भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
प्रेस
विज्ञप्ति
7 अप्रैल
2013
श्रमिक नेता वीरेन्द्र कुर्रे और अन्य मजदूरों की गिरफ्तारी का विरोध करो!
जनता के पक्ष
में काम करने वालों
या बोलने वालों पर हमला
छत्तीसगढ़
सरकार के लिए
कोई नई बात
नहीं है। उन्हें प्रताड़ित
करना और झूठे
केसों में फंसाकर जेलों में बंद करना
उसकी चिर परिचित नीति है। अब तक
छत्तीसगढ़
पुलिस मानवाधिकार
कार्यकर्ता
डॉक्टर
बिनायक
सेन, पत्रिका
सम्पादक
असित सेनगुप्ता,
स्वतंत्र
पत्रकार
प्रफुल्ल
झा, आदिवासी शिक्षिका
सोनी सोड़ी, युवा आदिवासी
पत्रकार
लिंगाराम
कोड़ोपी
समेत कई अन्य
लोगों पर जन
सुरक्षा
अधिनियम
के तहत कार्रवाई
कर चुकी है।
अब उस कड़ी
में वीरेन्द्र
कुर्रे
का नाम जुड़
चुका है।
वीरेन्द्र
कुर्रे
का दोष यह
था कि उन्होंने
दुर्ग जिले के मलपुरी
गांव में जेके लक्ष्मी
सीमेंट
के निर्माणाधीन
संयत्र
के खिलाफ ‘संग्रामी श्रमिक संघ’ के बैनर
तले प्रदर्शन
कर रहे मजदूरों
का नेतृत्व किया था। जेके लक्ष्मी
सीमेेंट
के मालिकों ने अपने
दलालों
के माध्यम से वर्ष
2004-05 में कृषि प्रयोजन
के नाम से
मलपुरी
गांव में 12 सौ एकड़
जमीन खरीदी थी। बड़े पैमाने
पर सब्जियां उगाए जाने और उसमें
स्थानीय
लोगों को रोजगार
मिलने के वादों
से ग्रामीण अपनी जमीनें बेचने तैयार हुए थे। एक-डेढ़ साल तक
सब्जियां
उगाई भी गईं।
बाद में एक-एक
कर सभी मजदूरों
को हटाया गया। कम्पनी
मालिकों
ने उस जमीन
पर सीमेंट संयंत्र
का निर्माण कार्य शुरू कर दिया।
जनता सीमेंट संयंत्र
का विरोध कर रही
थी क्योंकि यह सरासर
धोखा है। इस सिलसिले
में 4 अप्रैल
2013 के दिन ग्रामीण संयंत्र
के पिछले दरवाजे के पास
पंडाल में नारेबाजी कर रहे
थे। उसी दिन शाम
को संयंत्र के एक
हिस्से
में आग लगी
थी। मालिकों
का आरोप है
कि आग ग्रामीणों
ने लगाई। ग्रामीणों का कहना
है कि आग
उन्होंने
नहीं लगाई। लेकिन पुलिस ने इस
मामले में गांव के
37 लोगों को गिरफ्तार
किया और 10 महिलाओं को भी
बलवा करने के आरोप
में हिरासत में ले लिया।
वीरेन्द्र
कुर्रे
पर जन सुरक्षा
अधिनियम
के तहत कार्रवाई
की गई। पुलिस
ने वीरेन्द्र कुर्रे को माओवादी
बताया है। पुलिस को उनके
घर से सबूत
के तौर पर
रंग खेलने वाली पिचकारी,
गुलेल, कुछ कीलें, दीपावली में रंग छोड़ने
वाले पटाखे और माओवादी
साहित्य
व एक
रजिस्टर
मिला था जिसमें
कुछ कामों के विवरण
थे। गौरतलब है कि
डाक्टर
बिनायक
सेन के मामले
की सुनवाई के दौरान
15 अप्रैल
2011 को सुप्रीम
कोर्ट ने इसी
छत्तीसगढ़
सरकार को फटकार
लगाते हुए यह टिप्पणी
की थी कि
किसी के घर
में माओवादी
साहित्य
होने पर कोई
माओवादी
नहीं हो सकता,
ठीक वैसे ही जैसे
गांधी की किताब
रखने पर कोई
गांधीवादी
नहीं हो सकता।
लेकिन छत्तीसगढ़
सरकार की नजरों
में उसकी नीतियों
की खिलाफत करने वाला हर शख़्स
माओवादी
ही है। वैसे
अदालती
फैसलों
की अवहेलना करना भी उसके
लिए कोई नई बात
भी नहीं है।
वीरेन्द्र
कुर्रे
राज्य के प्रमुख
युवा श्रमिक नेता रहे हैं। वे
1996 में भिलाई इस्पात संयंत्र
में श्रमिक की नौकरी
पर नियुक्त हुए थे। बताया
जाता है कि
वे प्रसिद्ध मजदूर नेता शंकरगुहा
नियोगी
की विचारधारा से प्रभावित
होकर इस्पात संयंत्र
में श्रमिक कार्यकर्ता
के रूप में
लोकप्रिय
हो गए। भिलाई
स्टील प्लांट के नियमित
कर्मचारियों,
ठेका मजदूरों,
अनुकम्पा
नियुक्तियों
के पात्र आश्रितों, ट्रेड अप्रेंटिस
किए हुए बेरोजगारों
की जायज मांगों
को लेकर वीरेन्द्र
कई आन्दोलनों का नेतृत्व
कर चुके थे।
वीरेन्द्र
की सक्रियता से नाराज
प्रबंधन
उनका तबादला कम्पनी की तमिलनाडु
इकाई में कर चुका
था। तबादले पर असहमति
जताने पर उन्हें
नौकरी से बर्खास्त
कर दिया गया।
अपनी बर्खास्तगी
के दौरान उन्होंने दुर्ग में विवेकानन्द
तकनीकी
विश्वविद्यालय
के छात्र आन्दोलन का नेतृत्व
किया था। वर्तमान में मलपुरी जेके लक्ष्मी
सीमेंट
संयत्र
का विरोध कर रहे
मजदूरों
के पक्ष में
वीरेन्द्र
खड़े थे।
वीरेन्द्र
कुर्रे
पर पुलिसिया कार्रवाई
एक सोची-समझी
साजिश का ही
हिस्सा
है। सरकार ने मलपुरी
सीमेंट
फैक्टरी
के खिलाफ आन्दोलन कर रहे
वीरेन्द्र
पर जन सुरक्षा
अधिनियम
के तहत कार्रवाई
करके यह संदेश
देना चाह रही है
कि राज्य में जहां
कहीं भी निजी
फैक्टरियों
के लिए कथित
तौर पर बनाई
गई भू-अधिग्रहण,
पुनर्वास
और रोजगार नीति के खिलाफ
आन्दोलन
होगा वहां ऐसे ही हंथकंडों
को अपनाकर विरोध को दबा
दिया जाएगा। यानी राज्य में बड़े पूंजीपतियों
के हितों को जरा
भी आंच आएगी
तो उसे बर्दाश्त
नहीं की जाएगी।
भारत की कम्युनिस्ट
पार्टी
(माओवादी)
की दण्डकारण्य
स्पेशल
जोनल कमेटी मजदूर नेता वीरेन्द्र
कुर्रे
की गिरफ्तारी की कड़ी
निंदा करती है। छत्तीसगढ़ की भाजपा
सरकार माओवादी
संघर्ष
वाले इलाकों में अपने अधिकारों
के लिए लड़ने
वाले आदिवासियों
को और शहरी
इलाकों
में अन्याय व शोषण
के खिलाफ आवाज उठाने
वाले मजदूरों
और अन्य लोगों
को ‘इनामी नक्सली’, ‘माओवादी’
या ‘माओवादी समर्थक’ बताकर जेलों में बंद कर
रही है। यह दरअसल
जनता के जायज
व लोकतांत्रिक
अधिकारों
का गला घोंटने
वाला फासीवादी
तरीका ही है।
हम मजदूरों, किसानों,
छात्र-बुद्धिजीवियों,
लेखकों,
कलाकारों
और पत्रकारों
- तमाम प्रगतिशील,
जनवादी
व देशभक्त
संगठनों
तथा लोगों से अपील
करते हैं कि वे
मजदूर नेता वीरेन्द्र
कुर्रे
और अन्य ग्रामीणों
की गिरफ्तारी की निंदा
करें; उन्हें बिना शर्त रिहा करने की मांग
करें; तथा छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा
कानून को रद्द
करने हेतु संघर्ष करें।
(गुड्सा उसेण्डी)
प्रवक्ता,
दण्डकारण्य
स्पेशल
जोनल
कमेटी
भारत
की
कम्युनिस्ट
पार्टी
(माओवादी)