भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
केन्द्रीय कमेटी
प्रेस विज्ञप्ति
19 अगस्त 2011
माओवादी नेतृत्व के खिलाफ लुटेरे शासक वर्गों और
कार्पोरेट मीडिया द्वारा चलाए जा रहे जहरीले दुष्प्रचार को
रद्दी के टोकरे में फेंक दो!
आज भारत का क्रांतिकारी आंदोलन कठिन चुनौतियों का मुकाबला करते हुए जीत-हार-जीत के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। इस क्रांतिकारी आंदोलन को जड़ से सफाया करने के लक्ष्य से लुटेरे शासक वर्ग साम्राज्यवादियों के सम्पूर्ण समर्थन से बर्बर दमनकारी युद्ध चला रहे हैं। ये फासीवादी खासकर उस एलआईसी (कम तीव्रता वाला संघर्ष) की रणनीति पर अमल करते हुए प्रति-क्रांतिकारी युद्ध को चला रहे हैं जिसे अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने तैयार किया। खासकर 2009 से यूपीए सरकार ने राज्य सरकारों के साथ तालमेल कर ‘आपरेशन ग्रीन हंट’ के नाम से देशव्यापी दमनकारी युद्ध छेड़ रखा है। सोनिया-मनमोहनसिंह-चिदम्बरम-प्रणब मुखर्जी गिरोह की अगुवाई में देश की जनता के खिलाफ जारी इस अन्यायपूर्ण युद्ध में ‘दमन और विकास’ (जनता का दमन और कार्पोरेट कम्पनियों का विकास समझना चाहिए) को रणनीति के रूप में बताया जा रहा है। इसके अंतर्गत, मनोवैज्ञानिक युद्ध को एक रणनीतिक हथियार के बतौर इस्तेमाल किया जा रहा है जिसका अहम हिस्सा है क्रांतिकारी आंदोलन के नेतृत्व के खिलाफ दुष्प्रचार। इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में मीडिया को एक मुख्य साधन के बतौर इस्तेमाल किया जा रहा है। कार्पोरेट वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले मीडिया के प्रतिनिधि और शोषक वर्गों की विचारधारा का समर्थन करने वाले छद्म बुद्धिजीवी माओवादी आंदोलन पर कीचड़ उछालने वाली इस मुहिम को जारी रखते हुए दुश्मन के मनोवैज्ञानिक युद्ध में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं।
क्रांतिकारी आंदोलन का जितना लम्बा इतिहास है क्रांति-विरोधी दुष्प्रचार का भी उतना ही इतिहास है। जर्मनी के फासीवादी प्रचार मंत्री गोबेल्स, जिसने यह बताया था कि एक झूठ को सौ बार दोहराने से वह सच होकर रहेगा, के असली भारतीय अवतार के रूप में सामने आए हुए सोनिया, मनमोहनसिंह, चिदम्बरम, प्रणब मुखर्जी, रमन सिंह, नवीन पटनायक, नितीश कुमार, किरण कुमार आदि शासक तथा अरणाब गोस्वामी, चंदन मित्रा जैसे उनके प्रवक्ता मीडिया के जरिए विभिन्न रूपों में दुष्प्रचार अभियान चला रहे हैं। क्रांतिकारी सिद्धांत मार्क्सवाद के अप्रासंगिक होने से शुरू कर माओवादी नेताओं के बीच तीव्र मतभेद होने के प्रचार तक कोरी कल्पनाओं, झूठों और अर्धसत्यों से क्रांतिकारी आंदोलन के नेतृत्व व नेतृत्वकारी संस्थाओं के खिलाफ आए दिन खबरें प्रकाशित व प्रसारित कर रहे हैं। क्रांतिकारी सिद्धांत पर, क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व करने वाली हमारी पार्टी पर तथा पार्टी नेतृत्व पर गलतफहमियां, संदेह और भ्रम पैदा कर जनता और क्रांतिकारी कतारों को दिग्भ्रमित करना तथा निराशा और अविश्वास फैलाना ही इस दुष्प्रचार मुहिम का एक मात्र लक्ष्य है। लुटेरे शासक और उनका ढिंढ़ोरा पीटने वाले छद्म बुद्धिजीवी यह सपना देख रहे हैं कि इस तरह जनता को भ्रमित कर वे अपना शोषणकारी शासन बेरोकटोक जारी रख सकेंगे और साम्राज्यवाद-परस्त आर्थिक नीतियों को बिना किसी विरोध के लागू कर सकेंगे। इस श्रेणी में आने वाले कुछ पत्रकार खुफिया अधिकारियों से सांठगांठ कर कार्पोरेट मीडिया संस्थाओं के जरिए माओवादी क्रांतिकारी आंदोलन पर कीचड़ उछालते हुए घटिया किस्त की रद्दी को प्रचारित व प्रसारित कर रहे हैं। इसी का हिस्सा है 17 जुलाई 2011 को अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स आफ इंडिया’ में ‘बिट्टर डिफरेन्सेस क्राप अप बिट्वीन माओइस्ट्स पीडब्ल्यू एण्ड एमसीसी फैक्शन्स’ के शीर्षक से छपी घटिया व मनगढ़ंत कहानी।
देश की खुफिया संस्थाओं द्वारा तैयार और राखी चक्रबर्ती द्वारा लिखी गई इस कपोलकल्पित कहानी के अंदर न सिर्फ माओवादी पार्टी के नेतृत्व को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया गया, बल्कि पार्टी में पीडब्ल्यू और एमसीसी गुटों को कृत्रिम तरीके से पैदा कर उनके बीच तीखे मतभेद होने की बात लिखी गई है। देश की उत्पीडि़त जनता और दुनिया भर के क्रांतिकारी कतारों की चिर-प्रतीक्षित आकांक्षाओं के फलस्वरूप, कई समृद्ध अनुभवों के आधार पर तथा ‘काला अध्याय’ के रूप में चिन्हित किए गए एक पीड़ादायक दौर को पार करके दो क्रांतिकारी पार्टियों के बीच जो एकता निर्मित हुई है वह हमारे देश के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में एक महान व उज्ज्वल अध्याय है। सिर्फ सच्चे और निस्वार्थपूर्ण क्रांतिकारी ही इस तरह अपनी गलतियों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर जनता से माफी मांग सकते हैं और उनकी पुनरावृत्ति न हो, उस दिशा में दृढ़ संकल्प के साथ काम कर सकते हैं। इसीलिए इस सच्ची एकता से देश व दुनिया भर में उत्पीडि़त जन समुदाय व क्रांतिकारी कतार जितने उत्साहित हुए थे, उतने ही घबरा गए थे भारत के लुटेरे शासक वर्ग और उनके साम्राज्यवादी आका। गौरतलब है कि साम्राज्यवादियों का नमकहलाल गुलाम और देश का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस ऐतिहासिक एकता की पृष्ठभूमि में ही माओवादी आंदोलन को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताना शुरू किया। यह भी एक अकाट्य सच्चाई है कि इस एकता के बाद से ही देश के शासक गिरोह ने क्रांतिकारी आंदोलन पर अपने फासीवादी हमले को अंधाधुंध बढ़ाया।
शोषक शासक वर्गों की यह बहुत पुरानी चाल है कि क्रांतिकारी पार्टियों के उच्च नेताओं के बीच मनगढ़ंत मतभेद पैदा किया जाए ताकि जनता को यह झूठा एहसास दिलाया जा सके कि क्रांतिकारी आंदोलन के नेताओं में व्याप्त इस तरह के केरीरिज़्म और आपसी अंतरविरोधों के चलते ये पार्टियां भी उसे ठीक से नेतृत्व नहीं दे सकेंगी। दुनिया भर में ऐसे कई उदाहरण गिनाए जा सकते हैं जिनमें से एक है ‘टाइम्स आफ इंडिया’ में छपी यह खबर जो दशकों से निस्वार्थ रूप से जनता की सेवा कर रहे हमारे नेताओं के खिलाफ चलाए गए बेहद जहरीला दुष्प्रचार मुहिमों में से एक है। उन नेताओं में से कुछ फिलहाल जेलों में कैद हैं जिन्हें सभी सुविधाओं से वंचित कर, बूढ़ी उम्र में भी उन्हें इलाज की सुविधाएं न देते हुए राजसत्ता अपनी अमानवीयता का खुला प्रदर्शन कर रही है। शोषित जनता की मुक्ति के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले हमारे नेताओं के प्रति राजसत्ता जो दमनकारी रवैया अपना रही है वह आए दिन अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ रहा है। एक प्रकार से कहा जाए, तो इससे यह साबित होता है कि क्रांतिकारी राजनीति के बढ़ते प्रभाव को लेकर राजसत्ता कितनी आतंकित है और इसे घटाने के लिए वह किस तरह बेकार की चालें चल रही है। हमारे नेतृत्व पर लगाए जा रहे इन तमाम आरोपों को हमारी पार्टी सिरे से खारिज कर देती है और शोषित जनता व क्रांतिकारी शिविर से अपील करती है कि इसमें से एक शब्द पर भी यकीन न करें।
सभी सच्ची क्रांतिकारी पार्टियों में मत भिन्नताएं होती हैं। उनके सदस्यों में सैद्धांतिक, राजनीतिक, सांगठनिक, सैनिक, सांस्कृतिक आदि मामलों को लेकर भिन्न-भिन्न मत रहते हैं। विभिन्न विचारों को लेकर बहसें होती हैं। उन पर हर सदस्य द्वारा अपना मत प्रकट करने के बाद उन्हें अंतिम रूप दिया जाता है। क्रांतिकारी पार्टियों के भीतर लागू इस जनवादी प्रक्रिया को शासक वर्गीय पार्टियों के अंदर न हम कभी देख पाएंगे, न ही वे इसे समझ पाएंगी। इस तरह की बहसों और आलोचना-आत्मालोचना के दौर से गुजरते हुए ही एक क्रांतिकारी पार्टी अपने क्रांतिकारी तत्व को बनाए रख सकती है, न कि किसी नेता का अंधानुसरण करते हुए जैसा कि बुर्जुवाई पार्टियों में होता है। वर्ग संघर्ष के शोलों में तपकर और आलोचना-आत्मालोचना के कई सत्रों में भाग लेकर ही क्रांतिकारी खुद को फौलाद बना लेते हैं। खुफिया संस्थाएं पार्टी के भीतर मौजूद ऐसे स्वस्थ माहौल को तोड़-मरोड़कर उसके ठीक विपरीत में चित्रित करने की कोशिश कर रही हैं। पार्टी के भीतर, वह भी पीडब्ल्यू और एमसीसी गुटों के बीच तीखे मतभेद होने का प्रचार कर रही हैं ताकि जनता और कतारों को भ्रम में डाला जा सके। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केन्द्रीय कमेटी देश और दुनिया की जनता, जनवादियों और क्रांतिकारी कतारों से अपील करती है कि वे इस दुष्प्रचार का पुरजोर खण्डन करें; राजसत्ता द्वारा चली जा रही चालों के प्रति सतर्क रहें; तथा इस दुष्प्रचार को कूड़े के ढेर में फेंककर क्रांतिकारी आंदोलन के समर्थन में दृढ़तापूर्वक डटे रहें।
आखिर में, हमारी पार्टी के महासचिव कामरेड गणपति ने पिछले साल अक्टूबर में मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में पीडब्ल्यू और एमसीसी के कथित गुटों के बीच मौजूद कथित मतभेदों पर हो रहे दुष्प्रचार पर टिप्पणी करते हुए जो बात कही थी, उसे इस संदर्भ में भी पेश करना मुनासिब समझते हुए हमारी केन्द्रीय कमेटी इसे फिर एक बार दोहरा रही है।
“...पार्टी में सही विचारों और गलत विचारों के बीच संघर्ष हमेशा रहता है। हम जनवादी केन्द्रीयता और माक्र्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की रोशनी में अपने मतभेदों को हल कर लेते हैं। इसी से हमारी पार्टी के विकास का रास्ता सुगम हो जाता है। विलय के साथ हमने महान एकता हासिल की। अब हमारी पार्टी में चाहे जो भी बहसें हो जाएं और वैचारिक संघर्ष हो जाएं, वे एक एकताबद्ध पार्टी के भीतर होने वाली राजनीतिक व सैद्धांतिक बहसों के रूप में ही होंगे, पुरानी सीपीआई (एम-एल) (पीपुल्सवार) और पुरानी एमसीसीआई के बीच मतभेदों के रूप में कतई नहीं होंगे। हम निश्चित रूप से कहते हैं कि विलय के पहले वाली झड़प की स्थिति तो कभी नहीं आ सकती।”
(अभय)
प्रवक्ता
केन्द्रीय कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)