भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)
केन्द्रीय कमेटी
प्रेस
विज्ञप्ति
15 जून 2011
ऑपरेशन ग्रीन हंट के दूसरे चरण के तहत छत्तीसगढ़ और ओड़िशा में
प्रस्तावित नए सरकारी आक्रमण का मुकाबला करो!
देश को लूटने-खसोटने के लक्ष्य से जारी हर फासीवादी आक्रमण को
देश की स्वाभिमानी जनता अपने बहादुराना प्रतिरोध से हराकर रहेगी!
14 जून 2011 को केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के मुख्यमंत्रियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक कर इन दो राज्यों में ‘वामपंथी उग्रवाद’ का खात्मा करने के लिए एक नया आक्रमण शुरू करने की घोषणा की। हमेशा दोहराए जाने वाले अपने दोहरे मंत्र - ‘विकास और पुलिस कार्रवाई’ की आड़ में गृहमंत्री ने यह आश्वासन देते हुए कि इन दो राज्यों को बर्बर आक्रमण चलाने में पूरा समर्थन दिया जाएगा, उन्हें पूरा जोर लगाकर आगे बढ़ने को कहा। ओड़िशा के खून के प्यासे मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने, जिसके हाथ उन सैकड़ों लोगों के खून से सने हैं जो ‘विकास के भगवान’ के लिए इंसानी बलि के तौर पर चढ़ाए गए थे, अब हेलिकॉप्टरों की मांग की है ताकि बेचारे आदिवासियों पर बमबारी की जा सके। रमनसिंह जो संभवतः इतिहास में एक ऐसे भगवा फासीवादी के रूप में दर्ज हो जाएगा जिसने दुनिया के प्रचीनतम मानव समुदायों में से एक बस्तर के आदिवासियों के लिए मौत की घंटियां बजा दीं, ने अपने राज्य में बढ़ रहे बहादुराना सशस्त्र प्रतिरोध से बने दबाव को धुंधलाते हुए माओवादियों के सफाए को लेकर ऊंचे-ऊंचे दावे किए। कुछ दिन पहले जून महीने के पहले सप्ताह में (प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के नेतृत्व में हुई ‘माओवाद-प्रभावित’ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक और बैठक के बाद एक सप्ताह के अंदर ही) आंध्रप्रदेश और ओड़िशा की सरकारों ने माओवादियों का सफाया करने की मंशा से एक बड़ा अभियान चलाने की घोषणा की जिसके बारे में यह बताया गया कि वह तीन माह तक चलेगा। उन्होंने घोषणा की कि वे आधुनिक तकनीक और नए तरीकों व दावपेंचों का इस्तेमाल करेंगे जिसके तहत माओवादियों पर ‘पानी, हवा और जमीन’ से वार किया जाएगा। हेलिकॉप्टरों का भी इस्तेमाल करने की संभावना जताई। और अब यह जगजाहिर है कि छत्तीसगढ़ में ‘प्रशिक्षण’ के बहाने सेना को उतारा जा चुका है।
यह घोषणा उस समय की जा रही है जिसके कुछ ही दिन पहले सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) ने बस्तर (छत्तीसगढ़) क्षेत्र में मौजूद रावघाट खदानों के निजीकरण की घोषणा की। और यह उस समय की जा रही है जबकि ओड़िशा की जनता ने पोस्को द्वारा किए जा रहे जमीन अधिग्रहण के खिलाफ जबर्दस्त प्रतिरोध खड़ा किया हुआ है, जहां ‘भारत का सबसे बड़ा विदेशी पूंजीनिवेश’ किया जा रहा है (जो दरअसल ‘इतिहास में भारत के प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने की सबसे बड़ी कोशिश’ है।) और यह घोषणा ऐसे वक्त की जा रही है जिसके चंद दिन पहले हमारी पीएलजीए (जन मुक्ति गुरिल्ला सेना) द्वारा छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के उन इलाकों में जो दण्डकारण्य में आते हैं, लगातार हमलों का सिलसिला छेड़ा गया था। शासक वर्गों ने इन राज्यों की सीमाओं पर अपने हमले को केन्द्रित किया है ताकि उनकी लूटखसोट के लिए कोई सीमा न रह सके तथा अपनी लूटखसोट का दायरा निर्बाध रूप से बढ़ाया जा सके। (उदाहरण के लिए पूर्व में जैसा ओड़िशा और झारखण्ड के बीच; पश्चिम बंगाल और झारखण्ड के बीच; छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के बीच; और छत्तीसगढ़-आंध्रप्रदेश-महाराष्ट्र के बीच चलाया गया था।) अब साफ जाहिर है कि काज और कारण के बीच क्या सम्बन्ध है।
दरअसल सच्चाई यह है कि यह घोषणा इस पृष्ठभूमि में की गई है कि भारत की समूची जनता ने - उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक, खासकर मध्य भारत में - दलाल शासक वर्गों के ‘विकास के नमूने’ को सिरे से खारिज कर दिया है। बिहार, झारखण्ड, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और पूवोत्तर क्षेत्र समेत समूचे देश में करीब-करीब हर उस परियोजना के खिलाफ जो देश को बेच डालने और लूटने-खसोटने की लिए लाई गई हो, बढ़ रहा प्रतिरोध इसका ऐसा स्पष्ट उदाहरण है जिसे सिर्फ वो लोग देख नहीं पाते हैं जिन्होंने अपनी आंखों पर ‘विकास’ का दृष्टिहीन चश्मा पहन रखा हो। और हवा में तैर रहे ‘जल-जंगल-जमीन पर अधिकार हमारा है’ और ‘ढोंगी विकास की योजनाओं को बंद करो’ के नारे सिर्फ वो लोग सुन नहीं पाते हैं जिनके कानों में ‘पुलिस कार्रवाई’ के ध्वनिरोधक प्लग लगे हों।
दरअसल अपने
देश को गिद्ध जैसे
बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों और बड़े
दलाल पूंजीपतियों
से बचाने के लिए
देश के निर्धनतम
लोगों द्वारा जारी
तमाम किस्म के
प्रतिरोधी संघर्षों
- हिंसात्मक और
अहिंसात्मक; जुझारू
और शांतिपूर्ण;
सशस्त्र और निःशस्त्र
संघर्षों - पर देश
का हर देशभक्त
इंसान गर्व करेगा।
और न सिर्फ अपने
बाल-बच्चों के
लिए, बल्कि देश
के हर नागरिक को
इज्जत से जीने
का अधिकार हासिल
करने के लिए उनके
द्वारा दी जा रही
कुरबानियों को
तहेदिल से नमन
करेगा। लेकिन भारत
के शासक वर्ग इसे
उलटा देख रहे हैं।
इन प्रतिरोधी संघर्षों
को लेकर वे बौखलाए
हुए हैं, सहमे हुए
हैं, घिरे हुए महसूस
कर रहे हैं और गले
तक गुस्साए हुए
हैं क्योंकि इससे
उन्हें उन ‘वायदों’
को पूरा करने में
दिक्कत आ रही है
जो उन्होंने अपने
साम्राज्यवादी
आकाओं और अपने
वर्ग से कर रखे
हैं कि वे देश की
तमाम सम्पदाओं
को चने-मुर्रे
के भाव में बेच
डालेंगे। उनके
आका अब उनके सीने
पर बैठकर उनसे
‘विकास का रास्ता
सुगम बनाने’ के
नाम पर पेट फटते
तक खाई हुई दलाली
के बदले ‘नतीजे
दिखाने’ का दबाव
डाल रहे हैं। यही
वजह है कि वे इन
प्रतिरोधी संघर्षों
को कुचलने की हताशा
भरी कोशिशों के
तहत नए-नए अभियान
छेड़ते जा रहे हैं।
सबसे पहले हमें उनके इन सफेद झूठों से धोखा नहीं खाना चाहिए कि ये आक्रमण अभियान सिर्फ माओवादियों को कुचलने के लिए चलाए जा रहे हैं। हमें यह समझना चाहिए कि दरअसल ये आक्रमण इन इलाकों के तमाम किसानों, आदिवासियों और मजूदूरों को; महिलाओं, बच्चों, पुरुषों और बूढ़ों को; जनवादियों, देशभक्तों और क्रांतिकारियों को; एक शब्द में कहें तो देश के उन तमाम नागरिकों को जिनका इस देश के संसाधनों पर वाजिब हक है, कुचलने के लिए चलाए जा रहे हैं। इसलिए हमें एक व्यक्ति बनकर समवेत स्वर में आवाज उठानी चाहिए ताकि अपने प्यारे देश को बेच डालने की उनकी तमाम साजिशों को हरा दिया जा सके।
हमें सरकारों
से सवाल करने हैं
कि - जनता द्वारा
खारिज किए गए ‘विकास
के नमूने’ को उन्हीं
के नाम पर अमल करने
का अधिकार उन्हें
आखिर किसने दिया
है? देश की जनता
की गाढ़ी कमाई को
खर्च कर पुलिस
कार्रवाइयों और
सैन्य अभियानों
में खुद के नागरिकों
को मार डालने का
अधिकार उन्हें
आखिर किसने दिया
है? लाखों सशस्त्र
बलों को बलि के
बकरे बनाकर ऐसे
युद्ध में झोंकने
का अधिकार उन्हें
किसने दिया है
जो उनके हित में
या उनकी जिंदगी
को बेहतर बनाने
के लिए कतई नहीं
लड़ा जा रहा हो, बल्कि
साम्राज्यवादियों,
दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों
और सामंतों के
हितों में लड़ा
जा रहा हो? सबसे
अहम, अपनी आजीविका
और अस्तित्व को
बचाने के लिए संघर्षरत
जनता पर नरसंहार,
आगजनी, लूटपाट,
बलात्कार, फर्जी
मुठभेड़ें, हिरासती
हत्याएं आदि कुकृत्य
करने का अधिकार
इन सरकारों को
कहां से मिला है?
माओवादी संघर्ष वाले इलाकों में, खासकर छत्तीसगढ़ में हाल के दिनों में एक के बाद एक लगातार हुए हमलों के चलते सरकारी सशस्त्र बलों के गिरते मनोबल को ऊपर उठाने के लिए गृहमंत्री ने कहा कि उनके बल माओवादियों का बहादुरी से मुकाबला कर रहे हैं और इस साल 125 मुठभेड़ों में कुल 78 माओवादियों को मार गिराया। हम देश और दुनिया की जनता का इस ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं कि ये आंकड़े सच्चाई को बयां नहीं करते, बल्कि सच यह है कि सैकड़ों निहत्थे लोगों को (चाहे वे क्रांतिकारी आंदोलन के समर्थक या कार्यकर्ता हों या न हों) सरकारी सशस्त्र बलों ने ठण्डे दिमाग से फर्जी मुठभेड़ों में मार डाला। ‘माओवादी’ महज एक बहाना बना है जिसका ठप्पा लगाकर जनता के जायज संघर्षों को दबाया जा रहा है जिनमें न सिर्फ वो संघर्ष शामिल हैं जिनका नेतृत्व माओवादी कर रहे हैं और जिनमें सिर्फ वही संघर्ष शामिल नहीं हैं जिनका माओवादी नेतृत्व कर रहे हैं।
गैंग्स्टर मुख्यमंत्रियों और डाकू पुलिस महा निदेशकों (डीजीपी) की हर बैठक में आंध्रप्रदेश सरकार की पीठ यह कहकर थपथपाई जाती है कि उसने अपने राज्य में माओवादी आंदोलन को सुचारू रूप से कुचल दिया। सच्चाई यह है कि इस ‘उपलब्धि’ को हासिल करने के लिए उन्होंने लगातार चार दशकों तक फासीवादी हमले कर क्रांतिकारियों, जनता और खासकर तेलंगाना के लोगों का काफी खून बहाया। अब यह उकसाया जा रहा है कि हर राज्य इसी फासीवादी नमूने पर अमल करे। आंध्रप्रदेश के ग्रेहाउण्ड्स के बल ओड़िशा और छत्तीसगढ़ की सीमाओं में खुलेआम घुसपैठ करते हैं ताकि माओवादियों और सीमावर्ती इलाकों की आदिवासी बस्तियों पर हमले किए जा सके। देश के किसी भी हिस्से में हुई माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी और प्रत्येक फर्जी मुठभेड़ के पीछे एपीएसआईबी का हाथ है। इसलिए केन्द्र सरकार के पूर्ण समर्थन से एओबी में आंध्रप्रदेश और ओड़िशा सरकारों द्वारा तालमेल के साथ तीन माह तक चलने वाले इस भारी आक्रमण को हम अगर मजबूत प्रतिरोध के जरिए रोकने की कोशिश नहीं करेंगे तो इतिहास में एक बेहद खूनी अध्याय शुरू होने का खतरा है। सलवा जुडूम, शांति सेना तथा सशस्त्र बलों के कई किस्म के अत्याचारों के लिए बदनाम छत्तीसगढ़ और ओड़िशा में यह हमला बेहद बर्बर तरीके से चलेगा क्योंकि साम्राज्यवाद-परस्त सरकारी नीतियों के खिलाफ इन राज्यों में मजबूत सशस्त्र और निःशस्त्र जन प्रतिरोध जारी है। केन्द्र सरकार ने अब इन दो राज्यों पर आक्रमण को केन्द्रित करते हुए आंध्र के सीमावर्ती इलाकों को भी इसमें जोड़ दिया। इस व्यापक इलाके में प्रतिरोध को दबाकर वे फिर दूसरे इलाकों की ओर निकल पड़ेंगे। इसका यह मतलब नहीं है कि झारखण्ड या पश्चिम बंगाल में हमले रुकने वाले हैं। इसका यही मतलब है कि देशव्यापी युद्ध के अंतर्गत अब इस इलाके पर फोकस रहेगा।
अपनी जिंदगी के लिए और अस्तित्व के लिए संघर्षरत भारत के लोगों के प्रति देश की तमाम जनता और विश्व जनता की ओर से हमेशा समर्थन मिला है, मिल रहा है। देश के शासक वर्गों द्वारा किए जा रहे इन फासीवादी आक्रमणों के संदर्भ में उनका समर्थन बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए, हम देश-दुनिया की तमाम सच्ची जनवादी ताकतों से अपील करते हैं कि वे भारत के शासक वर्गों की साजिशों का पर्दाफाश कर, उसके खिलाफ हर संभव तरीके से संघर्ष छेड़ें। हमारी अपील है कि वे संघर्ष के क्षेत्रों में सेना की तैनाती को रोकने और तमाम आर्थिक, राजनीतिक, सैनिक व मनोवैज्ञानिक हमलों को रोकने की मांग के साथ आंदोलनों का निर्माण करें।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केन्द्रीय कमेटी छत्तीसगढ़-ओड़िशा, आंध्रप्रदेश-ओड़िशा और छत्तीसगढ़-आंध्रप्रदेश की सीमावर्ती इलाकों की तमाम लड़ाकू जनता का आह्वान करती है कि वे इस नए फासीवादी हमले का बहादुरी के साथ मुकाबला करें। समूची पार्टी और पीएलजीए बलों को चाहिए कि वे इस व्यापक इलाके में जनता की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए सभी मोर्चों में दुश्मन के इस हमले का प्रतिरोध करें तथा सशस्त्र प्रतिरोध को तेज करें।
« छत्तीसगढ़-ओड़िशा, ओड़िशा-आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़-आंध्रप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में प्रस्तावित नए फासीवादी आक्रमण को फौरन रोक दिया जाए!
« ऑपरेशन ग्रीन हंट को तत्काल बंद किया जाए!
« पोस्को, रावघाट रेल लाइन और खदानों के लिए हो रहे जमीन अधिग्रहण को रोका जाए!
« पोस्को परियोजना के खिलाफ आंदोलनरत जनता पर चलाए जा रहे सरकारी दमनचक्र का विरोध करो!
(अभय)
प्रवक्ता
केन्द्रीय कमेटी
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)