भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
केन्द्रीय कमेटी
प्रेस विज्ञप्ति
12 जुलाई 2011
जनता के लिए जान देने वाले शहीदों की कुरबानियों को ऊंचा उठाओ!
शहीदों के बलिदानों की प्रेरणा से जनयुद्ध को तेज करो -
आपरेशन ग्रीन हंट को परास्त करो!!
28 जुलाई से 3 अगस्त तक शहीद सप्ताह
सफल बनाएं!
जनता की मुक्ति के लिए अपने अनमोल प्राणों को न्यौछावर करने वाले बलिदानी वीर समूचे मानव समाज के लिए आदर्श हैं। इन वीरों की कुरबानियों की बदौलत ही उत्पीडि़त जनता कई उपलब्धियां प्राप्त कर रही है। समाजवाद-साम्यवाद के लक्ष्य के अंतर्गत, भारत में नई जनवादी क्रांति की जीत के लिए लड़ते हुए पिछले एक साल में 260 से ज्यादा पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं, पीएलजीए के योद्धाओं, जन संगठनों व जन मिलिशिया के सदस्यों और आम जनता ने अपने अनमोल प्राणों को अर्पित किया। इनमें - दण्डकारण्य में 77, बिहार-झारखण्ड-उत्तर छत्तीसगढ़ में 78, ओडि़शा में 29, आंध्र-ओडि़शा सीमा क्षेत्र में 16, पश्चिम बंगाल में 7, लालगढ़ जन आंदोलन में 36, छत्तीसगढ़-ओडि़शा सीमा क्षेत्र में 10, महाराष्ट्र में तीन और उत्तर तेलंगाना में एक शहीद शामिल हैं। इन सभी में महिला शहीदों की संख्या 30 से ज्यादा है। लुटेरे शासक वर्गों द्वारा जारी ‘जनता पर युद्ध’ को हराने तथा पल्लावित हो रही जनता की नई सत्ता को विकसित करने के लिए शत्रु-बलों से साहस के साथ लड़ते हुए जनयुद्ध को आगे बढ़ाने के दौरान इन सभी ने अपनी जान कुरबान की। भारतीय क्रांति के महान शिक्षक काॅमरेड्स चारू मजुमदार और कन्नाई चटर्जी समेत भारत की नई जनवादी क्रांति के दौरान धराशायी हुए तमाम शहीदों की याद में, हर साल की तरह 28 जुलाई से शहीद सप्ताह जोरदार ढंग से मनाने हेतु भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केन्द्रीय कमेटी समूची पार्टी, पीएलजीए, क्रांतिकारी जन सरकारों, क्रांतिकारी जन संगठनों और जनता का आह्वान कर रही है।
हमारे देश के अलावा विभिन्न देशों के जनता, जनवादी, देशभक्त, लेखक, कवि व कलाकारों द्वारा ‘जनता पर युद्ध’ (आपरेशन ग्रीन हंट) का पुरजोर विरोध किए जाने के बावजूद शोषक शासक वर्गों ने उसकी जरा भी परवाह न करते हुए ग्रीन हंट का दूसरा चरण शुरू कर अपने भाड़े के पुलिस व अर्धसैनिक बलों व प्रतिक्रियावादी गिरोहों के जरिए अंधाधुंध कत्लेआम जारी रखा। इनमें निहत्थी जनता की ही अत्यधिक संख्या में जानें गईं। लालगढ़ जन विद्रोह में शामिल आदिवासी, ओडि़शा में विस्थापन के खिलाफ जारी आंदोलनों में अगुवा भूमिका निभाने वाले, दण्डकारण्य, बिहार, झारखण्ड और उत्तर छत्तीसगढ़ के क्रांतिकारी हमदर्द और जनता शामिल हैं। इन सभी को ‘माओवादी’ बताकर पुलिस व अर्धसैनिक बलों, पश्चिम बंगाल में हर्मद बाहिनी व गण प्रतिरोध कमेटी के गुण्डों तथा दण्डकारण्य में कोया कमाण्डो, एसपीओ और सलवा जुडूम के गुण्डों ने हत्या की। पश्चिम बंगाल में लालगढ़ इलाके के नेताई गांव में सामाजिक फासीवादी सीपीएम के गुण्डों ने चार महिलाओं समेत 9 लोगों की सामूहिक हत्या की जिसके खिलाफ पूरे राज्य में व्यापक आंदोलन चला। इसी प्रकार दण्डकारण्य के चिंतलनार इलाके में कोबरा, कोया कमाण्डो और सलवा जुडूम के गुण्डों ने छह दिनों तक लगातार श्वेत आतंक चलाया था जिसके खिलाफ देश भर में जनवादियों ने आवाज उठाई। उत्तर छत्तीसगढ़ में पुलिस ने मीना खालखो नामक सोलह साल की किशोरी की सामूहिक बलात्कार के बाद फर्जी मुठभेड़ में हत्या की। इस दरिंदगी के खिलाफ जनता ने आवाज उठाई। ये सब घटनाएं अगस्त 2010 से जून 2011 के बीच घटी हैं।
इसके अलावा फर्जी मुठभेड़ें, पीएलजीए बलों पर जहर का प्रयोग, जन मिलिशिया पर शत्रु-बलों द्वारा किए गए ऐम्बुश, घेराव-हमले आदि में कई आम लोग और क्रांतिकारी मारे गए। छत्तीसगढ़-ओडि़शा की सीमा पर महासमुंद जिले के पड़कीपाली गांव के पास पीएलजीए की एक कम्पनी पर, जो क्रांतिकारी आंदोलन के विस्तार के लक्ष्य से काम कर रही थी, शत्रु-बलों ने घात लगाकर हमला किया जिसमें छह साथी शहीद हुए थे। इस मौके पर भाड़े के पुलिस बलों ने दो ग्रामीणों को भी पकड़कर क्रूरतापूर्वक कत्ल कर दिया। शत्रु-बलों के साथ हुई वास्तविक मुठभेड़ों में कुछ काॅमरेड शहीद हुए थे। कुछ काॅमरेडों और जनता को पुलिस ने लापता कर दिया है। कुछ अन्य घटनाओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों के कारण चंद काॅमरेड शहीद हुए थे।
शहीद होने वाले नेतृत्वकारी काॅमरेडों में पश्चिम बंगाल में लालगढ़ जन नेता काॅमरेड्स उमाकांत महतो, शशधर महतो, पार्टी की रीजनल कमेटी सदस्य काॅमरेड अरुण, काॅमरेड खोखन महतो; बिहार में प्लाटून कमाण्डर काॅमरेड विक्रम मुण्डा, बांका जिले के कटोरिया पुलिस थाना अंतर्गत मंजरी में हुई मुठभेड़ में शहीद हुए छह में से एक नेतृत्वकारी काॅमरेड, ओडि़शा में प्रफुल्ल नायक, लक्ष्मण मुण्डा, गागरी कडेस्की; बिहार-झारखण्ड में कम्पनी कमाण्डर काॅमरेड नितांत, ओडि़शा में काशीपुर के पास हुए घेराव-हमले में बासाधारा डिवीजनल कमेटी सदस्य काॅमरेड रवि, दण्डकारण्य में उत्तर बस्तर डिवीजनल कमाण्डर-इन-चीफ काॅमरेड नागेश, महाराष्ट्र के गोंदिया डिवीजन के कमाण्डर-इन-चीफ काॅमरेड नागेश, छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में प्लाटून कमाण्डर काॅमरेड कोसा (आयतू), सांस्कृतिक कार्यकर्ता काॅमरेड नताशा, दण्डकारण्य में प्लाटून-7 के कमाण्डर काॅमरेड महरू, जन शिक्षिका काॅमरेड चंदना और प्रेस कार्यकर्ता काॅमरेड चैते आदि शामिल हैं।
पीएलजीए द्वारा शत्रु-बलों पर किए गए हमलों के दौरान लड़ाई में कुछ काॅमरेड शहीद हुए। बिहार में लखीसराय-कजरा ऐम्बुश (29 अगस्त 2010) में सेक्शन कमाण्डर काॅमरेड रतन यादव; दण्डकारण्य में ऊसूर ऐम्बुश (21 सितम्बर 2010) में दो मिलिशिया सदस्य काॅमरेड्स ओयाम बुदरू और वेट्टि हिड़माल; तिम्मापुरम ऐम्बुश (14 मार्च 2011) में सेक्शन उप-कमाण्डर काॅमरेड मुचाकी गंगा; भेज्जी ऐम्बुश (11 जून 2011) में पीएलजीए बटालियन का पीपीसी सदस्य काॅमरेड मंगडू; महाराष्ट्र के गोंदिया डिवीजन में कोबरामेण्डा एम्बुश (19 अप्रैल 2011) में तीन काॅमरेड्स - डिवीजनल कमाण्डर-इन-चीफ नागेश, पीएलजीए सदस्य मंजू और मंगू; गढ़चिरौली डिवीजन के नारुगोण्डा ऐम्बुश (19 मई 2011) में जिसमें जनता का कट्टर दुश्मन चिन्ना वेंटा का सफाया किया गया, दो काॅमरेड्स - प्लाटून-7 कमाण्डर महरू और एरिया कमेटी सदस्य राकेश शहीद हुए थे। कोइलीबेड़ा के निकट सुलंगी ऐम्बुश (26 जून 2011) में कम्पनी-1 के दो सदस्य काॅमरेड्स जोगाल और श्यामलाल शहीद हुए थे।
साथ ही, कई दशकों से जनवादी अधिकारों के लिए जनता के पक्ष में खड़े होकर लड़ने वाले क्रांतिकारी बुद्धिजीवी व मानवाधिकार आंदोलनों के नेता काॅमरेड्स कन्नाबीरन, पत्तिपाटी वेंकटेश्वरलु, प्रोफेसर आर. सोमेश्वर राव आदि ने इस एक साल में अंतिम सांस ली। इनकी मृत्यु से भारतीय क्रांति ने अपने घनिष्ठ मित्रों और शुभचिंतकों को खो दिया।
शहीद सप्ताह के उपलक्ष्य में पार्टी के संस्थापक नेता काॅमरेड्स चारु मजुमदार और कन्नाई चटर्जी समेत आज तक शहीद हुए हजारों ज्ञात व अज्ञात स्त्री-पुरुष वीर योद्धाओं को केन्द्रीय कमेटी विनम्र श्रद्धांजली पेश करती है। उनके सपनों को साकार बनाने के लिए अविराम संघर्ष जारी रखने का संकल्प लेती है। इस मौके पर शहीदों के दोस्तों व परिजनों तथा साथियों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हुए उनके शोक में शामिल होती है। उनके तमाम प्यारे साथियों से आग्रह करती है कि वे शहीदों की कमी को पूरा करने आगे आएं।
यह साल अरब दुनिया में जबर्दस्त विद्रोहों का गवाह रहा। लाखों अरब जनता तानाशाही, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ तथा जनतंत्र के लिए अमेरिकी साम्राज्यवादियों के दलाल शासक वर्गों के खिलाफ जुझारू तरीके से लड़ रही है। इन जन विद्रोहों में हजारों जनता और जन नेताओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। विभिन्न देशों में जनतंत्र के लिए, अपनी राष्ट्रीयताओं की मुक्ति के लिए साम्राज्यवाद व सभी किस्म के प्रतिक्रियावाद के खिलाफ लड़ने के दौरान शहीद हुए तमाम वीर योद्धाओं को शहीद सप्ताह के अवसर पर भाकपा (माओवाद) श्रद्धांजली पेश करती है।
इस साल आपरेशन ग्रीन हंट को पराजित करने के लिए अपनाए गए निम्न व मध्यम स्तर के कई कार्यनीतिक प्रत्याक्रमण सफल रहे हैं। इन हमलों ने दुश्मन की आक्रमकता पर अंकुश लगाया। खासकर ऐसे समय, जब दुश्मन ने दण्डकारण्य के नारायणपुर जिले में सेना को तैनात करने की प्रक्रिया तेज कर दी, हुए इन हमलों ने लुटेरे शासक वर्गों और उनके सशस्त्र बलों को बेहद भयभीत कर दिया। इसके अलावा, झारखण्ड में हजारों शत्रु बलों द्वारा सेना की तर्ज पर किए गए हमलों को पीएलजीए बलों ने बेहद वीरतापूर्वक परास्त कर दिया।
दूसरी ओर, लालगढ़ और नारायणपटना क्षेत्रों में जन आंदोलन भीषण दमन के बीचोबीच भी दुश्मन को चुनौती देते हुए आगे बढ़ रहे हैं। देश के कई अन्य इलाकों में विस्थापन विरोधी संघर्ष जारी हैं। पृथक तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन तेज हो रहा है। साम्राज्यवादियों और उनके दलाल लुटेरे शासक वर्गों के धनाढ़्य-कार्पोरेट विकास नमूने का विरोध करते हुए जनता हर तरफ आंदोलन की राह पकड़ रही है। खुफिया कुत्ते इस तरह के संघर्षों के साथ माओवादियों के सम्बन्धों को तलाशते हुए उन्हें माओवादी रंग देने में लगे हुए हैं जिससे यह पता चलता है कि माओवादी आंदोलन से शोषक शासक वर्ग कितने डरे हुए हैं। दूसरी ओर माओवादी जनयुद्ध देश के जनवादियों और प्रगतिशील ताकतों को काफी उत्साहित कर रहा है। वीर शहीदों की कुरबानियां उन्हें प्रेरणा दे रही हैं।
प्यारे लोगो! माओवादी आंदोलन का जड़ से सफाया करने की डींगें मारते हुए सोनिया-मनमोहन सिंह-चिदम्बरम- प्रणब मुखर्जी का शासक गिरोह आपरेशन ग्रीन हंट के नाम से जनता पर एक अन्यायपूर्ण युद्ध चला रहा है। फिलहाल इसके दूसरे चरण के तहत दण्डकारण्य के बस्तर क्षेत्र में उसने सेना को उतार दिया। लेकिन वह यह कहते हुए कि यह तैनाती नहीं है, सिर्फ प्रशिक्षण के लिए सेना को भेजा जा रहा है, जनता को गुमराह कर रहा है। क्रांतिकारी आंदोलन को चंद इलाकों तक सीमित कर घेराव-उन्मूलन की रणनीति के तहत भारी दमन अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि क्रांतिकारी आंदोलन के विस्तार को रोका जा सके। मुखबिर नेटवर्क मजबूत किया जा रहा है। इसके बावजूद जन गुरिल्ला बल दुश्मन से लोहा लेते हुए क्रांतिकारी आंदोलन का नए इलाकों में विस्तार कर रहे हैं। गुरिल्ला क्षेत्रों में विकसित हो रही जनता की नई सत्ता का बचाव कर रहे हैं। दुश्मन के आतंकी हमलों से जनता के जानमाल व फसलों की रक्षा कर रहे हैं। इन सभी कार्यों में शहीदों की कुरबानियां छिपी हुई हैं। आगे हासिल की की जाने वाली महान कामयाबियों की वे हामी भर रही हैं।
महान कुरबानियों के बिना दुनिया में कोई भी क्रांति सफल नहीं हुई। आज क्रांति हमें और ज्यादा कुरबानियों के लिए तैयार होने का आह्वान कर रही है। लड़ने का साहस करेंगे तो जनता अपराजेय है। आइए, आज के अद्भुत क्रांतिकारी हालात का सुचारू रूप से फायदा उठाते हुए शहीदों के खून से रंगे सर्वहारा के लाल पताके को ऊंचा उठाकर जनयुद्ध के रास्ते में दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ेंगे! अपने देश को सामंती, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों और साम्राज्यवादी शोषण-उत्पीड़न से आजाद कर नए जनवादी भारत का निर्माण करेंगे जहां दमन व अन्याय के लिए कोई जगह न हो!
(अभय)
प्रवक्ता
केन्द्रीय कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)