भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
प्रेस विज्ञप्ति
4 मई 2012
प्रस्तावित फासीवादी एनसीटीसी, आपरेशन ग्रीन हंट के तहत सरकारी सशस्त्र बलों द्वारा जनता पर जारी बर्बर हमलों तथा
बस्तर में भारतीय सेना की तैनाती के विरोध में...
16 मई को ‘भारत बंद’ सफल बनाओ!
‘आपरेशन ग्रीन हंट’ के नाम से पिछले ढाई सालों से देश की जनता पर, खासकर आदिवासियों पर बेहद अमानवीय हमला जारी है। ‘मुठभेड़’ हत्याएं, सामूहिक हत्याएं, यौन अत्याचार, यातनाएं, घरों को जलाना, फसलों की तबाही, लूटपाट, गिरफ्तारियां, ‘लापता’ करने की घटनाएं... आदि के जरिए पुलिस व अर्धसैनिक बल जनता पर टूट पड़ रहे हैं। उन्होंने पिछले ढाई सालों में अकेले दण्डकारण्य में ही 250 से ज्यादा आदिवासियों की हत्या कर दी। देश में, खासकर मध्य और पूर्वी हिस्सों में जारी माओवादी आंदोलन का जड़ से सफाया करना इस हमले का मकसद है।
अपार खनिज, वन व जल सम्पदाओं से समृद्ध हमारे प्यारे देश को अंधाधुंध लूटने-खसोटने के लिए दलाल नौकरशाह पूंजीपति और साम्राज्यवादी होड़ लगाए हुए हैं। खासकर 2008 से, दुनिया भर में आर्थिक संकट गहराने की पृष्ठभूमि में भारत जैसे पिछड़े देशों में उपलब्ध प्राकृतिक सम्पदाओं और श्रमशक्ति को सस्ते में लूटने की कई साजिशें रच रहे हैं। यहां की दलाल सरकारों के साथ लाखों करोड़ रुपए के पूंजीनिवेश के एम.ओ.यू. कर, जल-जंगल-जमीन का विनाश कर जनता को बड़े पैमाने पर विस्थापित कर रहे हैं। जनता इसके खिलाफ संघर्ष कर रही है। संघर्षरत जनता का भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) नेतृत्व कर रही है। उसका साथ दे रही है। यही वजह है कि माओवादी आंदोलन शोषक शासक वर्गों और उनकी सरकार की अगुवाई करने वाले सोनिया-मनमोहन सिंह-चिदम्बरम-प्रणब मुखर्जी-जयराम रमेश शासक गिरोह के लिए सबसे बड़ी बाधा बन गया। हालांकि वे इसे ‘देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे’ के रूप में प्रचारित कर रहे हैं ताकि जनता को गुमराह किया जा सके।
शासक वर्ग अपनी साम्राज्यवाद-परस्त नव उदार नीतियों के तहत लागू सभी विनाशकारी परियोजनाओं को ‘विकास’ के रूप में चित्रित कर प्रचारित करते हुए ऐसे तमाम लोगों पर ‘विकास विरोधी’ का ठप्पा लगा रहे हैं जो इसका विरोध करते हैं। खासकर वे माओवादियों को विकास विरोधी, हिंसावादी और आतंकवादी के रूप में चित्रित कर अपने कार्पोरेट मीडिया के जरिए बड़े पैमाने पर प्रचार युद्ध चला रहे हैं। माओवादी आंदोलन वाले इलाकों में, खासकर दण्डकारण्य में जनता द्वारा वर्ग संघर्ष के जरिए स्थानीय सामंती व प्रतिक्रियावादी ताकतों की सत्ता को ध्वस्त कर बुनियादी स्तर पर जनता की जनवादी सत्ता के अंगों का गठन तथा उसकी अगुवाई में आत्मनिर्भरता व सहकारिता के आधार पर विकसित हो रहा विकास का वैकल्पिक नमूना - इससे शासक वर्ग बेहद डरे हुए हैं। यही वजह है कि वे इस हमले पर उतारू हो गए ताकि इसका नामोनिशान तक मिटाया जा सके। साम्राज्यवादी, खासकर अमेरिकी साम्राज्यवादी न सिर्फ इस हमले का मार्गदर्शन कर रहे हैं, बल्कि इसमें परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से भाग भी ले रहे हैं। प्रस्तावित एनसीटीसी (राष्ट्रीय आतंकवाद-विरोधी केन्द्र) का गठन भी अमेरिकी साम्राज्यवादियों की शह पर हो रहा है जोकि देश के नागरिकों के बुनियादी अधिकारों पर ही नहीं, बल्कि देश की तथाकथित संघीय प्रणाली पर भी कुठाराघात है।
इस हमले के अंतर्गत साल भर पहले बस्तर में भारतीय सेना को उतार दिया गया। यह बस्तर या दण्डकारण्य तक सीमित मामला नहीं है। देशव्यापी क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलना इस तैनाती का मकसद है। हालांकि वे ‘प्रशिक्षण’ की आड़ में सेना को तैनात कर रहे हैं ताकि शत्रु देशों के साथ युद्ध करने के लिए बनाई गई सेना को देश की जनता के खिलाफ उतारने पर उठ सकने वाले विरोध और प्रतिरोध से निपटा जा सके। छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘प्रशिक्षण’ के लिए माड़ क्षेत्र में 750 वर्ग किलोमीटर का भूभाग सेना के हवाले करने का फैसला लिया। यह इस बात का उदाहरण है कि आदिवासी इलाकों में जमीन हस्तांतरण पर लागू प्रतिबंध तथा पांचवीं अनुसूची, पेसा आदि कानूनों का सरकारें खुद ही किस तरह उल्लंघन करती हैं। सेना जो फिलहाल कोंडागांव-नारायणपुर के बीच ‘प्रशिक्षण’ ले रही है, की मंशा यह है कि धीरे-धीरे नारायणपुर कस्बे को पार कर माड़ के अंदरूनी गांवों पर कब्जा जमा लिया जाए। सेना के आला अधिकारी खुद ‘प्रशिक्षण’ के कार्यक्रमों का जायज़ा ले रहे हैं।
आपरेशन ग्रीनहंट के तहत पिछले एक साल से सेना की तर्ज पर हमले किए जा रहे हैं जिसमें ब्रिगेड के स्तर पर सशस्त्र बलों को इकट्ठा किया जा रहा है। इन भारी हमलों में विभिन्न सरकारी सशस्त्र बलों और कमाण्डो बलों के 3 से 5 हजार जवानों को लगाया जा रहा है। अक्टूबर 2011 में महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में धनोरा तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्यारापत्ती और मालेवाड़ा पुलिस थानों के दायरे में पांच हजार की सी.आर.पी.एफ.-कोबरा, सी-60 कमाण्डो और स्थानीय पुलिस बलों ने बड़े पैमाने पर हमले किए थे। इस भारी सैन्य आपरेशन में 19 गांवों पर हमले कर 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। कई लोगों के साथ सरकारी बलों ने मारपीट की। कई लोगों के घरों में घुसकर लूटपाट मचाई।
2011 में 24 से 27 नवम्बर तक बीजापुर इलाके के 16 गांवों को कव्हर करते हुए 35 किलोमीटर के दायरे में एक हजार सरकारी सशस्त्र बलों ने कई जगहों पर ऐम्बुश लगाए थे। इस प्रकार उन्होंने अहम नेतृत्वकारी कामरेडों की हत्या की नाकाम कोशिश की। फिर 19 दिसम्बर को दंतेवाड़ा जिले के छोटे केड़वाल और बड़े केड़वाल गांवों पर हेलिकाप्टरों से एक भारी हमला किया गया। एक साथ पोलमपल्ली, किष्टारम और भेज्जी पुलिस कैम्पों से करीब 15 हेलिकाप्टरों में फोर्स को रवाना किया गया था। इन हेलिकाप्टरों ने कई बार उड़ान भरी। उसी समय नीचे से भी तीन दिशाओं से फोर्स वहां पहुंची थी। इन दो गांवों में हमले कर कुछ घरों को पूरी तरह ध्वस्त किया गया और कुल 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया। कई घरों से हजारों रुपए की नगद समेत कई कीमती सामानों को लूट लिया गया। सरकारी बलों ने एक महिला के साथ बलात्कार की कोशिश की।
2012 में 27 फरवरी से 1 मार्च तक बीजापुर जिले के गंगलूर इलाके में करीब दो हजार सरकारी सशस्त्र बलों ने एक भारी आपरेशन को अंजाम दिया। डी.आइ.जी. ने इस हमले का प्रत्यक्ष नेतृत्व किया। एडसुम, इरमागोण्डा, मद्दुम और कावड़ गांवों को निशाना बनाकर चलाए गए इस आपरेशन के दौरान कुल 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
2012 मार्च के पहले व दूसरे सप्ताहों में माड़ क्षेत्र को तीन दिशाओं - छत्तीसगढ़ के बीजापुर व नारायणपुर जिलों से और महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले से एक साथ तीन हजार सशस्त्र बलों ने घेरकर एक भारी आपरेशन चलाया। इसे ‘आपरेशन विजय’ और ‘आपरेशन हाका’ का नाम दिया गया। जहां कई आइ.पी.एस. अफसरों ने इस आपरेशन का प्रत्यक्ष नेतृत्व किया था, वहीं सी.आर.पी.एफ. के महानिदेशक विजयकुमार तथा छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशकों ने इसकी योजना तैयार की। लगभग पच्चीस गांवों में लूटपाट और तबाही मचाते हुए चलाए गए इस आपरेशन में सरकारी बलों ने तोके गांव के एक आदिवासी डुंगा धुरवा की हत्या की। गोड्डेलमरका गांव का लालसू को ‘लापता’ कर दिया। घरों से हजारों रुपए की नगद समेत कई कीमती वस्तुओं को लूट लिया।
फिलहाल छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश के जेलों में दण्डकारण्य के करीब तीन हजार आदिवासी बंद हैं। इन्हें कई झूठे मुकदमों में फंसाया गया जिससे वे बिना किसी सुनवाई या जमानत के सालों साल काली कोठरियों में सड़ रहे हैं। इनमें से कई लोगों की हालत यह है कि अगर उन पर लगाए गए मुकदमों की सुनवाई पूरी कर सजा भी दी जाती है तो वह अब तक पूरी हो जाती और वे बाहर आ जाते। गरीबी और पिछड़ेपन के चलते कई लोगों की स्थिति यह है कि वे अपना वकील भी नियुक्त नहीं कर पा रहे हैं। परिवारजन जेलों में जाकर मुलाकात नहीं कर पाते हैं जिससे कई बंदी मानसिक रूप से परेशान हैं। यह स्थिति न सिर्फ दण्डकारण्य की है, बल्कि झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश और ओड़िशा की भी है। एक शब्द में कहा जाए, तो देश के सारे जेलों को आदिवासियों से भरा जा रहा है ताकि आदिवासियों के पैरों की नीचे की जमीनें कार्पोरेट कम्पनियों के हवाले की जा सकें।
लोगो व जनवादपसंदो! हमारी पार्टी की केन्द्रीय कमेटी ने यह आह्वान किया है कि देश की जनता पर शोषक सरकारों द्वारा जारी फासीवादी हमलों को रोकने, आपरेशन ग्रीनहंट के तहत बस्तर में हो रही सेना की तैनाती बंद करने, ‘प्रशिक्षण’ के नाम से पड़ाव डाले हुए सैन्य बलों को वापस भेजने, विभिन्न जेलों में बंद आदिवासियों व राजनीतिक बंदियों को बिना शर्त रिहा करने तथा प्रस्तावित फासीवादी एनसीटीसी को रद्द करने की मांग से 16 मई को 24 घण्टे का ‘भारत बंद’ रखा जाए। यह बंद मुख्य रूप से आंध्रप्रदेश, झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और महाराष्ट्र के गोंदिया, चंद्रपुर व गढ़चिरोली जिलों में मनाया जाएगा। हमारी स्पेशल जोनल कमेटी समूचे देशवासियों से अपील करती है कि इस बंद को सफल बनाया जाए। हालांकि हम चिकित्सा सेवाओं और छात्रों की परीक्षाओं जैसी आवश्यक सेवाओं को बंद से मुक्त रखेंगे।
(गुड्सा उसेण्डी)
प्रवक्ता,
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)