माड़ क्षेत्र में सरकारी सशस्त्र बलों द्वारा चलाए गए
‘आपरेशन विजय’ व ‘आपरेशन हाका’ की निंदा करो!
जनता पर शासक वर्गों का
अन्यायपूर्ण युद्ध रोको!
प्यारे लोगो! जनतंत्र के प्रेमियो!
पिछले साल की
तरह इस बार
भी मार्च का महीना
दण्डकारण्य
की जनता के
लिए तबाही ले आया।
जहां पिछले वर्ष सरकारी सशस्त्र
बलों ने ठीक
इसी महीने में 11 से 16 तारीख तक दक्षिण
बस्तर के चिंतलनार
इलाके में चार गांवों
मोरपल्ली,
पुलानपाड़,
तिम्मापुरम
और ताडि़मेट्ला
पर विध्वंसकारी
हमला किया था, वहीं इस
बार शिकार पर था
माड़ क्षेत्र
जिसे शासक ‘अबूझमाड़’
के नाम से
पुकारते
हैं। चिंतलनार
काण्ड पर और
उसके बाद तथ्यान्वेषण
के लिए आए
अग्निवेश
आदि पर हुए
अन्य हमलों पर हर
तबके से आए
दबाव तथा सर्वोच्च अदालत के आदेश
के चलते छत्तीसगढ़
सरकार ने सीबीआई
द्वारा
जांच करवाने की घोषणा
की। ठीक जब यह
‘जांच’ चल रही
थी, उसी समय
माड़ पर हुआ
यह अमानवीय हमला उन लोगों
की आंखें खोलने के लिए
काफी है जो
अभी भी इस
मुग़ालते
में हैं कि हमारे
देश में लोकतांत्रिक
शासन चल रहा
है।
सभी को
मालूम है कि
पिछले जुलाई में सर्वोच्च अदालत ने एक
फैसले में एसपीओ और कोया
कमाण्डो
की नियुक्ति को गैर-कानूनी घोषित कर उनसे
हथियार
वापस लेने का आदेश
दिया था। पर छत्तीसगढ़
सरकार अपनी आदत के मुताबिक
इस फैसले की भी
धज्जियां
उड़ाते
हुए एसपीओ/कोया कमाण्डो
का नाम बदलकर
‘आग्जिलियरी
पुलिस फोर्स’ के नाम
से काम करवा
रही है, यह भी
किसी से छिपी
नहीं है। पिछले साल ‘कोया
कमाण्डो’
के नाम से
आतंक का तांडव
करने वाले फासीवादी
गिरोहों
ने इस बार
‘अबूझमाड़
पुलिस’, ‘आग्जिलियरी
पुलिस’ के नाम
से सीआरपीएफ (कोबरा), सीएएफ, एसटीएफ, सी-60 क्रैक कमाण्डो आदि बलों के
साथ मिलकर तबाही, लूट, हत्या, अत्याचार
और अंधाधुंध गोलीबारी
की घटनाओं को अंजाम
दिया।
खुद सरकार
के मुताबिक विभिन्न
सशस्त्र
बलों के 3,000 जवानों द्वारा चलाए गए इस
अभियान
का कहर 20-25 गांवों
पर टूटा। छत्तीसगढ़ के बस्तर
संभाग के नारायणपुर
व बीजापुर
और महाराष्ट्र
के गढ़चिरोली जिलों से एक
साथ तीन दिशाओं से चलाए
गए इस हमले
में एक आदिवासियों
की जान चली
गई, जबकि एक
और लापता कर दिया
गया। कई अन्य
घायल हो गए।
कई जगहों पर निहत्थी
जनता पर पुलिस/अर्धसैनिक
बलों ने अंधाधुंध
गोलियां
बरसाईं।
दसियों
घरों को तबाह
किया गया। कुछ को जलाकर
राख कर दिया
गया। घरों में रखी लाखों
रुपए की जनता
की गाढ़ी कमाई लूट
ली गई। जला
दी गई।
सलवा जुडूम,
आपरेशन
ग्रीनहंट
के नाम से
पिछले सात सालों से जारी
तबाही व कत्लेआम
की धारावाहिकता
में ‘आपरेशन विजय’ व ‘आपरेशन
हाका’ के नाम
से चलाई गई
इस ताजातरीन विध्वंसकारी
कार्रवाई
को शासक वर्गों
ने अपनी ‘कामयाबी’
के रूप में
बड़े पैमाने पर प्रचारित
किया है। सीमा सुरक्षा
बल, भारत-तिब्बत
सीमा पुलिस, सशस्त्र
सीमा बल आदि
बलों के अलावा
अब थलसेना और वायुसेना,
जिनका काम दरअसल देश की
सीमाओं
पर पहरा देते
हुए देश को शत्रु-देशों के हमलों
से बचाना है, को
भी देश के
बीचोबीच
तैनात करके यहां की अत्यंत
दबी-कुचली जनता को अपना
दुश्मन
मानकर ‘शिकार’ में लगी हुई
राजसत्ता
के लिए अगर
यह शत्रु-देश पर
हासिल ‘कामयाबी’
सी लगती भी
है तो क्या
गलत है?
सर्वविदित है कि
आपरेशन
ग्रीनहंट
के दूसरे चरण के
तहत पिछले साल जून माह
में भारतीय सेना की एक
ब्रिगेड
माड़ क्षेत्र
में ‘प्रशिक्षण’
के नाम से
दण्डकारण्य
में प्रवेश कर चुकी
है। 750 वर्ग किलोमीटर
के इलाके पर कब्जा
करने की योजना
के अंतर्गत माड़ के कई
गांवों
को, कुल मिलाकर
माडि़या
आदिवासियों
के अस्तित्व को ही
मिटाने
की साजिश रची गई
है। देश की प्राकृतिक
सम्पदाओं
को कार्पोरेट वर्गों के हाथों
लुटवाने
की राह में
सबसे बड़ी बाधा के रूप
में खड़े माओवादी
आंदोलन
को सोची-समझी
साजिश के तहत
देश की आंतरिक
सुरक्षा
के लिए सबसे
बड़े खतरे के रूप
में चित्रित
करते हुए दुष्प्रचार
किया जा रहा
है। शोषक शासक वर्ग मीडिया के जरिए
यह प्रचार करते हुए कि माड़
क्षेत्र
माओवादियों
का प्रधान आधार इलाका है तथा
माओवादियों
के शीर्ष नेता माड़
क्षेत्र
में ही मौजूद
हैं, यह भ्रम
पाले हुए हैं कि
इससे उनके हमलों को वैधता
व सहमति
हासिल की जा
सकती हैं।
दरअसल माड़ क्षेत्र
में हमले कोई नई बात
नहीं है। इसके पहले
भी अलग-अलग
इलाकों
में सैकड़ों
की संख्या में पुलिस व अर्धसैनिक
बलों ने विभिन्न
जगहों पर हमले
करके हत्या, तबाही और आतंक
का तांडव मचाया था। माड़
के मुहाने पर स्थित
इंद्रवती
नदी के तटवर्ती
इलाके में 2005 से सलवा
जुडूम ने कई
बार हमले किए। दसियों गांवों को जलाकर
राख कर दिया
गया। कई लोगों
को गोली मार
दी गई। लूटपाट
और फसलों की तबाही
खूब हुई। लेकिन इतनी भारी संख्या में माड़ क्षेत्र
को एक साथ
तीनों दिशाओं से घेरते
हुए हमला करने का यह
पहला अवसर था। गौरतलब है कि
यह भारी हमला
इस पृष्ठभूमि में हुआ है
जब सेना माड़
के नजदीक ही, कोंडागांव
क्षेत्र
में पड़ाव डाली हुई है जो
माड़ में प्रशिक्षण स्कूल के निर्माण
के इरादे से पिछले
साल से तैनात
है। सेना द्व़ारा
बनाई हुई रणनीति के तहत,
दुश्मन
देशों पर टूट
पड़ने वाले अंदाज में किए गए
इस हमले में
हेलिकाप्टरों,
मानवरहित
(टोही) विमानों,
अत्याधुनिक
तकनीक और मोर्टार
समेत कई किस्म
के मारक हथियारों
का धड़ल्ले से इस्तेमाल
किया गया।
माड़ इलाके
से आदिवासियों
को खाली करवाना;
सेना की प्रशिक्षण
स्कूल के नाम
से पूरे माड़
क्षेत्र
पर कब्जा करना; बस्तर
की सारी सम्पदाएं
दलाल पूंजीपतियों
और बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों
के हवाले कर देना;
और इन सब
कामों को बेरोकटोक
पूरा कर सकने
के लिए माओवादियों
का सफाया करना - इन
लक्ष्यों
को लेकर जारी
युद्ध का ही
हिस्सा
है माड़ पर
हुआ हालिया हमला।
महाराष्ट्र
व छत्तीसगढ़
पुलिस के आला
अधिकारी
- छत्तीसगढ़
डीजीपी
अनिल नवानी, महाराष्ट्र
डीजीपी
सुब्रह्मण्यम्
और सीआरपीएफ डीजी विजयकुमार
ने इस हमले
की रूपरेखा तैयार की। जहां विजयकुमार
ने बीजापुर का दौरा
कर हमले की
तैयारियों
का जायज़ा लिया, वहीं छत्तीसगढ़
एडीजी रामनिवास,
बस्तर आईजी लांगकुमेर
और सीआरपीएफ आईजी (छग प्रभारी)
पंकजसिंह
ने नारायणपुर में डेरा जमाकर
हमले का समन्वय
किया। नारायणपुर
एसपी मयंक श्रीवास्तव
व बीजापुर
एसपी राजेन्द्र
नारायण
दास ने हमलों
का प्रत्यक्ष नेतृत्व
किया। कुल मिलाकर, केन्द्रीय
गृह मंत्रालय
द्वारा
पिछले माह की 22 तारीख
को आयोजित नक्सल प्रभावित
राज्यों
के पुलिस महानिदेशकों
और प्रमुख सचिवों की ताजा
बैठक में तथा 2 मार्च
को गृहमंत्री चिदम्बरम
द्वारा
आयोजित
वीडियो
कान्फ्रेंस
में लिए गए फैसलों
के तहत ही
यह हमला हुआ,
इसमें कोई दोराय नहीं।
पुलिस के अधिकारी
इस हमले को
‘नक्सलवादियों
पर पुलिस की जीत’
बताकर बड़े पैमाने पर प्रचार
कर रहे हैं।
असल में यह हमला
किस पर हुआ
था? किसे निशाना
बनाकर किया गया था? हिंसा
किस पर हुई?
आदि सवालों पर जरा
भी ध्यान न देते
हुए मीडिया पुलिस के दावों
को बढ़ा-चढ़ाकर
बड़े-बड़े शीर्षकों
से प्रचार कर रहा
है। हालांकि
नारायणपुर
एसपी को मीडिया
से बात करते
हुए कुछ सचाइयां भी बतानी
पड़ीं।
उसने कहा कि माड़
के अंदरूनी गांवों में स्कूलें एवं अस्पताल नहीं हैं और माओवादी
साग-सब्जियां,
मकई आदि उगवा रहे
हैं तथा स्कूलें चला रहे हैं।
ऐसे में, देश के शासकों
से यह सवाल
करना जरूरी है कि
सरकार की उपेक्षा
का शिकार जनता अगर
माओवादी
पार्टी
की अगुवाई में स्कूलें चलाती है और
अपनी खेती-किसानी को बेहतर
बनाने के लिए
प्रयास
करती है तो
वह अपराध कैसे हुआ।
यह भी समझना
चाहिए कि इस
इलाके में क्रांतिकारी
जनताना
सरकार द्वारा संचालित
दो स्कूलों और दो
कृषि-क्षेत्रों
को भी निशाना
बनाकर किए गए इस
हमले को ‘जीत’ के
रूप में क्यों प्रचारित किया जा रहा
है।
अब इस
हमले के तौर-तरीकों पर नजर
डालने से यह
और ज्यादा स्पष्ट हो जाता
है।
इंद्रावती इलाके पर हमला
7 मार्च को जगदलपुर
से सशस्त्र बलों की 9 कम्पनियां
- यानी लगभग 800 जवान बीजापुर
पहुंच गए। ‘आपरेशन हाका’ के रूप
में प्रचारित
इस हमले की
तैयारियां
वहीं पर पूरी
कर ली गईं।
10 मार्च को वे
बीजापुर
से सीधा भैरमगढ़
होकर इंद्रावती
नदी के तट
पर इत्तमपारा गांव पहुंच गए जिसमें
कोबरा, पुलिस, एसपीओ आदि हथियारबंद बल शामिल
थे। दोपहर नदी में नहा-धोकर हमले की योजना
को अंतिम रूप दिया
गया। शाम को नदी
पार करके टाडुम गांव में पहुंच गए। वे
इत्तमपारा
में अपनी दो प्लाटूनें
छोड़कर
आगे बढ़ गए ताकि
वापसी के दौरान
सुरक्षा
की गारंटी रह सके।
11 की सुबह वे बोड़गा
गांव पहुंच गए। इस गांव
में कई घरों
में उन्होंने
लूटपाट
मचाई। जावा नामक किसान के घर
से 2,550 रुपए लूट लिए। माडि़वी
बामन नामक किसान की खूब
पिटाई की जिसके
चलते वह अब
चल-फिर नहीं
सक रहा है।
हालांकि
वहां पर जन
मिलिशिया
के सदस्यों ने पटाखें
फोड़कर
और ‘अक्कुम’ (भोंपू) बजाया जिससे हर गांव
में यह खबर
चल गई कि
शत्रु-बल हमले
पर आ चुके
हैं। दोपहर तक पुलिस
बल वहीं रहे।
शाम के चार
बजे वहां से आगे
बढ़कर अंधेरा होने के बाद
ताकिलोड़
व रेकावाया
गांवों
से होते हुए
वेड़मा
पहुंच गए।
ताकिलोड़ गांव की जनता
अपने कड़वे अनुभवों
के मद्देनजर पहले ही गांव
को खाली कर
ग्राम वेड़मा के नजदीक
जंगल में जाकर सो
गई थी। जंगल
में सोई हुई जनता
पर सरकारी सशस्त्र
बलों ने अंधाधुंध
गोलियां
चलाईं।
गोलीबारी
से भयभीत होकर बच्चे
और महिलाएं खूब चिल्ला-चिल्लाकर
रोईं। 12 की सुबह
सरकारी
बलों ने वेड़मा
से रेकावाया के आसपास
आकर खाना बनाकर खा लिया।
इस गांव में
हाथ लगे तमाम मुर्गों
को वे मनमाने
खा गए। आयतू
पोडियाम
के परिवार के पांच
मुर्गों
को लूटकर घर में
कपड़ों
को जला दिया।
हिड़मा
कुहडवी
के घर से
चार मुर्गे लूटकर ले गए।
200 रुपए की नगद
और एक बरतन
भी छीनकर ले गए।
नायुमपारा
के निवासी बेडि़ता
आयतू से दो
मुर्गे
और पांच पायली
चना भी लूट
लिए।
10 बजे वहां से
चलकर गोट गांव में
पहुंच गए। यहां पर
एक छोटी सी
जन मिलिशया की टुकड़ी
के साथ सरकारी
सशस्त्र
बलों की मुठभेड़
हो गई। कुछ
देर तक गोलीबारी
चली। 12 मार्च की शाम
को उन्होंने नायुमपारा
में क्रांतिकारी
जनताना
सरकार द्वारा संचालित
प्राथमिक
स्कूल पर हमला
किया। चूंकि उसमें पढ़ने वाले बच्चे और शिक्षक
पहले ही जंगलों
में भाग चुके थे,
इसलिए कोई जानी नुकसान
नहीं हुआ। रात में सरकारी
बल उसी स्कूल
में रुक गए। जाने
से पहले उन्होंने
बच्चों
के नहाने की जगह
पर एक बम
लगा दिया जिससे उनके हत्यारे
स्वभाव
का सबूत मिल
जाता है। अगले दिन
जब वे जाने
को तैयार हुए थे,
तब उन्हें पता चला था
कि पास में
ही पीएलजीए की एक
टुकड़ी
ऐम्बुश
के लिए बैठी
हुई है। बाद में
वे अपना रास्ता
बदलकर आलवेड़ा
गांव जाने का दिखावा
करके फिर आधे रास्ते
से कटकर पहाड़ों
से होकर रात
में कुम्मम नाम की एक
छोटी सी बस्ती
पहुंच गए। वहां उन्होंने
घरों में जबरन घुसकर
चावल और अन्य
खाद्य चीज़ों को लूटकर
खाना बना लिया। गुरिल्लों के जवाबी
हमले की आशंका
के चलते वे
सारे घरों को अपने
कब्जे में लेकर जनता
को बाहर धकेलकर
सो गए। अगले
दिन पहाड़ों
से उतरकर वे ताडि़बल्ला
गांव पहुंच गए। वहां पर
सरकारी
बलों ने कई
लोगों को अपनी
गिरफ्त
में ले लिया
जिनमें
से कुछ को
छोड़कर
बाकी को अपने
साथ लेकर नदी के उस
पार चले गए। जाते-जाते वे अपनी
एक टुकड़ी को वहीं
छोड़ गए ताकि
अपने दूसरे बलों की सुरक्षा
की गारंटी मिल सके। गांव
के पास जंगल
को काटकर हेलिकाप्टर
को उतारने के लिए
अनुकूल
बनाया गया। ऊपर से उन्हें
खाद्य पदार्थ और अन्य
वस्तुएं
पहुंचाई
गईं। पकड़े गए आदिवासियों
में से उन्होंने
कई लोगों को मारा-पीटा और कुछ
लोगों के हाथों
में 20, 30, 50 रुपए पकड़ा दिए। चूंकि उनके ग्रीनहंट
का एक पहलू
‘सिविक एक्शन प्रोग्राम’
भी है, शायद
इसीलिए
वे पैसा बांटने
का निश्चय कर चुके
हों!
बीजापुर-जगदलपुर
सड़क पर स्थित
माटवाड़ा
से सशस्त्र बलों की तीन
और कम्पनियां लगभग इसी समय में
निकल चुकी थीं। वे गुड़रा
नामक गांव के पास
इंद्रावती
नदी को पार
कर रेकापारा पहुंच गए। वहां जंगल
में ‘राचि’ (जंगल में मिलने वाली ‘राचि’
नामक लकडि़यों
को कई दिनों
तक पानी में
भिगोकर
रस्सी निकाला जाता है।) काटने के लिए
आए जीली और
गोंगला
गांवों
के 22 लोगों को पकड़
लिया। उन्हें देखकर जब कुछ
लोग भागने लगे थे तब
उन पर गोलियां
बरसा दीं। पकड़े गए लोगों
को लेकर वे
पहाड़ों
पर चढ़े और
कुमनार
नामक छोटे से गांव
पर हमला किया।
यह हमला
तब हुआ जब
कुमनार
के ज्यादातर लोग अपने-अपने
खेतों में मिंजाई का काम
कर रहे थे।
गांवों
में मौजूद महिलाओं
की उन्होंने खूब पिटाई की। बुधरू
ओयामी नामक एक व्यक्ति
को पकड़ लिया।
बाद में उस पर
फर्जी मामले दर्ज कर जेल
भेज दिया। घरों में घुसकर मनमाने ढंग से लूटपाट
मचाई। बुधरू के घर
से 5 हजार और पायकी
नामक महिला के घर
से 6 हजार रुपए लूटे। कई अन्य
घरों में रखे गए
नगद पैसों को लूट
लिया। अन्य सामानों
को जहां-तहां
फेंक दिया और तोड़
दिया। धनुष -बाणों और भालों
को उठा ले
गए। एक किसान
की ‘कोसरा’ (कोदो की
तरह का एक
मोटा अन्न है जो
माड़ वासियों
का प्रधान खाद्य अनाज है ) की कोठी
को जला दिया।
जिस अनाज से साल
भर पूरे परिवार
का पेट भरना
था वह एक
पल में जलकर
राख हो गया।
उसके बाद वे कुमनार
से दिवालूर गांव से होते
हुए 13 की शाम
तक ताडि़बल्ला
गांव पहुंच गए। वहां सभी
बल आपस में
मिले। 14 मार्च को नदी
को पार कर
सभी बल वापस
चले गए।
इस हमले
में मछली पकड़ने के लिए
इस्तेमाल
किए जाने वाले जालों को भी
सशस्त्र
बलों ने नहीं
बख्शा।
इससे जनता को 10 हजार रुपए
का नुकसान उठाना पड़ा। शिकार करके घरों में रखे गए
सूखे मांस को भी
पुलिस ने लूट
लिया। कई घरों
से कपड़े लूटकर ले गए।
दो भरमार भी जब्त
कर ले गए।
इन बलों
का बीजापुर एसपी समेत एक और
एसपी स्तर के अधिकारी
ने प्रत्यक्ष नेतृत्व
किया। वो अपने
साथ अत्याधुनिक
मारक हथियारों
के अलावा कम्प्यूटर,
जीपीएस
के उपकरण, सैटिलाइट फोन आदि ले
आए थे। इसके
अलावा हल्के वजन का मानवरहित
विमान (यूएवी) भी ले
आए। न सिर्फ
उसका वजन कम था,
बल्कि उसके पुर्जों
को अलग-अलग
कर फिर जोड़ा
जा सकता था।
उसे लगभग हर जगह
आसमान में उड़ाकर आसपास में घुमाया गया। उससे ली गई
तस्वीरों
से यह पता
कर लेते थे
कि आसपास में कहीं
गुरिल्लों
की गतिविधियां
दिख तो नहीं
रही हैं। बोड़गा और रेकावाया
गांवों
में जब ये
बल रुके थे
तब उसे उड़ाया
गया था। इस तरह
इस बर्बर अभियान को हाइ
टेक हमले के रूप
में भी देखा
जा सकता है।
जैसे कि
पहले बताया गया, पुलिस बलों ने कई
जगहों पर जनता
को मारपीट करने और उसके
बाद उनके हाथ में पैसा
रखने की ओछी
और घटिया किस्म की हरकतें
भी कीं। कुछ
लोगों को अपने
साथ लाए कपड़े भी बांट
दिए। कई लोगों
को उन्होंने सिर्फ इसलिए अपने कब्जे में रखा था
ताकि उनका इस्तेमाल
पीएलजीए
के संभावित हमलों से सुरक्षा
कवच की तरह
किया जा सके।
हालांकि
ग्रामीण
महिलाओं
ने हर जगह
सशस्त्र
बलों का पीछा
किया। अपने लोगों को छुड़वाने
की मांग करते
हुए उनसे भिड़ भी गईं।
उनके पीछे-पीछे भैरमगढ़
तक भी जाकर
अपने पुरुषों
को छुड़ा लाईं।
रेकापारा से पकड़े
गए जीली गांव
के 11 लोगों को भैरमगढ़
तक ले जाकर
थाने में एक दिन
रखा गया। इनमें लच्छू, बुधरू और सुखराम
की बुरी तरह
पिटाई की गई।
पिटाई के कारण
बुधरू को मूत्र
विसर्जन
करने में दिक्कत हो रही
है। सभी की तस्वीरें
खींचकर
500 रुपए देकर 10 लोगों को छोड़
दिया गया। बुधरू को झूठे
केस में जेल भेज
दिया गया।
रेकापारा के पास
ही सशस्त्र बलों के हत्थे
चढ़ने वाले गोंगला गांव के 9 लोगों में लच्छू
ओयामी को झूठे
मामले में फंसाकर जेल भेज दिया
गया। बाकी को भैरमगढ़
तक ले जाकर
कुछ पैसे देकर छोड़ दिया।
कुल मिलाकर,
इस इलाके से पकड़े
गए लोगों में से
10 को झूठे केस लगाकर जेल भेज
दिया गया। वे हैं
- नायुमपारा
गांव के मड़कामी
मुसुर
(32), ओयामी
कुम्मा
(45), माडि़वी
गुड्डी
(55), बोड़गा
गांव के ओयामी
बुधू (33), ओयामी हिड़मा
(35), बड़े पल्ली गांव के ओयामी
चैतू (40), पदामी सोमुडू
(35), कुमनार
का ओयामी बुधरू (23), गोंगला गांव का ओयामी
लच्छू
(25) और जीली गांव का कुंजाम
सुदरू
(35)।
कुत्तुल इलाके पर हमला
5 मार्च से ही
नारायणपुर
जिला मुख्यालय
में इस हमले
की तैयारियां पूरी हुईं। चूंकि नारायणपुर
के व्यापारियों
को पहले ही
माड़ पर हमला
होने का आभास
हुआ था, इसलिए वे 12 तारीख
को सोनपुर हाट बाजार नहीं आए
जोकि माड़ का एक
प्रमुख
केन्द्र
है। इसलिए उस दिन
हाट बाजार नहीं चल पाया।
13 रात को ही
नारायणपुर
से सशस्त्र बल निकल
पड़े थे। 14 को विभिन्न
सशस्त्र
बलों के लगभग
एक हजार जवान
कोहकामेट्टा
गांव पहुंचे और वहां
खाना बनाकर खा लिया।
जनता को गुमराह
करने के लिए
उन्होंने
दूसरी दिशा में जाने का
दिखावा
किया। बाद में इरकभट्टी
गांव से होते
हुए कच्चापाल
के आसपास पहुंच गए। गांव
से खेतों में जाने
के रास्ते में घात लगाकर
बैठ गए।
कच्चापाल गांव के सोनू
और राजू दोनों
उस रास्ते से ‘गोरगा’ (सल्फी) की ताड़ी
पीने के लिए
जा रहे थे
जो इस ऐम्बुश
में फंस गए। सशस्त्र
बलों ने उन
पर अंधाधुंध गोलीबारी
की। सोनू के पैर
में गोली लगी जिससे वह बुरी
तरह घायल हुआ। फिर भी उसने
दौड़कर
अपनी जान बचा ली।
लेकिन राजू उनके हत्थे चढ़ गया। उसे
उन्होंने
बेदम मारकर छोड़ दिया। मारपीट से उसके
मुंह से अभी
भी खून आ
रहा है।
इसी के
आसपास एक और
जगह पर पीएलजीए
की एक छोटी
सी टुकड़ी के साथ
पुलिस की मुठभेड़
हुई। हालांकि
पुलिस ने अंधाधुंध
गोलीबारी
की फिर भी
पीएलजीए
के गुरिल्ले बिना किसी नुकसान के सुरक्षित
पीछे हट गए।
तोके गांव में तबाही
15 मार्च की शाम
के 3 बजे सरकारी बलों ने तोके
गांव में घुसने से पहले
उस जगह को
घेरकर अंधाधुंध
गोलियां
बरसा दीं जहां पर
जन मिलिशिया संतरी करती थी। हालांकि उस वक्त
वहां कोई नहीं था,
इसलिए कोई नुकसान नहीं हुआ। बाद में पूरे
गांव को घेरकर
कहर ढाया गया।
केये धुरवा
नामक आदिवासी
किसान के घर
को पूरी तरह
जला दिया। घर में
रखे सारे सामान, चावल, कोसरा, धान, कपड़े, बरतन और 16 हजार रुपए
की नगद सब
जल गए। एक
सुअर भी आग
मंे झुलसकर मर गया।
बोतल डुंगा
(45) नामक आदिवासी
पैरों में किसी बीमारी
से पीडि़त है जो
चल-फिर नहीं
पाता। पुलिस इसे घसीटकर ले गई
जिससे पसलियों
के पास गहरी
चोट लगी और खून
निकला।
बाद में पुलिस ने उसके
हाथ में 20 रुपए रखने की कोशिश
की। जब उसने
लेने से इनकार
किया, तो उसके
सामने गिराकर आगे बढ़ गई।
‘जनता के दिलोदिमाग
को जीतने’ का क्या
अंदाज है!
बाद में
डुंगा धुरवा (38) नामक किसान जो सल्फी
के नशे में
था, हाथ में
कुल्हाड़ी
और तीर-धनुष
के साथ ही
गोटुल (गांव का सामाजिक
व सांस्कृतिक
गतिविधियों
का केन्द्र) की ओर
गया था। पुलिस ने उसे
दबोच लिया। जब पुलिस
बल गोटुल में मौजूद
नगाड़ों
को छुरों से काट
रहे थे तब
डुंगा ने उन्हें
रोकने की कोशिश
की। इससे उसकी जमकर पिटाई की और
रायफलों
की कुंदों से पीट-पीटकर मार दिया। डुंगा ने वहीं
पर दम तोड़
दिया। डुंगा अपने पीछे पत्नी और बच्चों
को छोड़ गए।
सरकारी बलों ने मुन्ना
पुलसो
(20) के घर पर
हमला कर सारे
बरतन तोड़ दिए। तीन मुर्गे लूट लिए। इनके
बगल वाले घर में
भी घुसकर बरतन को
पटककर तोड़ दिया। दो नगाड़ों
को छुरों से फाड़कर
नष्ट कर दिया।
घरों में घुसकर बीमार लोगों को भी
पीटने की कोशिश
की। रोकने का प्रयास
करने पर महिलाओं
को भी मारा-पीटा। बाद में वहां
पर तीन महिलाओं
और तीन पुरुषों
को 20-20 रुपए बांट दिए।
इस गांव
में मौजूद आश्रम शाला में जाकर पुलिस
व अर्धसैनिक
बलों ने बच्चों
को बिस्कुट बांटा। वो बिस्कुट
उसी गांव के दूसरे
घर से लूटकर
लाए गए थे।
आश्रमशाला
में मौजूद सोलार लाइट और बैटरियों
को भी उन्होंने
तोड़कर
नष्ट कर दिया।
गौरतलब
है कि यह
आश्रमशाला
उस सरकार द्वारा चलाई जाती है जो
खुद को ‘लोकतांत्रिक
तरीके से’ चुनी हुई
बताती है। इन्होंने जो सोलार
लाइट और बैटरियां
तोड़ दीं उन्हें किसी और ने
नहीं, बल्कि खुद सरकार ने ही
इस स्कूल के लिए
मंजूर किया था। इस गांव
में कई लोगों
को मारपीट कर, यातनाएं देकर और कई
घरों को लूट
लेने के बाद
उसके बदले सबको कुल मिलाकर 240 रुपए देकर गए!
तोके से
कोडेनार
जाने के रास्ते
में एक जगह
पर कोसरा रखने की
कोठी थी। उसे भी
सरकारी
बलों ने जला
दिया। गांव के 4-5 परिवारों के कुल
20-25 मुर्गों
को लूटकर खा लिया।
वत्ते वड्डे नामक एक किशोर
को मारते-पीटते हुए अपने
साथ ले गए।
मुन्ना
के घर के
अलावा दूसरे घरों और गोटुल
में मौजूद बड़े-बड़े नगाड़ों
को सरकारी बलों ने छुरों
से काटकर ध्वस्त कर दिया।
आदिवासियों
के जीवन में
ढोल-नगाड़ों
का खासा महत्व
होता है। जन्म, विवाह
व मृत्यु
के अलावा हरेक सामाजिक
व सांस्कृतिक
गतिविधि
का जुड़ाव ढोल-नगाड़ों और अन्य
वाद्य यंत्रों
से होता है।
जब वे किसी
आपदा में फंस जाते
हैं या उन
पर कोई मुसीबत
आ जाती
है तो वे
नगाड़े
बजाकर आसपास के गांवों
के लोगों को सतर्क
करते हैं और इकट्ठा
करते हैं। इसलिए भी सरकारी
सशस्त्र
बलों को ढोल-नगाड़ों
पर गुस्सा आता है। इस
तरह इसे जनता पर
भौतिक रूप से ही
नहीं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक,
सांस्कृतिक
आदि जनजीवन के तमाम
पहलुओं
पर किया गया
हमला बताया जा सकता
है।
महाराष्ट्र की ओर से हमलों का सिलिसिला
लगभग सौ
साल पहले जब आदिवासियों
ने अंग्रेजों के खिलाफ
भूमकाल
विद्रोह
किया था, बस्तर क्षेत्र में एक साथ
नागपुर
और जबलपुर से, जो उस
समय के सेंट्रल
प्राविन्स
में आते थे, और
मद्रास
व रायपुर
से सैन्य बलों को
रवाना किया गया था ताकि
विद्रोह
को कुचल दिया
जा सके। यहां
के इतिहास से परिचित
लोग इस बात
से जरूर वाकिफ
होंगे।
यह हमला भी
दोनों राज्यों
से एक साथ
पूरे तालमेल के साथ
ऐसा किया गया जैसे किसी
शत्रु-देश पर किया
जाता हो। ठीक 14 मार्च
को ही महाराष्ट्र
से भी कोबरा,
सी-60 कमाण्डो
और पुलिस के करीब
800 जवान माड़ पर आक्रमण
के लिए निकल
पड़े। इससे दो दिन
पहले ही केसा
बहरा, दल्लू जैसे हत्यारे
व बलात्कारी
एसपीओं
को हेलिकाप्टर
से नारायणपुर से लाहेरी
थाने में भेजा गया
था जो माड़
के पहाड़ों से बिल्कुल
सटा हुआ है। नेयबेरेड
नदी किनारे से निकले
ये बल पैदल
पोदेवाड़ा
गांव के तीन
लोगों को पकड़
लिया। उनमें से दो
को छोड़कर एक को
साथ लेकर जंगल से चलकर
गोडेलमरका
तक आए। सबसे
पहले उन्होंने
इस छोटे से
गांव पर हमला
किया। गांव के दो
युवकों
लालसू वड्डे (28) और उसके
भाई बिटिया वड्डे (21) को पकड़
लिया। दोनों भाइयों को बांधकर
खूब पिटाई की। जब लालसू
की पत्नी ने उन्हें
रोकने की कोशिश
की तो उसे
भी नीचे गिराकर
बेदम पीटा। बिटिया के घर
से 1500 रुपए भी लूट
लिए। लगभग सभी घरों से
चावल, अन्य खाद्य पदार्थ, मुर्गे और अंडे
लूट लिए। जैनी गोटा नामक महिला पर फायरिंग
की तो गोली
उसके हाथ को चीरते
हुए चली गई। इस
महिला को केसा
बहरा ने घायल
किया था जो
इसी इलाके के कुत्तुल
गांव का निवासी
था और जनता
का दुश्मन बनकर पिछले छह सालों
से पुलिस व अर्धसैनिक
बलों के हाथ
में एक औजार
की तरह काम
कर रहा है।
गांव के कुछ
लोग इसके चष्मदीद
गवाह हैं।
उसके बाद
वहां से रात
के अंधेरे में ही निकलकर
15 मार्च को पौ
फटने से पहले
ही ईकोनार गांव को चारों
तरफ से घेर
लिया। ़यहां सिर्फ 8 छोटी-छोटी झोंपडि़यां
स्थित हैं। इस गांव
के सांधु नामक आदिवासी
के घर पर
हमला किया। उन्हें देखकर सांधु ने भागने
की कोशिश की तो
सरकारी
बलों ने अंधाधुंध
गोलियां
बरसाईं।
हालांकि
सांधु बाल-बाल बच
गए। उसके घर से
चावल, कपड़े, कम्बल, साडि़यां
आदि बाहर निकालकर
जला दिया। घर में
रखे गए 9 क्विंटल अनाज को लूट
लिया और कुछ
को जला दिया।
सभी घरों से सामान
लूट लिया। जिन्हें
साथ में ले जाना
मुश्किल
था, उन्हें वहीं पर जलाकर
नष्ट कर दिया।
ग्रमीणों
के तीन भरमारों,
जिन्हें
वे जंगली जानवरों से रक्षा
के लिए इस्तेमाल
करते हैं, और चार
कुल्हाडि़यों
को लूटकर ले गए।
यहां भी मुर्गों
की लूट हुई।
मंगलू नामक व्यक्ति
के घर से
3800 रुपए की नगद
के अलावा कपड़े और चावल
लूट लिए। इस गांव
से छन्नू पोदाड़ी नामक किशोर को पकड़कर
उसे सरकारी बलों ने बुरी
तरह पीटा। उसे बाल एक्शन
टीम कमाण्डर
के रूप में
चित्रित
कर फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया।
पाली नामक बूढ़ी औरत को कोबरा
कमाण्डों
ने मनमाने ढंग से पीटने
के बाद सौ
रुपए का नोट
पकड़ा दिया। इसी तरह लच्छू,
नंगी और मालू
की भी पिटाई
कर हाथ में
दस-दस रुपए
पकड़ा दिए। बय्ये नामक महिला को रायफलों
की कुंदों से मारा।
जिन लोगों ने पैसा
लेने से मना
किया, उन्हें फिर पीटा।
सरकारी सशस्त्र
बलों का यह
दल 16 की सुबह
जटवार गया जहां छत्तीसगढ़
से आए दल
से इनकी मुलाकात
हुई जो तोके
से कोडेनार होते हुए वहां पहुंचा
था। आते-आते उन्होंने
कोड़नार
में भी तबाही
और लूटपाट मचाई। दो घरों
को लूट लिया।
दोनों दलों ने मिलकर
जटवार गांव में जमकर तबाही
मचाई। घरों के अंदर
से अनाज, खाने-पीने की चीजें,
पैसे, तीर-धनुष, मुर्गे,
अंडे, तम्बाकू,
कुल्हाडि़यां,
टार्चलाइट,
रेडियो,
कपड़े, यहां तक कि
चप्पल को भी
न छोड़ते
हुए लूट लिए। गांव
में एक घर
और खेतों में एक
झोंपड़ी
को जला दिया।
गोंगलू
नामक व्यक्ति
के घर से
2500 रुपए का डीवीडी
प्लेयर
भी लूट लिया।
पेपरमिल
के लिए बांस
कटाई करके हाल ही में
उसने इसे खरीद लिया
था। जटवार के दो
पाराओं
में कुल 20 घरों में लूटपाट मचाई। पाण्डू नामक गरीब किसान के घर
को जला दिया
जिसमें
चार हजार रुपए की कीमत
का सामान जल गया।
जलाने से पहले
घर से मुर्गों,
धान और दो
शाल लूट लिए थे।
लालसू नामक किसान के घर
से 7 हजार रुपए लूट लिए। अन्य
चीजों के अलावा
सुक्को
के घर से
1700 रुपए और परसा
के घर से
700 रुपए की नगद
राशि लूट ली। इन
तीन गांवों से कुल
20 हजार से ज्यादा
नगद पैसे लूट लिए। पुलिसिया
हमले की खबर
पहले ही मिल
जाने से इस
गांव का कोई
भी व्यक्ति उनकी पकड़ में नहीं आया
लेकिन कोड़ेनार
गांव का पूजारी
एडमा कारे (45) पकड़ा गया जो किसी
काम पर यहां
आया हुआ था।
हालांकि यह पूरा
हमला निर्बाध
तरीके से तथा
बिना किसी प्रतिरोध
के ही नहीं
हुआ। ईकोनार और जटवार
गांवों
के बीच तथा
जटवार के आसपास
पीएलजीए
के चंद गुरिल्लों
और जन मिलिशिया
सदस्यों
ने मिलकर इन भाड़े
के सशस्त्र बलों पर साहस
के साथ करीब
छह बार जवाबी
हमला किया। प्रतिरोध
के जरिए अपने
गांवों,
सम्पत्तियों
और फसलों को बचाने
की उन्होंने भरसक कोशिश की। इनके प्रतिरोधी
संघर्ष
में दो कोबरा
जवान बुरी तरह घायल हो
गए। इन्हें ले जाने
के लिए हेलिकाप्टर
जटवार आया था। लेकिन
गुरिल्लों
और मिलशिया सदस्यों
ने हेलिकाप्टर
को भी न छोड़ते हुए मधुमक्खियों
की तरह उसका
पीछा किया। 16 मार्च को दिन
भर सैकड़ों भाड़े के सशस्त्र
बलों और मुट्ठिी
भर पीएलजीए/मिलिशिया
बलों के बीच
कई बार लड़ाई
होती रही। इसके बावजूद भी कि
सैकड़ों
सशस्त्र
बल हजारों गोलियां
बरसाते
रहे और अंधाधुंध
मोर्टार
के गोले दागते
हुए आतंक मचाते रहे, फिर भी जन
मिलिशिया
बिखरी नहीं, वहां से हिली
नहीं। जन मिलिशिया
के लड़ाकों ने अपने
पास मौजूद भरमार जैसे देसी हथियारों
से ही फायरिंग
करते हुए हेलिकाप्टर
के नाक में
दम कर दिया।
हालांकि
वे किसी तरह
अपने घायल जवानों को ले
जाने में कामयाब हुए। इन आतंकी
बलों को खाना
पहुंचाने
के लिए हेलिकाप्टर
फिर एक बार
वहां आया था। लेकिन
नीचे मौजूद भाड़े के कोबरा
बल प्रतिरोध से डरकर
लेने के लिए
वहां तक आ
भी नहीं सके।
इससे हेलिकाप्टर
द्वारा
गिराया
गया खाना, रोटियां,
बिस्कुट
आदि को पीएलजीए
और जनता ने
जब्त कर लिया।
साफ जाहिर है कि
अगर यह प्रतिरोध
नहीं होता तो और
ज्यादा
तबाही होने वाली थी।
16 की रात
को सशस्त्र बलों की कुछ
टुकडि़यां
कर्कावेड़ा
के जंगल में
सो गईं। कुछ
अन्य टुकडि़यां
जटवार की तरफ
ही जंगल में
रुक गईं। उनका पहला बैच इरपानार के जंगल
से होकर गुरमंजूर
गांव पहुंच गया। वहां पर किसी
काम पर जा
रहे तीन गुरिल्लों की एक
टीम दिख गई तो
सरकारी
बलों ने उन
पर अंधाधुंध गोलीबारी
की और मोर्टार
के गोले दागे।
हालांकि
गुरिल्ले
सकुशल पीछे हट गए।
इस तरह यह
टुकड़ी
17 के दोपहर तक सोनपुर
पहुंच गई। वहां उनके
लिए हेलिकाप्टर
से खाना पहुंचाया
गया। उसके बाद वे सब
कुंदला
गांव में पहुंच गए। 18 की
सुबह एक और
टुकड़ी
निकलकर
कर्कावेड़ा
के जंगल से
इरपानार,
गुरमंजूर
गांवों
के बगल से
चलकर सोनपुर पार करके कुंदला
पहुंच गई। कुंदला से लेकर
कुरुसनार
बेस कैम्प तक पूरी
सड़क में पुलिस व अर्धसैनिक
बलों को उतारकर
अभियान
में शामिल बलों को सुरक्षित
बाहर निकालने
की व्यवस्था की गई।
इस तरह सभी
टुकडि़यां
18 मार्च तक नारायणपुर
पहुंच गईं।
इस हमले
में शामिल लोगों में कुछ स्थानीय
दुश्मनों
को, जो एसपीओ
और मुखबिरों के रूप
में काम कर रहे
हैं, जनता ने चिन्हित
किया। दल्लू उर्फ अजय (फरसावेड़ा),
केसा बहरा (कुत्तुल),
टांगरू
और उसका बेटा
(तोके), कुम्मे, राजू (बालेवेड़ा),
बंडी, मणिराम, दासू (वड़पेंदा),
डोलू, वारलू (पोदेवेड़ा
गांव के दो
भाई), रामू गुरूजी (ताकिलोड़)
- ये सभी इसी इलाके
के हैं। अलग-अलग मौकों पर विभिन्न
कारणों
से जनता का
दुश्मन
बन शहरों में जाकर
ये लोग भाड़े
के हत्यारे बनकर भाड़े के बलों
के लिए आंख
व कान
की तरह काम
कर रहे हैं।
गिरफ्तार लोगों को छुड़ाने
के लिए उनके
परिजन नारायणपुर
गए। इनमें से दो
लोगों को 21 की शाम
को छोड़ दिया
गया। तोके गांव के वत्ते
वड्डे नामक किशोर को छोड़ने
के बदले उनके
माता-पिता को 3,000 रुपए का
घूस देना पड़ा। कोड़ेनार
के पुजारी को छुड़वाने
के लिए उनके
परिजनों
ने पुलिस को 2,000 रुपए
दिए। पुलिस ने अपनी
इस ‘कामयाबी’ के सबूत
के तौर पर
कुल 13 लोगों - नारायणपुर
जिले में तीन और
इंद्रावती
इलाके (बीजापुर
जिला) में 10 - की गिरफ्तारी
दिखाई।
नारायणपुर
में जिनकी गिरफ्तारी
दिखाई गई उनमें
ईकोनार
का छन्नू पोदाड़ी, गोडेलमरका
का बिटिया और घासी
नामक एक और
व्यक्ति
शामिल हैं। लेकिन बिटिया के बड़े
भाई लालसू का कोई
अता-पता नहीं है।
कथित गिरफ्तार
‘माओवादियों’
में उनका नाम नहीं है।
उन्हें
रिहा भी नहीं
किया गया। गांव के लोग
कह रहे हैं
कि पकड़ते ही उसे
पुलिस ने बहुत
मारा था। यह भी
प्रचार
हुआ है कि
पुलिस जाते समय अपने साथ
दो लाशें भी ले
जा रही थी।
तमाम जनता आशंकित है कि
शायद लालसू को पुलिस
ने रास्ते में ही मार
डालकर लाश को दफन
किया होगा। लालसू की पत्नी
गोद में नन्हे बच्चे को लेकर
अनिश्चितता
की स्थिति में नारायणपुर और जगदलपुर
का चक्कर काट रही
है जबकि उसे
नहीं मालूम कि उसका
पति जिंदा है भी
या नहीं। ऊपर से
उसकी बच्ची को बुखार
है!
हमले के
बाद मीडिया से बात
करते हुए एसपी मयंक
श्रीवास्तव
गर्व से फूले
नहीं समा रहा था।
उसने घोषणा की कि
अभियान
के दौरान गुरिल्लों के साथ
उनकी 8 बार मुठभेड़ें हुईं जिसमें कुल 12 से 15 माओवादी मारे गए होंगे।
हालांकि
उसने अपने झूठ में यह
भी जोड़ा कि एक
भी लाश उन्हें
नहीं मिली है। लेकिन उसने तोके
गांव के डुंगा
धुरवा का कोई
जिक्र नहीं किया जिसे सरकारी बलों ने रायफलों
की कुंदों से पीट-पीटकर मार डाला। पुलिस अपनी वीरता
का खुद ही
बखान करते हुए चाहे जितने
ऊंचे दावे करे, माड़ की जनता
ने उनकी कायरता
को प्रत्यक्ष देख लिया है
कि किस तरह
इस अभियान के दौरान
जहां भी सशस्त्र
गुरिल्लों
के साथ आमना-सामना हुआ, वे कैसे
एक कदम तक
आगे न बढ़ते
हुए यूं ही अंधाधुंध
गोलीबारी
करते रहे। जनता ने साफ
तौर पर समझ
लिया कि निहत्थी
जनता पर अंधाधुंध
गोलियां
बरसाना,
गांवों
पर हमले कर
जुल्म व तबाही
को अंजाम देना ही
उनका ‘महान कार्य’ है।
एक ओर
गांवों
पर अमानवीय हमले करते हुए ही कई
लोगों के हाथ
में कुछ रुपए-पैसे
रखना इस हमले
में एक नए
पहलू के रूप
में देखने को मिला
है। साम्राज्यवादी
एलआईसी
(कम तीव्रता वाला संघर्ष) की रणनीति
में ‘जनता के दिलोदिमाग
को जीत लेने’
की एक योजना
भी शामिल है। इसके
लिए केन्द्रीय
व राज्य
के पुलिस बलों के
लिए सरकारें
सैकड़ों
करोड़ रुपए मंजूर कर रही
हैं। दण्डकारण्य
में डेरा जमाए हुए विभिन्न अर्धसैनिक
बल इन पैसों
से सिविक एक्शन प्रोग्राम
(सीएपी) के नाम
पर जनता को
इकट्ठा
कर कम्बल, कपड़े, बरतन, दवाईयां,
सायकिल
आदि चीजें बांट रहे हैं। नहीं
लेने पर डरा-धमका रहे हैं। वे
भ्रमित
हैं कि ऐसा
करके वे जनता
को यकीन दिला
सकेंगे
कि वे जनता
के लिए मौजूद
हैं। 22 फरवरी को हुई
मीटिंग
में चिदम्बरम
ने जिन बिंदुओं
पर जोर दिया
उनमें से एक
है - ‘दमन की कार्रवाइयों
के दौरान जनता की
भावनाओं
को ध्यान में रखना
चाहिए।’
वाह! माड़ पर इस
ताजा हमले में उन्होंने जनता की भावनाओं
का कितना अच्छा सम्मान किया और इसमें
‘सिविक एक्शन’ का कितना
बढि़या
तालमेल
किया!
इस अभियान
के दौरान पुलिस वालों ने जगह-जगह पर दुष्प्रचार
भरे पर्चे छोड़ दिए हैं। इसे
गांवों
में मौजूद संगठन कार्यकर्ताओं
और कमेटियों के नाम
पुलिस की अपील
बताया गया। इसमें पार्टी नेतृत्व
पर जहरीला हमला करते हुए, क्रांतिकारी
आंदोलन
की विकास के विरोधी
के रूप में
निंदा करते हुए, क्रांतिकारी
जनताना
सरकार की गतिविधियों
पर उलटे-सीधे
आरोप लगाए गए। आखिर उनका
‘मनोवैज्ञानिक
युद्ध’ झूठों और मनगढ़ंत
कहानियों
पर ही तो
निर्भर
है जोकि ‘जनता
पर युद्ध’ का हिस्सा
है!
मयंक श्रीवास्तव
ने बिना कुछ
छुपाए साफ तौर पर
बताया कि क्रांतिकारी
जनताना
सरकार (आरपीसी) द्वारा संचालित
स्कूलें,
कृषि क्षेत्र
और हथियार सुधारने
वाले कैम्प उनके निशाने पर थे।
इंद्रावती
इलाके और जटवार
के आसपास आरपीसी द्वारा संचालित
स्कूलों
पर हमले के
समय छात्र और शिक्षक
सकुशल बच निकल
तो गए, पर
वहां बच्चों के लिए
रखे गए आटा,
मटर आदि खाने-पीने
की चीजों, पुस्तकों और ईकोनार
में एक प्रिंटर
को सरकारी सशस्त्र
बलों ने लूट
लिया। इंद्रावती
इलाके में नायुमपारा के पास
पुलिस बलों ने दो
दिन डेरा लगाकर जनता के श्रम
से उगाई गई
सब्जियों
को मनमाने हिसाब से खा
लिया। हद तो
यह है कि
जाते-जाते बची-खुची सब्जियों
को नोंच दिया
और पौधों को काट
डाला।
पुलिस अधिकारियों
के घमण्ड से भरे
बयान, इस हमले
में उनकी ‘कामयाबी’
के रूप में
पेश की गई
गिरफ्तारियां
और उनके घोषित
लक्ष्य...
इन सबसे यह
स्पष्ट
हो जाता है
कि यह हमला
किसके खिलाफ था और
क्या हासिल करने का लक्ष्य
था। स्पष्ट है कि
यह हमला जनता
पर ही था।
यह ‘जनता पर
युद्ध’ (आपरेशन ग्रीनहंट)
का ही हिस्सा
है जो 2009 के
मध्य से जारी
है। भाकपा (माओवादी)
के नेतृत्व में आत्मनिर्भरता
और सहकारिता के आधार
पर दण्डकारण्य
में जनता द्वारा सामने लाए जा रहे
विकास के वैकल्पिक
नमूने को मिटाना
ही इस हमले
का मकसद था।
दरअसल यह आने
वाले दिनों में सेना द्वारा
पूर्ण स्तर पर किए
जाने वाले हमले का पूर्वाभ्यास
था। यह एक
चेतावनी
भी है। जन
समुदायों
को शासकों की चेतावनी
है कि माओवादी
राजनीति
को आत्मसात कर शासक
वर्गों
द्वारा
लागू विनाशकारी
व विस्थापनकारी
नीतियों
और झूठे विकास
के नमूने को ठुकराने
से यही हश्र
होगा। यह एक
चुनौती
है। वह यह
है कि इस
मुख्य रूप से देशी
व परम्परागत
हथियारों
से लैस तथा
सिर्फ जनता पर विश्वास
रखकर लड़ने वाली सेना और उसकी
अगुवाई
में डटकर खड़ी जनता क्या इस राजसत्ता
का मुकाबला कर पाएंगी
जो संख्या की अधिकता,
आधुनिक
हथियार
और अत्याधुनिक
तकनीक के बल
पर युद्ध को जबरन
थोप रही है। हां, हमारा, यानी हमारी जनता, हमारी जनसेना और नेतृत्व
दे रही हमारी
पार्टी
का दृढ़ विश्वास
है कि जरूर
मुकाबला
करेंगे।
स्पष्टता
के लिए हम
फिर एक बार
याद दिलाना चाहते हैं कि जनता,
सिर्फ जनता ही इतिहास
का निर्माण करती है और
युद्ध का नतीजा
तय करती है।
हम आपसे क्या उम्मीद करते हैं?
आप सभी
इस अन्यायपूर्ण
युद्ध का पुरजोर
विरोध करें। शासकों की शांति
की खोखली बातों और ‘विकास’
की बकवास को खारिज
कर न्याय के पक्ष
में दृढ़ता से खड़े
होवें।
यह हमला आज
भले ही कथित
नागरिक
समाज से काफी
दूर धकेले हुए अत्यंत पिछड़े इलाके में हुआ हो,
लेकिन इस हमले
को अंजाम देने वाली
ताकतों
का पंजा सिर्फ
यहीं तक सीमित
नहीं होगा। आप सभी
को यह समझना
चाहिए कि यह
युद्ध सिर्फ माओवादियों
पर नहीं है,
जैसा कि वे
कह रहे हैं।
यह उन तमाम
आदिवासियों
पर युद्ध है जो
जल-जंगल-जमीन
पर अधिकार का नारा
बुलंद कर रहे
हैं। यह देश
के उन तमाम
लोगों पर युद्ध
है जो आत्मनिर्भरता,
जनवाद, शांति और संप्रभुता
को चाहते हैं। इसके
पीछे साम्राज्यवाद,
खासकर अमेरिकी
साम्राज्यवाद
खड़ा है। कार्पोरेट डाकू मौजूद हैं। उसके पक्ष में कार्पोरेट मीडिया है। अगर इस
युद्ध को अभी,
यहीं पर... इन्हीं इलाकों में जहां प्राचीन
मानव समुदाय बसे हुए हों
जो महान सांस्कृतिक
व संघर्षशील
धरोहर रखते हों, अगर इसे रोका
नहीं जाता, अगर हम अभी
इसी वक्त पूरे जोर से आवाज
नहीं उठाते हैं, अगर हम इस
हमले को फौरन
रोकने का नारा
बुलंद नहीं करते हैं, तो हम
अपनी प्राकृतिक
सम्पदाओं
को नहीं बचा
सकेंगे।
यह महज माड़
क्षेत्र
में जीने वाले गुमनाम से आदिवासियों
के अस्तित्व से जुड़ा
हुआ सवाल नहीं है, बल्कि पूरे देश
के भविष्य से जुड़ा
हुआ सवाल भी है।
इसलिए, आइए! इस
हिंसात्मक
अभियान
से सम्बन्धित तथ्यों को जानने
के लिए तथ्यान्वेषण
टीमों के साथ
आइए। पीडि़त जनता से मिलिए।
उनको मिले अपमानों
और घावों को खुद
अपनी आंखों से देखें
और उनकी जुबानी
सुनिए।
उनके लिए आवश्यक हार्दिक,
आर्थिक
और पादार्थिक सहायता देने के लिए
आगे आइए। यहां की जनता
अपने खून पसीने से विकास
का जो वैकल्पिक
नमूना सामने ला रही
है, उसका हाथ
उठाकर स्वागत करिए। उसे बचाने के लिए
अपने हाथ भी अड़ाइए!
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
30 मार्च
2012