भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
प्रेस विज्ञप्ति
20 जून 2011
प्रशिक्षण के नाम पर बस्तर में हो रही सेना की तैनाती के खिलाफ
4 से 11 जुलाई तक ‘विरोध सप्ताह’ मनाओ!
आदिवासी समुदायों की संस्कृति व अस्तित्व को खतरे में डालने वाली सरकारी साजिशों को नाकाम करो!
देश में जारी क्रांतिकारी आंदोलन का जड़ से सफाया करने की मंशा से सोनिया-मनमोहनसिंह-चिदम्बरम शासक गिरोह ने जो देशव्यापी दमन अभियान - ऑपरेशन ग्रीन हंट - छेड़ दिया उसके तहत अब सेना की तैनाती की प्रक्रिया शुरू हो गई। फिलहाल सिर्फ बस्तर क्षेत्र में बड़ी चालाकी के साथ ‘प्रशिक्षण केन्द्र’ के बहाने सेना की टुकड़ियों को रवाना कर दिया गया। साम्राज्यवादियों, खासकर अमेरिका के मार्गदर्शन में देश के शोषक शासकों ने खुद उनके शब्दों में इस ‘सुचारू व समन्वित कार्रवाई’ की जब ब्लू प्रिंट तैयार की थी उसी समय सेना की तैनाती की योजना बनाई गई थी। मध्य कमान के तहत ओड़िशा-छत्तीसगढ़ सब-एरिया कमान का गठन किया गया। बिलासपुर के पास चकरभाठा में 1800 एकड़ जमीन किसानों से हथियाकर सेना का ब्रिगेड मुख्यालय और विशेष बलों का प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित करने का फैसला लिया गया। वायुसेना के एअरबेस के निर्माण के लिए भिलाई के नजदीक ग्राम नंदिनी के आसपास 350 एकड़ जमीन अधिग्रहीत करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई। वायुसेना को पहले ही ‘आत्मरक्षा’ में ‘जवाबी हमले’ करने का अधिकार दे दिया गया। अब सेना को ‘प्रशिक्षण’ के लिए बस्तर रवाना करते समय भी रक्षा और विधि मंत्रालयों ने ‘मार्गदर्शक नियम’ के नाम से हमले करने के पूरे अधिकार दे दिए। लेकिन सेना के अधिकारी बड़े नाटकीय अंदाज में यह बयान दे रहे हैं कि वे यहां माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए नहीं, बल्कि ‘प्रशिक्षण’ के लिए आ रहे हैं। उनका विश्वास है कि देश की जनता इतनी बेवकूफ है कि इसे सच मान ले!
माना कि उनका
काम सिर्फ प्रशिक्षण
लेना ही है,
तब भी सवाल
यह है कि
आखिर यह ‘प्रशिक्षण’
किस लिए! किन लोगों को मारने
के लिए? क्यों इसके लिए इन जंगल-पहाड़ों में बसे हजारों
आदिवासियों
को खदेड़ने की साजिश
रची गई है?
आखिर
उसकी जरूरत ही क्या
है? यहां
दुश्मन
कौन है? आखिर किससे लड़ने के लिए
सेना को 750 वर्ग किलोमीटर
(1 लाख 85 हजार 250 एकड़ से ज्यादा)
जमीन रमनसिंह
सरकार ने ‘दान’ में
दे डाली? अगर सरकारें सेना की ‘तैनाती’ नहीं कर रही
हैं, जैसाकि वे हमें
यकीन करने को कह
रही हैं, तो इस
पर इतनी गोपनीयता
क्यों बरती जा रही
है? इतने
भारी-भरकम जमीन अधिग्रहण
से कितने गांवों को उजाड़
दिया जाएगा? कितने
हजार लोगों को अपने
रिहायशी
इलाकों
से खदेड़ दिया
जाएगा?
इस बारे में साफ-साफ
क्यों नहीं बता रहे हैं?
कथित
रूप से आदिवासी
इलाकों
में जमीन हस्तांतरण
को रोकने तथा आदिवासियों
के हितों की हिफाजत
के लिए सरकारों
ने खुद जो
कानून बनाए, वो सब
कहां गए? 5वीं अनुसूची, पेसा कानून आदि की इतना
खुल्लमखुल्ला
उल्लंघन
किस लिए? ये सारे
सवाल ऐसे हैं जिनका
जवाब देने को कोई
भी मंत्री, नेता या अधिकारी
तैयार नहीं है।
लेकिन सेना के आला अधिकारी धमकी भरे बयान दे रहे हैं कि अगर माओवादियों ने उन पर हमला किया तो वे जवाबी आक्रमण कर माओवादियों का खात्मा करेंगे। वे यह भी बता रहे हैं कि उनका आक्रमण पुलिस व सीआरपीएफ की तुलना में ज्यादा विध्वंसक होगा। मतलब साफ है - वे अब जंगलों के अंदर घुसेंगे। जंगल-पहाड़ और जमीनों से जनता को खदेड़ेंगे। माओवादियों के संभावित आक्रमण के ‘मुकाबले’ के नाम से गांवों पर हमले करेंगे। जनता पर अत्याचार करेंगे। फिर भी इसका किसी को विरोध नहीं करना चाहिए! अगर विरोध किया तो वे ‘विध्वंसक’ हमले करेंगे! उनके बयानों का निहित अर्थ साफ है! लेकिन सेना के आला अधिकारी और दिल्ली में बैठे उनके आका इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि भारत से भी बेहद गरीब देश वियत्नाम की जनता के हाथों में भारतीय सेना से कई गुना ताकतवर अमेरिकी सेना को कितनी शर्मनाक पराजय का मुंह देखना पड़ा था। वे इस सच्चाई से भी मुंह फेर रहे हैं कि लाखों सेना की तैनाती के बावजूद भी वे कश्मीर और पूर्वोत्तर क्षेत्र की जनता को दबा नहीं सके। वे इतिहास को भुला रहे हैं कि इसी भारतीय सेना का श्रीलंका में तमिल मुक्ति लड़ाकों के हाथों क्या हाल हुआ था। वे इस सच्चाई को समझ नहीं पा रहे हैं कि देश के बीचोबीच अत्यंत गरीब जनता के खिलाफ सेना को उतारकर वे दरअसल एक बहुत बड़ा पत्थर उठाने की कोशिश कर रहे हैं जो आखिरकार उनके पैरों पर ही गिरकर उन्हें कुचल डालेगा।
देश के प्राचीनतम व विशिष्ट आदिवासी समुदायों में से एक माड़िया आदिवासियों की जन्मस्थली माड़ इलाके का कुल क्षेत्रफल 4 हजार वर्ग किलोमीटर है। सेना के प्रशिक्षण के लिए प्रस्तावित 750 वर्ग किलोमीटर जमीन देने का मतलब है यहां की आबादी के एक बड़े हिस्से के अस्तित्व को खतरे में डालना। एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक इसके लिए 8 पंचायतों के 51 गांव उजाड़ दिए जाएंगे। दरअसल तीन साल पहले से ही यहां पर सरकार ने सोची-समझी साजिश के तहत राशन दुकानों को हटाकर उन्हें पुलिस थानों के अंदर बैठाया। बहाना यह बताया था कि माओवादियों को जनता से जो राशन मिल रहा है उसे रोकना है। अब चावल, नमक आदि के लिए 60-70 किलोमीटर तक का पैदल रास्ता तय करना पड़ रहा है यहां के गरीब लोगों को। इसके अलावा माड़ क्षेत्र में मौजूद आश्रमशालाओं को भी हटाकर अब दूर-दूर के इलाकों में, सड़कों के किनारे बसाया जा रहा है। एक प्रकार से इसके साथ ही माड़ के लोगों को बाहर निकालने की षड़यंत्रपूर्ण प्रक्रिया शुरू हो गई।
सेना की टुकड़ी को बस्तर रवाना करने से कुछ ही दिन पहले रावघाट खदानों का निजीकरण करने का जो फैसला लिया गया वह महज इत्तेफाक नहीं था। दसअसल शासक वर्गों के इस दमनात्मक अभियान का सीधा-सीधा रिश्ता यहां के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से है। दण्डकारण्य समेत लगभग देश के सभी इलाकों में सरकारों और कार्पोरेट कम्पनियों के बीच हुए सैकड़ों एमओयू जनता के विरोध-प्रतिरोध के चलते लम्बे समय से स्थगित हैं। खासकर माओवादी आंदोलन वाले इलाकों में कई विनाशकारी परियोजनाएं बंद पड़ी हैं। अगर बस्तर की ही बात की जाए, तो टाटा और एस्सार के प्रस्तावित स्टील कारखानों के निर्माण के लिए 6 साल बीत जाने के बाद भी जबरिया जमीन अधिग्रहण का काम शुरू नहीं हो पाया। लोहण्डीगुड़ा और धुरली इलाकों की बहादुर जनता ने संघर्ष का बिगुल बजाकर शोषक-लुटेरों के मुनाफे के लिए अपनी जमीनें सौंपने से इनकार कर दिया। उत्तर बस्तर क्षेत्र के चारगांव में नेको कम्पनी की तमाम कोशिशों के बावजूद भी जनता अपने पहाड़ों में लोहा खदान खोलने को राजी नहीं हुई। नारायणपुर जिले के आमदायमेट्टा और भानुप्रतापपुर के पास स्थित चारगांव में संघर्षशील जनता ने जल-जंगल-जमीन के विनाश का विरोध करते हुए खदान मालिकों को मार भगाया। रावघाट रेल लाइन और खदान परियोजना का जनता कदम-कदम पर विरोध कर रही है। राजनांदगांव जिले के पल्लामाड़ इलाके में भी कई खदान कम्पनियां अपनी खदानें शुरू नहीं कर पा रही हैं जिससे शोषक सरकारों और खदान माफिया को सैकड़ों करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है। बोधघाट परियोजना का भी जनता पुरजोर विरोध कर रही है। एक शब्द में कहें तो ढोंगी सरकारों का झूठा ‘विकास रथ’ यहां चल नहीं पा रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में सेना की तैनाती को समझना चाहिए।
भारतीय सैनिकों से अपील - जनता पर युद्ध मत करो! यहां से वापस जाओ!!
‘प्रशिक्षण’ आदि बहानों से आप लोगों को यहां लाकर लुटेरे शासक वर्ग आपको और आम जनता को गुमराह कर रहे हैं। यहां की जनता आपका दुश्मन नहीं है। बस्तर कोई शत्रु-देश नहीं है। बस्तर के साथ-साथ देश के कई ग्रामीण व वन इलाकों में जारी माओवादी संघर्ष का लक्ष्य है इस देश को साम्राज्यवादी, सामंती और दलाल नौकरशाह पूंजीवादी शोषण व उत्पीड़न से आजाद करना। देश की सच्ची और असली आजादी हासिल करना। भ्रष्टाचारियों, घोटालेबाजों, जमाखोरों, रिश्वतखोरों, दलालखोरों और डकैतों की मौजूदा व्यवस्था ही देश के असली विकास के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है, जिसमें खुद आपके उच्च अधिकारी भी शामिल हैं जो रक्षा विभाग के हर करार में घोटाले कर अरबों रुपए की काली कमाई करते हैं। इस व्यवस्था को जड़ से बदले बिना दो जून की रोटी तक को तरसने वाली देश की मेहनतकश जनता को मुक्ति नहीं मिलेगी। इसलिए आप अपनी आंखें खोलकर देखें कि आपका असल दुश्मन कौन है। देश की जनता पर, निर्धनतम आदिवासियों के सीने पर बंदूक तानने से पहले आप एक बार सोचें कि आप किन परिवारों से आए हों। देश व विदेश के कार्पोरेट गिद्धों के हितों के लिए देश की निर्धनतम जनता के खिलाफ लड़े जा रहे इस अन्यायपूर्ण युद्ध से आप खुद को अलग कर लें। अत्याचारी, आतंकी और हत्यारे पुलिस, सीआरपीएफ और कोबरा के जवान जन प्रतिरोध के चलते जिस तरह मारे जा रहे हैं, हम चाहते हैं कि आप उस तरह की मौत न मरें।
देश-दुनिया की मेहनतकश जनता, इंसाफपसंदों व अमनपसंदों से हमारी अपील
बस्तर में सेना की तैनाती का कड़ा विरोध करें। सेना के प्रशिक्षण की आड़ में बस्तर के आदिवासियों, खासकर माड़िया समुदाय के अस्तित्व को ही मिटाने वाली जमीन अधिग्रहण की परियोजनाओं का विरोध करें। बस्तर जनता के न्यायपूर्ण संघर्षों का समर्थन करें। सेना की तैनाती और ‘प्रशिक्षण’ के नाम से जमीन हड़पने की साजिशों के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ें। हर संभव तरीके से अपना विरोध व प्रतिरोध प्रकट करें। ‘भारतीय सेना, बस्तर से वापस जाओ’ का नारा बुलंद करें।
दण्डकारण्य की संघर्षशील जनता से हमारी अपील
जल-जंगल-जमीन पर अधिकार
हासिल करने के लिए
जारी आपकी लड़ाई करीब 200 साल पुरानी है। आपने अपने
गौरवमय
इतिहास
में कई विद्रोह
और संघर्ष किए। अन्याय, जुल्म, अत्याचार,
शोषण और लूटपाट
के आगे आपने
अपना सिर कभी नहीं
झुकाया।
संघर्ष
की विरोसत आपकी हर सांस
में है। बगावत का जज़्बा
आपकी हर नस
में है। शोषक शासकों
ने आपके खिलाफ
एक अन्यायपूर्ण
युद्ध थोपकर जिस प्रकार सेना को उतार
दिया है, उसका प्रतिकार
आप अपने व्यापक
व जुझारू
संघर्ष
से ही करें।
संगठित,
व्यापक,
जुझारू
प्रतिरोध
से ही हम
भारतीय
सेना के संभावित
हमलों का मुकाबला
कर सकेंगे। जन सेना
- पीएलजीए
इस प्रतिरोध की अग्रिम
पंक्ति
में रहेगी।
बस्तर क्षेत्र
में सेना की तैनाती,
सैन्य प्रशिक्षण
स्कूलों
की स्थापना और भारी
जमीन अधिग्रहण
के खिलाफ आगामी 4 से 11 जुलाई
तक मध्य रीजन
- यानी छत्तीसगढ़,
महाराष्ट्र,
आंध्रप्रदेश
और आंध्रप्रदेश-ओड़िशा बॉर्डर क्षेत्र
में ‘विरोध सप्ताह’ मनाने का पार्टी
की केन्द्रीय कमेटी के मध्य
रीजनल ब्यूरो ने देश
की जनता का
आह््वान
किया है। इसके अंतर्गत
दण्डकारण्य
क्षेत्र
में इस दौरान
सभा, सम्मेलनों,
जुलूसों,
रैलियों,
चक्काजाम
आदि विरोध कार्यक्रमों
को सफल बनाने
हेतु दण्डकारण्य
स्पेशल
जोनल कमेटी तमाम जनता और पार्टी,
पीएलजीए
व विभिन्न
जन संगठनों से अपील
करती है। पोस्टरों व बैनरों
के साथ बड़े
पैमाने
पर प्रचार कार्यक्रम
लेकर ‘भारतीय सेना वापस जाओ’ का नारा
बुलंद किया जाए।
(गुड्सा उसेण्डी)
प्रवक्ता
दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)