भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
30 मार्च 2012
देश के तमाम जनवादियों और देशभक्त जनता से अपील!
माड़ क्षेत्र में सरकारी सशस्त्र बलों द्वारा चलाए गए
आतंकी अभियान की निंदा करो!
देश की अत्यंत दबी-कुचली जनता पर जारी
अन्यायपूर्ण युद्ध को रोकने आगे आओ!
मार्च माह के पहले पखवाड़े में माड़ इलाके की 20-25 आदिवासी बस्तियों को सरकारी सशस्त्र बलों ने अपने लौह पैरों से रौंद डाला। इससे आए दिन आदिवासियों के ‘विकास’ की रट लगाने वाली केन्द्र व राज्य सरकारों का खूंखार व फासीवादी चेहरा फिर एक बार उजागर हुआ। माड़ क्षेत्र पर अब तक के इस सबसे बड़े आपरेशन में 3,000 से ज्यादा सशस्त्र बलों को लगाया गया। इसे ‘आपरेशन विजय’ और ‘आपरेशन हाका’ का नाम दिया गया। केन्द्रीय गृहमंत्री के नेतृत्व में नक्सल प्रभावित राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और मुख्य सचिवों की 22 फरवरी को हुई बैठक में लिए गए फैसलों के मुताबिक ही इस भारी दमन अभियान को अंजाम दिया गया। करीब दो हफ्तों तक चले इस अभियान में एक आदिवासी की हत्या की गई। एक और आदिवासी का अपहरण किया गया जिसका अभी तक कोई अता-पता नहीं है। करीब दो दर्जन गांवों के कई निर्दोष आदिवासी हिंसा, लूटपाट, तबाही व मारपीट का शिकार हो गए।
सीआरपीएफ (कोबरा), छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र के राज्य पुलिस बल, सी-60 कमाण्डो, एसटीएफ व एसपीओ के संयुक्त बल छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और बीजापुर जिलों से तथा महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले से कई टुकड़ों में बंटकर एक साथ निकले थे। जहां सीआरपीएफ का डीजी विजयकुमार, छत्तीसगढ़ पुलिस का मुखिया अनिल एम. नवानी और महाराष्ट्र पुलिस का डी.जी. सुब्रह्मण्यम ने इस पूरे आपरेशन की रूपरेखा तैयार की, वहीं छत्तीसगढ़ का एडीजी (नक्सल) रामनिवास, सीआरपीएफ का आईजी (छत्तीसगढ़ प्रभारी) पंकज सिंह और बस्तर आईजी टीजे लांगकुमेर ने नारायणपुर के पास कुरुसनार बेस कैम्प में डेरा जमाकर इसकी देखरेख की। नारायणपुर एसपी मयंक श्रीवास्तव, बीजापुर एसपी नारायण राजेन्द्रदास समेत कई अन्य एसपी स्तर के अधिकारियों ने इस अभियान का प्रत्यक्ष नेतृत्व किया। महाराष्ट्र की सीमा से जुड़े माड़ के पश्चिमी भाग से, बीजापुर जिले से जुड़े दक्षिणी भाग से, यानी इंद्रावती नदी पार से तथा माड़ के उत्तर-पूर्वी दिशा में स्थित नारायणपुर जिला मुख्यालय से इस संयुक्त अभियान को योजनाबद्ध ढंग से चलाया गया।
पुलिस के पास पहले से मौजूद एसपीओ और अन्य मुखबिरों को लेकर, जी.पी.एस., यू.ए.वी. (मानवरहित विमान) आदि अत्याधुनिक उपकरणों से लैस होकर उन्होंने जंगली रास्तों से 40-50 किलोमीटर तक चलकर एक साथ कई गांवों में हमला बोल दिया। महाराष्ट्र की ओर से आए सशस्त्र बलों ने 14 मार्च को गोडेलमरका गांव और 15 मार्च को ईकोनार गांव पर हमला किया। बीजापुर जिले से आए पुलिस बलों ने 11-15 मार्च के बीच ताकिलोड़, रेकावाई, वेड़मा, डुंगा, कुमनार, ताडि़बल्ला, कुम्मम समेत करीब 10-12 गांवों में हमला किया। नारायणपुर से आए सशस्त्र बलों ने 15-16 मार्च को कच्चापाल, तोके, कोडेनार, जटवार आदि गांवों में हमला किया। जहां गांव तोके में सरकारी बलों ने डुंगा धुरवा की हत्या की वहीं गांव गोडेलमरका के लालसू नामक आदिवासी युवक की हत्या की आशंका जताई जा रही है। कच्चापाल के सोनू और गोडेलमरका की जैनी पर गोलियां बरसाकर घायल किया। इसके अलावा हर उस गांव में, जहां सरकारी बलों ने कदम रखा, लूटपाट, मारपीट, घरों को जलाना, तबाही आदि करतूतों को अंजाम दिया गया।
इंद्रावती नदी के दक्षिणी भाग में पड़को गांव में सरकारी बलों ने एक खेत को तबाह कर दिया। यहां पर ग्रामीण सामूहिक रूप से साग-सब्जियां, मकई आदि की खेती कर रहे थे। इसी गांव के पास जंगल में क्रांतिकारी जनताना सरकार द्वारा संचालित स्कूल पर भी सैकड़ों सरकारी बलों ने हमला किया। हमले की आशंका के मद्देनजर स्कूल के तमाम बच्चे और शिक्षक पहले ही खाली कर चुके थे। पुलिस ने दो दिनों तक वहीं डेरा डाला और आतंक का तांडव किया। जटवार, ईकोनार और तोके में भी इसी तरह के हमले किए। इस अभियान से पूरे माड़ क्षेत्र की जनता में दहशत और तनाव का वातावरण निर्मित हो गया। इस अभियान की सफलता के रूप में जिन 13 लोगों को ‘गिरफ्तार माओवादी’ के रूप में चित्रित किया गया है, वे सभी आम ग्रामीण ही थे। गांवों में हमलों के दौरान जो भी व्यक्ति उनके हत्थे चढ़ा उसे उठा लिया गया। (इस अपील के साथ संलग्न रिपोर्ट में हमले का पूरा ब्यौरा दिया जा रहा है।)
जाहिर है यह सब पिछले ढाई सालों से जारी आपरेशन ग्रीन हंट यानी ‘जनता पर युद्ध’ का ही हिस्सा है। माड़ क्षेत्र पर इस तरह का अभियान चलाने का मकसद है जनता को भयभीत कर गांवों से भगाना। दरअसल इस पूरे क्षेत्र को सेना को सौम्पने की तैयारियां चल रही हैं। यहां पर मौजूद माडि़या समुदाय पर, जोकि अत्यंत प्राचीन मानव समुदायों में से एक है, अब अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। सरकारें भले ही यह दावा कर रही हों कि उनका मकसद ‘अबूझमाड़ को माओवादियों के कब्जे से मुक्त करवाना’ है, पर सच्चाई यह है कि यह हमला गांवों और जनता पर किया गया था। खेतों पर, स्कूलों पर, घरों पर किया गया था। माओवादी आंदोलन के दौरान जनता द्वारा निर्मित हो रहे विकास के वैकल्पिक नमूने पर किया गया था।
माड़ क्षेत्र पर हमले कर इस पर नियंत्रण बनाने के लिए शोषक सरकारें आखिर क्यों इतनी उतावली हो रही हैं? क्योंकि, जाहिर है, यह इलाका अत्यंत मूल्यवान खनिज सम्पदाओं का खजाना भी है। इसके बगल में ही रावघाट की पर्वतमाला है जहां पर फौरन ही लौहे का उत्खनन शुरू करने की कोशिशें तेजी से चल रही हैं। इस क्षेत्र पर खासकर टाटा, एस्सार आदि कार्पोरेट घरानों की नजरें हैं। इसी इलाके के अंतर्गत आने वाले आमदायमेट्टा क्षेत्र में खदान शुरू करने के लिए नेको जयस्वाल्स कम्पनी एड़ी चोटी एक कर रही है। ढेर सारी कार्पोरेट कम्पनियां ताक लगाए बैठी है कि इस इलाके से आदिवासियों को धक्का मारकर भगा दिया जाए। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि माओवादी आंदोलन के चलते यह काम आसानी से होने वाला नहीं है। इसीलिए वे माओवादी संघर्ष को कुचलने की बातें कर रहे हैं। साफ जाहिर है इस अभियान के पीछे यहां के जंगल-पहाड़ों में निक्षिप्त अपार प्राकृतिक सम्पदाओं को लूटने-खसोटने की साजिशें छिपी हुई हैं जिसका सम्बन्ध दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों और साम्राज्यवदियों की शोषणकारी नीतियों से है। खासकर अमेरिकी साम्राज्यवाद हमारे देश के अंदरूनी मामलों में खतरनाक स्तर तक दखल दे रहा है। हाल ही में पेंटगान ने खुलासा किया है कि उसके स्पेशल फोर्सेस (विशेष बल) भारत में मौजूद हैं जहां वे विद्रोह-विरोधी गतिविधियों में भाग ले रहे हैं। यानी देश के दलाल शासकों को हमारी प्राकृतिक सम्पदाओं को कार्पोरेट डकैतों के हवाले करने का रास्ता साफ करने के लिए देश की संप्रभुता तक को गिरवी रखने से परहेज नहीं है!
देश के तमाम प्रगतिशील, जनवादी व क्रांतिकारी संगठनों, मानवाधिकार संगठनों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों, मीडियाकर्मियों, कलाकारों, फिल्मकारों, किसानों, मजदूरों, छात्रों व अध्यापकों - सभी से हमारी विनम्र अपील है कि आप माड़ क्षेत्र में ‘आपरेशन विजय’ और ‘आपरेशन हाका’ के नाम से छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र की राज्य सरकारों और केन्द्र की यूपीए सरकार द्वारा मचाए गए आतंकी व हिंसात्मक अभियान की निंदा करें। इस पूरे अभियान पर हमारी स्पेशल जोनल कमेटी द्वारा तैयार रिपोर्ट को पढ़ें और इसका प्रचार व प्रकाशन करें। सभा, जुलूस, विरोध प्रदर्शन, प्रेस मीट, हस्ताक्षर अभियान आदि विभिन्न रूपों में इस हमले के प्रति अपना विरोध दर्ज करें। सच्चाई को जानने के लिए इस हमले का शिकार हुए गांवों का दौरा करें। इस अभियान के दौरान गिरफ्तार 13 निर्दोष आदिवासियों समेत माओवादियों के नाम पर छत्तीसगढ़ व विदर्भ के जेलों में रखे गए तमाम आदिवासियों को बिना शर्त रिहा करने की मांग करें। इस अभियान के तहत हुई डुंगा की हत्या, लालसू को लापता करने की घटना समेत तमाम अपराधों के लिए जिम्मेदार पुलिस व अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों को दण्डित करने की मांग करें। देश की अत्यंत शोषित व उत्पीडि़त जनता पर शोषक सरकारों द्वारा चलाए जा रहे इस अन्यायपूर्ण युद्ध - आपरेशन ग्रीन हंट को फौरन बंद करने की मांग करें। ‘प्रशिक्षण’ के नाम पर बस्तर क्षेत्र में तैनात हुई सेना को वापस बुलाने की मांग करें।
(गुड्सा उसेण्डी)
प्रवक्ता,
दण्डकारण्य
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