दमन-उत्पीड़न करेंगे। लेकिन इसे ‘लोकतंत्र का पर्व’ बताकर जनता को गुमराह किया जा रहा है। साम्राज्यावाद-निर्देशित नीतियों को लागू करने में तथा सामंतवाद व दलाल नौकरशाह पूंजीपति वर्गों की सेवा करने में सबसे आगे रहने वाली कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों से अपने दिवालिएपन का भद्दा प्रदर्शन कर रही हैं। जहां भाजपा ने महीनों पहले से ‘विकास यात्रा’ के नाम पर चुनावी अभियान शुरू किया, वहीं लगातार दो बार हार चुकी कांग्रेस इस कोशिश में है कि किसी भी तरह इस बार सत्ता हथिया ली जाए। ‘परिवर्तन यात्रा’ के नाम से शुरू किए गए उसके चुनावी अभियान को झीरमघाटी हमले से झटका लगा था, लेकिन उसने दुबारा ‘बलिदानी माटी कलश यात्रा’ शुरू की ताकि जनता की ‘सहानुभूति’ को वोटों में तब्दील किया जा सके।
वहीं दूसरी ओर संशोधनवादी पार्टियां भाकपा, माकपा; खुद को दलित-बहुजनों का मसीहा बताने वाली बसपा; और एनसीपी, छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच, गोण्डवाना गणतंत्र पार्टी आदि अन्य चुनावी पार्टियां गठजोड़ बनाकर तीसरे मोर्चे के नाम से चुनावी दंगल में उतर रही हैं। पी.ए. संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी इस गठबंधन से अलग होकर लड़ रही है। ये सभी चुनावी पार्टियां वोट पाने के लिए जनता का ‘विकास’ ही अपना लक्ष्य बताते हुए दमघोंटू प्रचार मुहिम चला रही हैं।
सच तो यह है कि विगत 65 सालों के ‘स्वतंत्र’ शासन में अनेकों बार चुनाव हुए, कई सरकारें बदलीं परंतु आज भी रोटी, कपड़ा, मकान जैसी जनता की मूलभूत जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाईं। आज भी देश की शोषित जनता भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई, बीमारी, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं से दो चार है। देश की 77 प्रतिशत जनता रोज 20 रूपये से भी कम आय पर जीने को मजबूर है। वहीं अंबानी, टाटा, बिरला, मित्तल, वेदांता, जिन्दल आदि महज सौ कार्पोरेट घरानों की कुल सम्पत्ति देश के सकल घरेलू उत्पाद में एक चौथाई के बराबर बढ़ गई है। यानी गरीबों और अमीरों के बीच की खाई अकथनीय स्तर तक बढ़ी है। भ्रष्टाचार, घोटालों में बेहिसाब वृद्धि हुई है। इस वजह से देश में सामाजिक अशांति बढ़ती जा रही है।
इस दौरान संघर्ष के इलाकों के गांवों पर आक्रमण, तलाशी अभियान, गिरफ्तारियां, फर्जी मुठभेडे़ं लगातार जारी हैं। हजारों अतिरिक्त सशस्त्र बलों को तैनात करने की तैयारियां जारी हैं। गौरतलब है कि चुनावों को ‘निष्पक्ष’ और ‘स्वतंत्र’ रूप से संचालित करने के नाम पर यह यब हो रहा है। यानी ये चुनाव भी, खासकर संघर्षरत इलाकों में बंदूक की नोंक पर ही होंगे।
छत्तीसगढ़ की जनता पिछले दस सालों से हिंदू धर्माेन्मादी भाजपा के फासीवादी शासन को झेल रही है। अब वह नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करके और ज्यादा फासीवाद की ओर बढ़ने का संकेत दे रही है। अगर भाजपा फिर से सत्ता में आती है तो राज्य के अल्पसंख्यकों के लिए ही नहीं, बल्कि आदिवासी जनता के अस्तित्व और अस्मिता के लिए भी खतरा है। वहीं पिछले दस सालों से यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी ने देश को सभी क्षेत्रों में बर्बाद कर रखा है। 2जी स्प्रेक्ट्रम, कामनवेल्थ गेम्स, कोयला घोटाला जैसे कई महाघोटालों में लाखों करोड़ रुपयों के जनधन को डकार लिया। साम्राज्यवादियों के साथ ढेरों समझौते कर रखे हैं। दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों पर तेजी से अमल शुरू किया। उसने खुदरा क्षेत्र को पूरी तरह साम्राज्यवादी कम्पनियों के हवाले करने की नीतियां अपनाई हैं। वह सारी प्राकृतिक सम्पदाओं को कार्पोरेट संस्थाओं के हवाले कर देश को खोखला बना रही है। जनता को बड़े पैमाने पर विस्थापित करने की नीतियां अपना रही है। यह बात स्पष्ट है कि भाजपा और कांग्रेस में उतना ही फर्क है जितना कि नागनाथ और सांपनाथ में।
रमन सरकार ‘विकास’ का ढिंढोरा खूब पीट रही है। अनमोल प्राकृतिक सम्पदाओं, जिन पर जनता का जायज हक बनता है, को वह बड़े पूंजीपतियों और साम्र्राज्यवादियों को कौड़ियों में बेचते हुए ऐसा झूठा व भ्रामक प्रचार कर रही है। गरीब जनता को सस्ते में चावल, दाल, मुफ्त में नमक देने की योजना को अमल करने का श्रेय लेते हुए रमनसिंह खुद को ‘चऊंर वाले बाबा’ के रूप में महिमामंडित करवा रहे हैं। इस बहुप्रचारित योजना में भ्रष्टाचार का ही बोलबाला है। कार्पोरेट शोषण को आसान करने के लिए जारी सड़क निर्माण, बिजली संयंत्र जैसी परियोजनाओं को ही वो ‘जनता के विकास’ के रूप में दिखा रहे हैं।
वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जल्दबाजी दिखाते हुए ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून’ लाया है। दुनिया के 25 प्रतिशत भूखे लोग हमारे ही देश में हैं और इस कानून के द्वारा सरकार हर आदमी को महीने में सिर्फ 5 किलो चावल से पेट भर डालने का झूठा विश्वास दिला रही है। वास्तव में सरकारें इन योजनाओं को जनता पर प्रेम से नहीं, बल्कि साम्राज्यवाद-निर्देशित आर्थिक नीतियों के चलते जनता के दिलों में सुलग रहे गुस्से को ठंडा करने ला रही हैं।
किसानों के प्रति घोर लापरवाही बरती जा रही हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों को पूरा करते हुए वो किसानों की जिंदगी बर्बाद करने पर आमादा हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा संस्थाओं के साथ किए समझौतों के मुताबिक कृषि क्षेत्र को धीरे-धीरे कार्पोरेट घरानों के हवाले करना ही उसका लक्ष्य है। वर्ष 2000 से 2011 के बीच प्रदेश में 14,340 किसानों ने खुदकुशी कर ली। ‘धान का कटोरा’ कहलाने वाले छत्तीसगढ़ में किसान का जीना ही मुश्किल हो गया।
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों को कार्पोरेट कम्पनियों के हवाले कर शोषित जनता को धीरे-धीरे इन सुविधाओं से दूर ही धकेला जा रहा है। सरकारी स्कूलें शिक्षकों की कमी, सुविधाओं और सुरक्षा का अभाव आदि समस्याओं से जूझ रही हैं। सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के रिक्त पदों की भर्ती नहीं हो रही है। ‘स्मार्ट कार्ड’ के जरिए गरीबों का मुफ्त में इलाज के बहाने दरअसल कार्पोरेट अस्पतालों के मालिकों से सांठगांठ कर भारी भ्रष्टाचार कर रही है। जहां एक ओर सरकार यह ढिंढ़ोरा पीट रही है कि प्रदेश में बिजली का अतिरिक्त उत्पादन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर लोवोल्टेज की समस्या ने किसानों के नाक में दम कर दिया है। राज्य में मजदूरों को आज भी 10 से 12 घण्टे तक काम करना पड़ रहा है। न्यूनतम वेतन कानून की हर ओर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। बोनस, बीमा, छुट्टी आदि न्यूनतम श्रम कानूनों का भी खुल्लमखुल्ला उल्लंघन हो रहा है। मालिकों और प्रबंधन की आपराधिक लापरवाही के चलते दर्जनों की संख्या में मजदूर मारे जा रहे हैं।
आदिवासी इलाकों में संविधान की पांचवीं अनुसूची, पेसा आदि कानूनों का घोर उल्लंघन हो रहा है। बंदूक की नोंक पर ग्रामसभाओं का आयोजन कर जनता को जबरन जमीन अधिग्रहण के लिए राजी किया जा रहा है। हाल में संसद द्वारा पारित जमीन अधिग्रहण कानून भी जनता से बड़े पैमाने पर जमीनें छीनकर कार्पोरेट वर्गों के हवाले करने की नीयत से ही बनाया गया है। जल-जंगल-जमीन के मुद्दे पर आंदोलन करने वाले लोगों को झूठे केसों में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है।
शिक्षाकर्मियों, शिक्षकों, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों, पंचायत सचिवों, वन विभाग के कर्मचारियों, पटवारियों, आंगनवाड़ी - हर विभाग के कर्मचारियों ने रमन सरकार की कर्मचारी-विरोधी नीतियों से तंग आकर कई बार हड़तालें कीं। हालंाकि सरकार ने हर हड़ताल का जवाब दमन से ही दिया। महिलाओं की प्रताड़ना में रमन सरकार सबसे आगे रही। सोनी सोड़ी पर अमानवीय अत्याचार के लिए जिम्मेदार एस.पी. अंकित गर्ग को देश की पहली महिला राष्ट्रपति के हाथों ‘वीरता पुरस्कार’ दिलवाया गया। मीना खल्खो को बलात्कार कर कत्ल करने वाले खाकीवर्दीधारी आज भी बिंदास घूम रहे हैं। और झलियामारी काण्ड ने तो खासकर आदिवासी छात्राओं के प्रति सरकार की आपराधिक लापरवाही को उजागर किया है। इधर क्रांतिकारी आंदोलन वाले इलाकों में तैनात सशस्त्र बलों द्वारा महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों और जुल्मों का हिसाब ही नहीं है।
कार्पोरेट मीडिया गढ़ी गई ‘स्वच्छ छवि’ के विपरीत रमन सरकार कई भ्रष्टाचार-घोटालों में लिप्त रही। कोयला घोटाले में सरकारी खजाने को एक हजार करोड़ रुपए की सेंध लगी थी। नियमों के खिलाफ कोयला खण्डों का आवंटन, प्रास्पेक्टिंग लाइसेंस जारी करना, इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाला, तेंदुपत्ता ठेकेदारों से सैकड़ों करोड़ रुपए की रिश्वत लेना आदि कई घोटाले एक के बाद एक सामने आए। इन दस सालों में ऐसे कई घोटाले उजागर हुए और कई अन्य को दबा दिया गया।
भाजपा सरकार ने जनता पर, खासकर आदिवासियों पर बेहद अमानवीय दमन का प्रयोग किया। 2005 में उसने केन्द्र की यूपीए सरकार के सहयोग से ‘सलवा जुडूम’ के नाम से बर्बर दमन अभियान चलाया था। हालांकि इस फासीवादी हमले का उत्पीड़ित जनता ने हमारी पार्टी और पीएलजीए के नेतृत्व में वीरतापूर्वक प्रतिरोध कर उसे परास्त कर दिया। उसके बाद 2009 के मध्य से केन्द्र सरकार की अगुवाई में विभिन्न राज्य सरकारों ने मिलकर क्रांतिकारी आंदोलन पर आपरेशन ग्रीनहंट के नाम से एक देशव्यापी हमला शुरू किया। इसके अंतर्गत जनता पर युद्ध और ज्यादा तीखा हो गया। दक्ष़्िाण बस्तर के सिंगारम में 17 आदिवासियों के खून की होली के साथ भाजपा ने अपने शासन की दूसरी पारी का ‘शुभारंभ’ किया। उसके बाद 2009 से सामूहिक हत्याकाण्डों का जैसे सिलसिला ही चल पड़ा। कार्पेट सेक्यूरिटी के तहत समूचे दण्डकारण्य क्षेत्र को सैन्य छावनी में तब्दील किया गया। छत्तीसगढ़ के जेलों के अंदर तीन हजार से ज्यादा आदिवासी कैद हैं। जेलों में हालात इतने अमानवीय हैं कि सही खाना और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में कई लोग बेमौत मारे जा रहे हैं।
अपने जन विरोधी, फासीवादी, देशद्रोही, भ्रष्टचारी और दमनकारी चेहरे पर मुस्कान चिपकाकर कांग्रेस और भाजपा के नेता वोटों की भीख मांगने हाथ जोड़ते हुए जनता के सामने आ रहे हैं। अन्य तमाम राजनीतिक पार्टियां भी जनता को छलने के प्रयासों में जुटी हुई हैं।
चुनाव बहिष्कार क्यों?
जनता की वास्तविक समस्याएं संसद और विधानसभाओं में कभी भी चर्चा का विषय नहीं बन सकती हैं। संसद-विधानसभाओं पर साम्राज्यवादियों, दलाल बड़े व्यापारिक घरानों, बड़े जमींदारों, ठेकेदारों और माफियाओं का नियंत्रण है। चुनाव की व्यवस्था एक बड़ा झूठ है और जनता को इस खर्चीले उत्सव की कोई जरूरत नहीं है। ऐसी व्यवस्था को लोकतंत्र कतई नहीं कहा जा सकता जहां वोटों को शराब और पैसे से, धर्म और जातिगत भावनाओं के नाम पर खरीदा जाता है। जब अपराधी, डकैत और कुख्यात भ्रष्ट राजनेता चुनाव जीत सकते हैं और जब वोट बंदूक की ताकत एवं बूथ कब्जाने के आधार पर पाये जाते हैं तब इसे लोकतंत्र कहना बेहद हास्यास्पद होगा। इसीलिए हमारी पार्टी संसदीय व्यवस्था के बहिष्कार का आह्वान करती है। क्योंकि संसदीय संस्थाएं भ्रम पैदा करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकतीं। दरअसल वोट देना और नहीं देना दोनों भी जनता के जनवादी अधिकार हैं। इसलिए चुनाव बहिष्कार हमारा जायज अधिकार भी है।
हमारी अपील
चुनाव के जरिए वर्तमान शोषणकारी व्यवस्था खत्म नहीं होगी। जनता की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति भी नहीं होगी। वर्तमान व्यवस्था को जड़ से बदलने से ही यह संभव होगा। हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि जनता को सच्चे लोकतंत्र और आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने का कार्यक्रम किसी भी शोषक पार्टी के पास नहीं है, सिर्फ और सिर्फ क्रांतिकारी जनताना सरकार के पास ही है। हम छत्तीसगढ़ के तमाम लोगों से अपील करते हैं कि वे इन ढोंगी चुनावों का बहिष्कार करें और दण्डकारण्य समेत देश के विभिन्न इलाकों में आकार ले रही जनता की जनवादी हुकूमत, यानी क्रांतिकारी जनताना सरकार का स्वागत करें और उसके समर्थन में उठ खड़े हों।
(गुड्सा उसेण्डी)
प्रवक्ता
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)