भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)

दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी

प्रेस विज्ञप्ति

10 जून 2012

28 जुलाई से 3 अगस्त तक शहीद सप्ताह सफल बनाओ!

हमारी पार्टी के संस्थापक नेता महान शिक्षक

कामरेड्स चारू मजुमदार और कन्हाई चटर्जी को लाल जोहार!

कामरेड्स रामजी, श्रीकांत, शेषन्ना, सुनीता, रणिता, सुक्कू, महेश, मंगली, पाकलू, प्रमोद और शिवाजी समेत हजारों शहीदों के सपनों को साकार बनाने का संकल्प पक्का करो!

भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में 28 जुलाई का दिन खासा महत्व रखता है। भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन में दशकों से जड़ें जमाने वाले संशोधनवाद की कमर तोड़कर दीर्घकालीन जनयुद्ध को भारतीय क्रांति की लाइन के रूप में निर्देशित करने वाले कामरेड्स चारू मजुमदार और कन्हाई चटर्जी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के संस्थापक नेताओं के रूप में इतिहास में दर्ज हो गए। इनमें कामरेड चारू मजुमदार की मृत्यु ठीक इसी दिन 1972 को हुई थी जोकि पुलिसिया यातनाओं का शिकार हुए थे। इन कामरेडों द्वारा निर्देशित पथ पर भारतीय क्रांति पिछले 45 सालों से कई उतार-चढ़ावों, पराजयों और पश्चगमनों से गुजरते हुए भी अनवरत आगे बढ़ रही है। एक इलाके में अस्थाई तौर पर पीछे कदम डालने पर भी वह दूसरे इलाके में मजबूत होते जा रही है जिससे आज वह देश भर की उत्पीड़ित जनता के लिए आशा की किरण बनी हुई है। इन 45 सालों के रक्तरंजित इतिहास में करीब 15 हजार शहीदों की कुरबानियां छिपी हुई हैं। इन कुरबानियों का नतीजा ही है कि आज क्रांतिकारी आंदोलननक्सलबाड़ी एक ही रास्ताका नारा बुलंद रखते हुए आधार इलाकों की स्थापना के लक्ष्य से, इलाकावार राजसत्ता छीन लेने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। 28 जुलाई वह दिन है जब हम इन तमाम शहीदों की कुरबानियों का स्मरण करते हुए लक्ष्य को हासिल करने का अपना संकल्प दोहराते हैं।

पिछले एक साल के दौरान देश भर में करीब 150 साथी शहीद हुए हैं। इनमें दण्डकारण्य के 40 से ज्यादा साथी शामिल हैं। देश भर में शहीद होने वाले साथियों में पार्टी की उच्च कमेटियों के नेताओं से लेकर आम सदस्य, पीएलजीए के कमाण्डर और योद्धा, जन संगठन कार्यकर्ता, क्रांतिकारी जनताना सरकार प्रतिनिधि और आम लोग तक शामिल हैं। इनमें से अत्यधिक लोगों की मृत्यु सरकारी सशस्त्र बलों द्वारा की गई फर्जी मुठभेड़ों में हुई थी, जबकि कुछ अन्य साथियों ने दुश्मन के बलों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर किया है। कुछ अन्य साथी बीमारियों और अन्य हादसों के चलते शहीद हुए हैं। आइए, 28 जुलाई के इस मौके पर इन तमाम शहीदों को याद करते हुए यह शपथ लें कि उनके सपनों के नव भारत के निर्माण के लिए अथक परिश्रम करेंगे जिसमें शोषण उत्पीड़न के लिए कोई जगह हो।

24 नवम्बर 2011 को पश्चिम बंगाल के बुरिशोल जंगलों में पुलिस अर्धसैनिक बलों ने एक कोवर्ट आपरेशन के तहत पार्टी के पोलिटब्यूरो सदस्य शोषित जनता के जुझारू नेता कामरेड मल्लोजुला कोटेश्वरलु (रामजी) की बेहद अमानवीय तरीके से हत्या की। उन्होंने पिछले करीब 38 सालों से क्रांतिकारी आंदोलन के एक अहम नेता के तौर पर देश के विभिन्न इलाकों में कई जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। उन्होंने उन दिनों की जगित्याल जैत्रयात्रा से लेकर जंगलमहल जन विद्रोह तक कई जन आंदोलनों का प्रत्यक्ष नेतृत्व किया। 1987 से 93 तक उन्होंने दण्डकारण्य आंदोलन का प्रत्यक्ष नेतृत्व किया था। दुश्मन ने उनकी हत्या के लिए कई साजिशें रचकर आखिरकार सफलता हासिल की। कामरेड रामजी की स्फूर्तिभावना को आत्मसात करते हुए जनआंदोलनों तथा जनयुद्ध को तेज कर हम उन जैसे अनगिनत वीरों को पैदा कर सकेंगे।

दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सदस्य कामरेड हरक (श्रीकांत) 26 फरवरी 2012 को गंभीर अस्वस्थता के चलते शहीद हुए थे। कामरेड हरक 1993 से पार्टी में काम करने लगे थे। 1998 से उन्होंने गढ़चिरोली जिले में क्रांतिकारी आंदोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी लेकर काम करते हुए जनता और कैडरों में लोकप्रिय बन गए। दिल की बीमारी से पीड़ित होकर भी उन्होंने जनता के बीच दृढ़तापूर्वक काम किया। आखिरकर जनता के बीच ही अंतिम सांस लेकर खुद को सच्चे जन सेवक साबित किया। उनकी राह पर दृढ़ता से चलकर हम क्रांति के हजारों, लाखों वारिस तैयार कर सकेंगे।

उत्तरी तेलंगाना क्षेत्र के आंदोलन ने 18 मार्च को एक और महान नेता खो दिया। स्पेशल जोनल कमेटी सदस्य कामरेड गुण्डेटि शंकर (शेषन्ना) सांप काटने से शहीद हुए थे। क्रांति का मतलब प्रीति-भोज नहीं है। वह कई खतरों, मुश्किलों, परेशानियों, दबावों और रक्तपात से भरा कठोर वर्ग संघर्ष है। कामरेड शेषन्ना पिछले करीब तीस सालों से क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए स्थिरता और दृढ़ता से काम करने वाले जन नेता थे। तेलंगाना की धरती, जोकि क्रांति का ऐतिहासिक गढ़ रहा है, शेषन्ना जैसे अनगिनत वीरों को पैदा करते ही रहेगी।

18 मार्च को ही वरिष्ठ पार्टी कार्यकर्ता कामरेड स्वरूपा (सुनीता) की स्तन कैंसर के चलते मृत्यु हो गई। वे पिछले तीस सालों से क्रांति का परचम ऊंचा उठाए रखने वाली आदर्शवान कम्युनिस्ट थीं। आखिरी सांस तक आंदोलन में दृढ़ता से खड़ी इस वीर नारी की जीवनी आज की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर रहेगी।

20 अगस्त 2011 को गढ़चिरोली जिले का माकड़चुव्वा गांव वर्तमान इतिहास में एक अभूतपूर्व कारनामे का साक्षी बना। कामरेड रामको हिच्चामी (रनिता) अकेली ही सैकड़ों शत्रु-बलों के चक्रव्यूह में फंसने के बावजूद अपने अदम्य साहस से एक नया अध्याय जोड़ दिया। इस वीरांगना ने तीन कोबरा/सी-60 कमाण्डों का सफाया कर चार अन्य को बुरी तरह घायल किया। कामरेड रनिता की कुरबानी और बहादुरी जन मुक्ति गुरिल्लों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनकर रहेंगी।

27 जनवरी 2012 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में दुश्मन के साथ हुई लड़ाई में डीवीसीएम कामरेड मंगू पद्दाम (सुक्कू) शहीद हुए थे। ग्राम नेतानार के नजदीक पीएलजीए द्वारा शत्रु-बलों पर 11 अक्टूबर 2011 को किए गए ऐम्बुश में कांगेरघाटी एलजीएस कामरेड महेश ने अपनी शौर्यपूर्ण शहादत दी। 16 अगस्त 2011 को पूर्व बस्तर के तिरकानार में शत्रु-बलों ने घर में आग लगाकर हमारे तीन साथी बदरू, गोपि और आकाश की अमानवीय हत्या कर दी। 26 मार्च 2012 को भेज्जी के नजदीक पीएलजीए द्वारा किए गए ऐम्बुश में कामरेड्स पाकलू और मंगली दुश्मन के साथ लड़ते हुए शहीद हुए थे।

16 मई 2012 कोभारत बंदके मौके पर भैरमगढ़ के पास दुश्मन द्वारा किए गए हमले में कम्पनी-9 के पीपीसी सदस्य कामरेड शिवाजी शहादत को प्राप्त हुए। पश्चिम बस्तर एक्शन टीम कमाण्डर कामरेड प्रमोद जन दुश्मन राजकुमार तामो का सफाया करने के प्रयास में शहीद हो गए। नेशनलपार्क इलाके में एसी सदस्य कामरेड गोविंद सांप काटने से शहीद हुए। और भी कई साथी दुश्मन के साथ लड़ते हुए और दुश्मन की पाशविकता का शिकार होकर शहीद हुए। मड़कामी मासा, पोड़ियामी मासा, नेगी यादव, डुंगा धुरवा समेत कई अन्य निहत्थे लोग भी पुलिस अर्धसैनिक बलों की मनमानी हिंसा और फर्जी मुठभेड़ों का शिकार बन गए।

प्यारे लोगो! साथियो! आज शासक वर्गों ने देश भर में माओवादी आंदोलन का सफाया करने की मंशा से एक क्रूर युद्ध छेड़ रखा है जिसका नाम आपरेशन ग्रीन हंट रखा गया है। इस युद्ध में लाखों अर्धसैनिक बलों के अलावा अब सेना को भी तैनात करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। बस्तर में सेना नेप्रशिक्षणके नाम से कदम रखा है। दरअसल इस युद्ध का लक्ष्य सिर्फ माओवादी आंदोलन का उन्मूलन नहीं है। बल्कि हर उस आंदोलन और हर उस ताकत का दमन इसका लक्ष्य है जो देश के संसाधनों को बड़ी विदेशी कार्पोरेट संस्थाओं के हवाले करने की राह में बाधा बने हुए हैं। दण्डकारण्य समेत देश के कुछ अन्य इलाकों में शासकों के झूठे विकास के नमूने के उलट जन कल्याण को केन्द्र बिंदु बनाकर जन विकल्प का उभरकर आना और उसका दिन--दिन विकसित होना देश के शासक वर्गों और उनके आका साम्राज्यवादियों को रास नहीं रहा है। इसीलिए वे अपनी सारी ताकत को झोंककर भी इस युद्ध को अंजाम तक पहुंचाने पर उतारू हैं। खासकर दुनिया भर में साम्राज्यवाद जिस आर्थिक संकट से गुजर रहा है, वह उन्हें इसके लिए और ज्यादा उकसा रहा है। इसीलिए वे जनता पर बर्बर हिंसा, जुल्म और कत्लेआम मचाने पर आमादा हैं। जनता का नेतृत्व करने वाले क्रांतिकारियों और क्रांतिकारी नेताओं की हत्या भी इसी का हिस्सा है।

यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि दमन से विद्रोह ही उपजता है। वे व्यक्तियों की हत्या कर सकते हैं पर उनके विचारों को खत्म नहीं कर सकते। देश के शोषक शासक वर्ग जनता की नजरों में दिन-प्रतिदिन बेनकाब हो रहे हैं। भूख, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगाई, विस्थापन आदि समस्याओं ने जनता का जीना हराम कर रखा है। जनता की नजर में हर संसदीय पार्टी भ्रष्ट हो चुकी है। ऐसे हालात में अनुपम कुरबानियों और शौर्यपूर्ण संघर्षों से आगे बढ़ता माओवादी जनयुद्ध देश की समूची जनता के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

इस प्रेरणा को व्यापक बनाते हुए 28 जुलाई से 3 अगस्त तक शहीद सप्ताह स्फूर्तिभावना के साथ मनाएंगे। आइए, इस मौके पर पार्टी को बचाते हुए, जनयुद्ध को देश के चारों कोने में फैलाते हुए, गुरिल्ला युद्ध को तेज करने की शपथ लें। शहीदों के स्मारकों का रंग-रोगन कर, तय जगहों पर नए स्मारकों का निर्माण कर, शहीदों की कुरबानियों का गांव-गांव में प्रचार करें। शहीदों के आदर्शों और उनके प्रेरणास्पद जीवन-इतिहास को जनता में बड़े पैमाने पर प्रचारित करें। शहीदों की कुरबानियों की प्रेरणा से, भारत की करोड़ों शोषित जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप क्रांतिकारी आंदोलन को विकसित करें। वर्ग संघर्ष को तेज करते हुए जनता की राजसत्ता का विस्तार करें।

 

 

(गुड्सा उसेण्डी)

प्रवक्ता,

दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)