क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन (केएएमएस)
दण्डकारण्य
प्रेस विज्ञप्ति
3 मार्च 2012
8 मार्च - अंतरराष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस जिंदाबाद!
सरकारी हिंसा के खिलाफ प्रतिरोधी संघर्ष तेज करो!
8 मार्च के मौके पर गांव-गांव में सभा, जुलूस, रैली व प्रदर्शनों का आयोजन कर
कामरेड रनिता की बहादुराना लड़ाई को एक आदर्श नमूने के तौर पर ऊंचा उठाओ!
‘8 मार्च’ दुनिया भर में संघर्षरत जनता, खासकर महिलाओं के लिए प्रेरणादायक दिन है। 1908 में इसी दिन न्यूयार्क की महिला मजदूरों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। महिलाओं के इस संघर्ष से प्रेरणा लेकर जर्मनी की कम्युनिस्ट नेत्री क्लारा जेटकिन ने 1910 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने हेतु आह्वान किया था जिसके अनुसार हर साल इसे दुनिया भर में मनाया जा रहा है। इसी के तहत हम भी समूचे दण्डकारण्य में हर साल 8 मार्च को संघर्ष के संकल्प दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं।
8 मार्च को मनाने का मतलब किसी तीज या त्यौहार मनाना नहीं है, बल्कि सदियों से संघर्षरत महिलाओं की अनमोल विरासत को जारी रखना है। उसे भावी पीढि़यों तक पहुंचाना है। आज दण्डकारण्य की महिलाएं अपनी मुक्ति के लिए लड़ रही हैं। दण्डकारण्य की महिलाओं की मुक्ति देश की तमाम शोषित जनता की मुक्ति से जुड़ी हुई है। महिलाओं की मुक्ति का मतलब है सामंतवाद, दलाल नौकरशाह पूंजीवाद और साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकना; पितृसत्ता का अंत करना; सही अर्थों में जल-जंगल-जमीन पर अपना अधिकार कायम करना।
इसी लक्ष्य से आज यहां महिलाएं क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन (केएएमएस) में संगठित हो रही हैं। साथ ही, पार्टी, पीएलजीए, क्रांतिकारी जनताना सरकार और विभिन्न विभागों में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपने वर्गीय बंधुओं के कंधे से कंधा मिलाकर जनयुद्ध को आगे बढ़ा रही हैं। इस क्रम में वे कई कुरबानियां देकर अपने खून से नए इतिहास का निर्माण कर रही हैं।
दूसरी ओर, शोषक शासक वर्ग 8 मार्च से, महिला संगठनों से या क्रांतिकारी महिला आंदोलन से खौफ खाए हुए हैं। वो माओवादी आंदोलन को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में चित्रित कर उसके खिलाफ देश भर में भारी सरकारी दमनचक्र चला रहे हैं जोकि आपरेशन ग्रीन हंट के नाम से चर्चित है। खास बात यह है कि इसके तहत महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है। जन संगठनों व पार्टी की कार्यकर्ताओं के अलावा आम महिलाएं भी इस पाशविक सरकारी हिंसा का शिकार बनाई जा रही हैं।
कई महिलाओं और आंदोलनकारियों को पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों द्वारा गिरफ्तार करना, यातनाएं देना, जेलों में बंद करना, फर्जी केसों में फंसाकर कठिन सजाएं सुनाना, बलात्कार, हत्याएं आदि आम हो गईं। केएएमएस की नेत्री कामरेड निर्मला समेत कई महिला कार्यकर्ता सालों से जेलों में बंद हैं। वहीं कामरेड मालती को एक फर्जी केस में दस साल की सजा दी गई। इसके अलावा हत्यारे गिरोहों का गठन कर महिलाओं पर हमले किए जा रहे हैं। इस तरह महिलाओं पर सरकारी हिंसा में आए दिन बढ़ोतरी हो रही है। हम सभी जानते हैं कि ठीक एक साल पहले सशस्त्र बलों द्वारा दक्षिण बस्तर के चिंतलनार इलाके में मचाए गए आतंकी अभियान के तहत महिलाओं पर कितनी हिंसा हुई थी। मोरपल्ली गांव की हेमला मूडे नामक महिला के साथ सशस्त्र बलों ने उसकी दो बेटियों की आंखों के सामने ही बलात्कार किया। गंगा नाम की एक और महिला के साथ भी ‘सुरक्षा’ बलों ने बलात्कार किया। माडि़वी भीमे नामक 80 साल की बूढ़ी औरत के साथ भी पाशविकता का प्रदर्शन करते हुए खूब पिटाई की। जाते-जाते माडि़वी लक्के नामक युवती को उसके पिता और भाई के साथ पकड़कर चिंतलनार थाना ले गए जहां उन्होंने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। पुलानपाड़ गांव में भी एक महिला के साथ सरकारी आतंकी बलों ने बलात्कार किया।
पिछले दिनों मीना खल्खो की हत्या और सोनी सोड़ी की गिरफ्तारी व यातनाओं के मामलों से महिलाओं पर हो रही सरकारी हिंसा का भयावह रूप देखने को मिला। मीना खल्खो सरगुजा जिले के करचा गांव की पंद्रह साल की आदिवासी किशोरी थी। 5 जुलाई 2011 को वह पुलिसिया क्रूरता का शिकार हो गई। एक नाबालिग पर किए गए अमानवीय अत्याचार को दबाने के लिए पुलिस ने उसे गोली मार दी। पुलिस ने यह बयान दिया था कि उसकी मौत नक्सलवादियों के साथ हुई एक मुठभेड़ में हुई थी। बाद में जब इस बात का सबूत सामने आया कि मीना के साथ यौन अत्याचार हुआ था, तब इसके चरित्र-हनन की भी घिनौनी कोशिश की। सरगुजा रेंज के आइजी राजेश मिश्र ने निर्लज्जता से घोषणा की कि शव पर यौन अत्याचार होने के सबूत मिलने का यह अर्थ नहीं है कि बलात्कार पुलिस ने किया। हत्या के बाद मीना खल्खो के चरित्र पर कालिख पोतने की साजिश राजसत्ता की कट्टर पितृसत्तात्मक विचारधारा का परिचायक है।
स्कूली शिक्षिका के रूप में कार्यरत 36 वर्षीया सोनी सोड़ी पर पुलिस ने माओवादी आंदोलन से जुड़े होने और एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी एस्सार ग्रुप से पैसा लेकर माओवादियों तक पहुंचाने का आरोप लगाकर अक्टूबर 2011 में गिरफ्तार किया। उन्हें दो दिनों तक अवैध हिरासत में रखकर पुलिस ने क्रूरतम यातनाएं दीं। अकथनीय यौन हिंसा का शिकार बनाया। बाद में उन्हें जेल में डाल दिया गया। रमन सरकार ने महिला संगठनोें की कार्यकर्ताओं को जेल में सोनी सोड़ी से मुलाकात करने की भी इजाजत न देकर अपने फासीवादी चरित्र को दोहराया। सोनी सोड़ी की गिरफ्तारी और पुलिसिया यातनाओं के खिलाफ कई संगठनों ने आवाज उठाई।
इस बढ़ती सरकारी हिंसा का महिलाएं निर्भीकता के साथ प्रतिरोध कर रही हैं। कामरेड रनिता की वीरतापूर्ण लड़ाई इस प्रतिरोध की अöुत मिसाल के रूप में रहेगी जिन्होंने अकेली होकर भी सैकड़ों की संख्या में घेरे हुए विशेष कमाण्डो बलों का डटकर मुकाबला किया। कामरेड रनिता का असली नाम रामको हिच्चामी था जो गढ़चिरोली जिले के एटापल्ली तहसील के ग्राम पोटावी जेवेल्ली में पैदा हुई थीं। करीब 35 साल की यह कामरेड 1999 से क्रांतिकारी आंदोलन में पूर्णकालीन कार्यकर्ता बनी थीं जिन्हें बाद में चादगांव एरिया क्रांतिकारी जनताना सरकार की अध्यक्ष चुन लिया गया। 20 अगस्त 2011 को जब यह कामरेड इसी इलाके के माकड़चुव्वा गांव गई थीं तब वह वहां पर पुलिस के चक्रव्यूह में फंस गईं। फिर भी बिना किसी घबराहट या भय का शिकार हुए उन्होंने पास में स्थित एक मकई के खेत की आड़ लेकर बहादुराना संघर्ष की उज्ज्वल नमूना पेश किया। पुलिस द्वारा की गई अंधाधुंध गोलीबारी, बमों की बारिश और ‘सरेंडर करो’ की चिल्लाहटों से जरा भी विचलित न होकर आखिरी दम तक अपनी राइफल से लड़ाई जारी रखी जिसमें दो कोबरा समेत तीन कमाण्डो मारे गए और चार अन्य बुरी तरह घायल हो गए। लगभग दस घण्टों तक लड़ने के बाद उन्होंने वीरगति को प्राप्त किया। उनका अनुभव गुरिल्लों के लिए अनमोल शिक्षा है। ‘महिलाएं काम व युद्ध में पुरुषों से बराबरी नहीं कर सकती’ - इस पितृसत्तात्मक धारणा को तोड़ देने वाला हथियार है।
हाल के दिनों में कुछ ऐसे वाकिए भी सामने आए जिनमें कुछ महिला गुरिल्लों ने हत्यारे गिरोहों का बहादुराना ढंग से सामना किया। ये घटनाएं महिलाओं के अदम्य साहस के चंद उदाहरण भर हैं। दण्डकारण्य में निहत्थी महिलाओं का प्रतिरोधी संघर्ष भी बिना रुके जारी है। चिंतलनार काण्ड में पुलिस के हाथों पकड़े गए लोगों को मोरपल्ली की महिलाओं ने लड़कर छुड़ा लाया था। दण्डकारण्य भर में इस तरह पुलिस के हाथों पकड़े गए लोगों को महिलाओं द्वारा छुड़ा लाने की दर्जनों घटनाएं घटी हैं। पुलिस थानों व कैम्पों में अवैध हिरासत में रखे गए लोगों को छुड़ाने के लिए महिलाएं अपनी जान की परवाह किए बगैर पुलिस से भिड़ रही हैं। कांकेर जंगल वारफेर स्कूल में प्रशिक्षण लेने वाले पुलिस जवानों द्वारा महिलाओं के साथ बलात्कार, छेड़छाड़ आदि काली करतूतें किए जाने पर आसपास के गांवों की महिलाओं ने अफसरों का घेराव कर अपना विरोध जताया।
दण्डकारण्य ही नहीं, आज देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं का प्रतिरोधी संघर्ष जारी है। लालगढ़ व नारायणपटना के जन आंदोलनों में महिलाओं की जुझारू भूमिका देखी जा सकती है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों, परमाणु संयंत्रों, खदानों, भारी बांधों और विकास के नाम पर लाई जा रही विस्थापन व विनाश की विभिन्न सरकारी नीतियों के खिलाफ जारी संघर्षों में महिलाओं की प्रभावशाली भागीदारी है जोकि स्फूर्तिदायक है।
विडम्बना है कि जो शोषक सरकारें अपने सशस्त्र बलों को उकसाकर महिलाओं के खिलाफ अंधाधुंध हिंसा और जुल्म करवा रही हैं वे भी ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मना रही हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के हर कोने में हर न्यायपूर्ण संघर्ष को कुचलने के लिए महिलाओं पर यौन अत्याचार को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वाले देश के शासक ‘महिला सशक्तिकरण’ जैसी ढोंगी बातें कर रहे हैं। 8 मार्च एक मौका है ऐसे शोषक-लुटेरों को बेनकाब करने का... उनके महिला-विरोधी चेहरे को उजागर करने का। आइए, आगामी 8 मार्च के दिन संग्रामी जोश के साथ ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाएं। महिलाओं पर जारी सरकारी हिंसा के खिलाफ देश की तमाम शोषित महिलाओं के साथ अपनी आवाज बुलंद करें।
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महिलाओं पर सरकारी दमन बंद करो! आपरेशन ग्रीन हंट को रद्द करो!
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‘प्रशिक्षण’ के बहाने दण्डकारण्य में उतारी गई भारतीय सेना वापस लो!
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मीना खल्खो की निर्मम हत्या का विरोध करो! पुलिस अफसरों को सजा दो!!
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सोनी सोड़ी को बिना शर्त रिहा करो! अत्याचारियों को सजा दो!!
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चिंतलनार बर्बरकाण्ड के असली दोषी रमनसिंह, ननकीराम, शेखर दत्त, विश्वरंजन, लांगकुमेर, कल्लूरी समेत तमाम पुलिस व कोया कमाण्डों को कड़ी से कड़ी सजा दो!
बय्या वेलादी
अध्यक्षा,
क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन (केएएमएस)
दण्डकारण्य