भारत की कम्युनिस्ट
पार्टी (माओवादी)
केन्द्रीय
कमेटी
प्रेस विज्ञप्ति
13 फरवरी
2013
अफजल गुरू
की फांसी की निंदा
करो!
भारतीय राजसत्ता
खुद ही सबसे बड़ा
आतंकवादी है,
जन आंदोलन
कार्यकर्ता, राष्ट्रीय
मुक्ति आंदोलनकारी
और क्रांतिकारी
नहीं!
खुद
को दुनिया का सबसे
बड़ा लोकतंत्र
बताने वाली भारतीय
राजसत्ता ने 9 फरवरी
2013 को दिल्ली के तिहाड़
जेल में अफजल गुरू
को बेहद गोपनीय
तरीके से फांसी
दी। 13 दिसम्बर 2001
में भारत की संसद
पर हुए हमले में
सहयोग करने के
आरोप में गिरफ्तार
अफजल को खुद को
बेकसूर साबित करने
का मौका न देते
हुए, यहां तक कि
उन्हें अपनी इच्छा
से वकील नियुक्त
करने का मौका भी
न देकर भारत की
सर्वोच्च अदालत
ने ‘समाज के सामूहिक
विवेक को संतुष्ट
करने’ के लिए 2005 में
फांसी की सजा मुकर्रर
की थी। संसद पर
हुए हमले के सूत्रधार
कौन थे, इसके पीछे
साजिश क्या थी,
इस पर निष्पक्ष
जांच किए बिना
ही इस मामले में
कश्मीरी राष्ट्रीय
मुक्ति आंदोलन
के कार्यकर्ताओं
और समर्थकों को
साजिशाना ढंग से
फंसाया गया था।
9/11 हमलों
के बाद अमेरिका
द्वारा छेड़े गए
‘आतंकवाद पर भूमण्डलीय
जंग’ के तहत भारतीय
राजसत्ता ने राष्ट्रीय
मुक्ति संगठनों
तथा क्रांतिकारी
संगठनों को आतंकवादी
बताते हुए कार्पोरेट
मीडिया के जरिए
बड़े पैमाने पर
प्रचार शुरू कर
रखा है। देश की
जनता का ध्यान
उसकी फौरी और बुनियादी
समस्याओं से हटाकर
इस भावना को कि
‘आतंकवाद’ ही सबसे
बड़ा खतरा है, हर
तरफ फैलाया जा
रहा है। कश्मीर
और देश के सभी राज्यों
में कांग्रेस व
भाजपा की सरकारों
तथा संघ गिरोह
से जुड़ी विभिन्न
हिंदू धर्मोन्मादी
ताकतों द्वारा
इस्लामिक आतंकवादियों
के बहाने मुसलमानों
पर सालों से जारी
फासीवादी हत्याकाण्डों,
अत्याचारों, यातनाओं,
जेल की सजाओं और
अमानवीय भेदभाव
के चलते मुस्लिम
जनता बेहद गुस्से
में है। कुछ मुसलमान
इसका अपने ढंग
से प्रतिरोध कर
रहे हैं। इसके
एक रूप के बतौर
कुछ अवांछित विध्वंसकारी
हमले भी हो रहे
हैं। इसकी पूरी
जिम्मेदारी शासक
वर्गों और हिंदू
धर्मोन्मादी ताकतों
की ही है। उसी समय,
भारत सरकार की
खुफिया संस्थाएं,
अमेरिकी खुफिया
संगठन और हिंदू
धार्मिक कट्टरपंथी
संघ गिरोह से जुड़े
संगठन देश के कई
हिस्सों में षड़यंत्रपूर्ण
ढंग से बम हमलों
और विध्वंसकारी
कार्रवाइयों को
अंजाम दे रहे हैं।
सरकार और उसके
सुर में सुर मिलाने
वाली मीडिया द्वारा
इन सभी मामलों
में बेकसूर मुसलमानों
और राष्ट्रीय मुक्ति
संगठनों को दोषी
बताया जा रहा है।
उन्हें फर्जी मामलों
में फंसाया जा
रहा है। भारतीय
राजसत्ता का मकसद
यह है कि इस बहाने
जनता के सभी जायज
आंदोलनों को कुचल
दिया जाए। इसी
साजिश का हिस्सा
है संसद पर नाटकीय
ढंग से हुआ हमला।
कांग्रेस
के नेतृत्व वाली
यूपीए सरकार ने,
जो अफजल गुरू की
फांसी को टालते
आ रही थी, अगले साल
आने वाले चुनावों
को नजर में रखकर
ही इस तरह अचानक
उसे फांसी पर चढ़ा
दिया ताकि भाजपा
को मात देकर खुद
को ‘आतंकवाद’ पर
चैम्पियन साबित
किया जा सके। इस
क्रम में उसने
अपनी ही न्यायप्रणाली
के कई नियमों का
खुला उल्लंघन किया।
माफी की अपील को
राष्ट्रपति द्वारा
नकार दिए जाने
के बारे में उसके
परिवार को न बताकर,
उसे आखिरी बार
अपने परिवारजनों
से मिलने का मौका
तक न देकर, कश्मीर
की समूची वादी
में पहले से कफ्र्यू
लगाकर इस कायराना
करतूत को अंजाम
दिया। यहां तक
कि अफजल का शव भी
उनके परिवार को
न सौम्पकर - ठीक
उसी तरह जिस तरह
विश्व का सबसे
बड़ा आतंकवादी
अमेरिका ने ओसामा
बिन लादेन की लाश
को समुद्र में
गिरा दिया था - जेल
के ही अंदर दफनाकर
बेहद अमानवीयता
बरती।
अफजल
गुरू को फांसी
देकर भारत सरकार
ने कश्मीरियों
समेत भारत के तमाम
जनवादपंसद अवाम
की मनोभावनाओं
को बुरी तरह आहत
कर दिया। हकीकत
यह है कि अब तक 80 हजार
से ज्यादा कश्मीरियों
का कत्लेआम करने
और 7 लाख सशस्त्र
बलों के साथ समूची
वादी को सैन्य
छावनी में तब्दील
करने के बावजूद
कश्मीरी कौम के
अंदर आजादी की
तमन्ना खत्म नहीं
हुई है। भारत सरकार
दिवास्वप्न देख
रही है कि अफजल
गुरू को फांसी
देकर वह कश्मीरी
जनता के लड़ाकू
जज़्बे पर पानी
फेर सकेगी। अपनी
रष्ट्रीयता की
मुक्ति के लिए,
आजादी के लिए कश्मीरी
अवाम दशकों से
जो संघर्ष कर रहा
है वह पूरी तरह
जायज है। कई उतार-चढ़ावों
के बावजूद यह संघर्ष
अलग-अलग रूपों
में आज भी जारी
है जो कई मौकों
पर विस्फोटक रूप
भी धारण कर रहा
है। भारत के फासीवादी
शासकों की इस तरह
की अमानवीय करतूतों
से कश्मीरियों
के दिलों में नफरत
ही बढ़ेगी। उन्हें
हमेशा के लिए दबाकर
रखना नामुमकिन
है।
इस फासीवादी
कार्रवाई की भारत
की कम्युनिस्ट
पार्टी (माओवादी)
कड़ी निंदा करती
है। और यह चेतावनी
देती है कि इस तरह
की करतूतों के
जरिए शोषित जनता
और राष्ट्रीयताओं
के आंदोलनों का
दमन कर पाने का
जो सपना शासक वर्ग
पाले हुए हैं वह
नाकाम होकर ही
रहेगा। कश्मीर
सिर्फ कश्मीरियों
का है। उस पर न तो
भारत को अधिकार
है, न ही पाकिस्तान
को। कश्मीरी जनता
के राष्ट्रीय मुक्ति
आंदोलन का हमारी
पार्टी पूरी तरह
समर्थन करती है।
देश को राष्ट्रीयताओं
के कैदखाने में
तब्दील किए हुए
बड़े दलाल नौकरशाह
पूंजीपति व सामंती
शासक वर्गों और
उनका नेतृत्व करने
वाले साम्राज्यवादियों
के खिलाफ देश के
मजदूरों, किसानों,
छात्रों, नौजवानों,
दलितों, आदिवासियों,
धार्मिक अल्पसंख्यकों,
महिलाओं, व्यापारियों....
समूची शोषित जनता
और उत्पीडि़त राष्ट्रीयताओं
को एकजुटता के
साथ लड़ना चाहिए।
भारत की नई जनवादी
राजसत्ता, जो मजदूरों,
किसानों, निम्न
और राष्ट्रीय पूंजीपतियों
के संयुक्त मोर्चे
के रूप में होगी,
के गठन के लिए जारी
संघर्ष के साथ
कंधे से कंधा मिलाकर
चलने से ही राष्ट्रीयताएं
अलग होने का अधिकार
समेत आत्मनिर्णय
का अधिकार हासिल
कर सकेंगी। समूची
उत्पीडि़त जनता
हर किस्म के शोषण
और उत्पीड़न से
मुक्ति पा सकेगी।
(अभय)
प्रवक्ता
केन्द्रीय कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट
पार्टी (माओवादी)