भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)

दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी

प्रेस विज्ञप्ति

10 जून 2011

रमन सरकार के फासीवादी शासन और पाशविक दमन

का जवाब है पीएलजीए के हालिया हमले!

ऑपरेशन ग्रीन हंट को फौरन बंद करो!

बस्तर में सेना की तैनाती और प्रशिक्षण स्कूल के नाम से प्रस्तावित

भारी-भरकम जमीन अधिग्रहण का विरोध करो!

दण्डकारण्य में मई महीने से लेकर लगातार जारी पीएलजीए के कार्यनीतिक जवाबी हमलों से लुटेरे शासक वर्ग तिलमिलाए हुए हैं। उनके सुर में सुर मिलाने वाले कॉर्पोरेट मीडिया के प्रतिनिधि भी खूब हाय-तौबा मचा रहे हैं। ‘माओवादियों के हमलों में अचानक तेजी आई’ बताते हुए गहरी चिंता में डूबे हुए हैं! प्रकाश सिंह, अर्णाब गोस्वामी, शेखर गुप्ता, चंदन मित्रा, पी.वी. रमणा जैसे तमाम दलाल बुद्धिजीवियों को टीवी चैनलों में चीखते-चिल्लाते हुए देख सकते हैं। कोई कह रहा है कि सरकार के पास माओवादियों से निपटने की कोई कारगर नीति नहीं है तो कोई और कहता है कि सरकार के पास इच्छाशक्ति ही नहीं है। लेकिन, स्वभावतः, इनमें से कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि सरकारों की दमनकारी नीतियों का ही यह तार्किक परिणाम है।

लेकिन दूसरी तरफ... दण्डकारण्य के लोग पीएलजीए के इन जवाबी हमलों का तहेदिल से स्वागत कर रहे हैं। खासकर वे लोग, पिछले करीब दो सालों से जारी ऑपरेशन ग्रीन हंट में सरकारी सशस्त्र बलों के हाथों जिनका घर जलाया गया, जिनके परिजन मारे गए, जिनका सब कुछ लूटा गया, जिनकी मां-बहनों के साथ अपमान हुआ, जिनके बच्चों को पुलिसिया बर्बरता का शिकार होना पड़ा, जिनके प्रिय जन जेल की काल कोठरियों में कैद है, ऐसे तमाम लोग इन जवाबी हमलों पर अपनी खुशी जाहिर कर रहे हैं।

पिछले महीने की 17 तारीख को रात में दंतेवाड़ा जिले के बोड़गुडेम के पास हमारे एक दस्ते ने सीआरपीएफ के एक वाहन को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया जिसमें कुल 7 भाड़े के जवान मारे गए और एक घायल हुआ।

19 मई को गड़चिरोली (महाराष्ट्र) जिले के नारगोण्डा के पास हमारी पीएलजीए ने एक शौर्यपूर्ण हमले में चिन्ना वेंटा नामक एक खूंखार जानवर (सी-60 कमाण्डो दस्ते का कमाण्डर) को मार गिराया। हालांकि उस हमले में हमारे दो जांबाज कॉमरेडों को अपनी जान कुरबान करनी पड़ी। चिन्ना वेंटा आतंक का पर्याय था और गड़चिरोली जिले में शायद ही कोई गांव या कोई परिवार बचा होगा जो उसके अत्याचार का शिकार न हुआ हो। मारपीट से लेकर महिलाओं के साथ बलात्कार, फर्जी मुठभेड़, लूटपाट, पैसाखोरी उसके लिए रोजमर्रे के काम थे। उसकी मौत की खबर सुनते ही पूरे जिले में त्यौहार का माहौल निर्मित हो गया।

23 मई को - महान नक्सलबाड़ी विद्रोह 44वीं वर्षगांठ के दिन - रायपुर जिले (गरियाबंद पुलिस जिले) के एएसपी राजेश पवार समेत 9 पुलिसवालों का हमारी पीएलजीए ने ओड़िशा की सीमा के अंदर एक और सफल कारनामे में मार डाला। और उनके सारे अत्याधुनिक हथियार छीन लिए। यह एएसपी आदिवासी युवकों को बहला-फुसलाकर और प्रलोभन देकर मुखबिर बनाता था और उनसे मिली सूचनाओं के आधार पर हमले कर क्रांतिकारी आंदोलन को नुकसान पहुंचाना इसका षड़यंत्र था। न्यायपूर्ण आंदोलन के खिलाफ हमले और साजिशें रचने वालों को जनता कभी माफ नहीं करेगी।

कल, 9 जून को सुबह के सात बजे पीएलजीए के लाल योद्धाआंे ने नारायणपुर जिले के झाराघाटी स्थित सीएएफ (छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल) के कैम्प के नजदीक पुलिस की एक टुकड़ी पर धावा बोला जिसमें पांच जवानों की मौत हुई। उनके दो हथियार छीन लिए गए। गौरतलब है कि यह कैम्प ऑपरेशन ग्रीन हंट के दूसरे चरण के तहत अभी-अभी लगाया गया था। और कल रात में ही दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण के पास हमारे लाल योद्धाओं ने बारूदी सुरंग का विस्फोट कर पुलिस की एक गाड़ी को उड़ा दिया जिसमें 7 एसपीओ समेत कुल 10 पुलिस जवान मारे गए और 3 बुरी तरह घायल हो गए। कुछ हथियार छीन लिए गए।

इसके अलावा भी पिछले दिनों छिंदगढ़, तोंगपाल, बांदे और गुडसे आदि जगहों पर छोटी व मध्यम कार्रवाइयों को अंजाम देकर पीएलजीए ने कुछ आतंकी एसपीओ और पुलिस वालों को मौत के घाट उतार दिया।

क्यों हो रहे हैं ये जवाबी हमले?

दरअसल सोनिया-मनमोहनसिंह-चिदम्बरम गिरोह तथा रमनसिंह, शेखरदत्त आदि शोषक शासक ही इन हमलों के लिए जिम्मेदार हैं जिन्होंने देश की जनता के खिलाफ एक अन्यायपूर्ण युद्ध - ऑपरेशन ग्रीन हंट - छेड़ दिया है जिसका अब दूसरा चरण बताया जा रहा है। अविभाजित बस्तर क्षेत्र में इसके तहत पुलिस, अर्धसैनिक, एसटीएफ, कोबरा, एसपीओ और कोया कमाण्डो के अत्याचार और जुल्म बेहद बढ़ाए गए हैं। इसका एक ताजा उदाहरण है चिंतलनार इलाके के चार गांवों - मोरपल्ली, तिम्मापुरम, पुलानपाड़ और ताड़िमेट्ला में सरकारी सशस्त्र बलों द्वारा मचाया गया आतंक। 11 से 16 मार्च तक हुई उस बर्बर कार्रवाई में करीब 300 घरों को जला दिया गया; तीन ग्रामीणों की हत्या की गई; छह महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया; दो लोगों को लापता कर दिया गया; हजारों क्विंटल अनाज जला दिया गया। इस पूरे विध्वंस का सही आकलन करना नामुमकिन है।

19 अप्रैल को नारायणपुर जिले के ग्राम चिनारी में चौदह साल के एक किशोर रजनू सलाम को पुलिस व पैरामिलिटरी बलों ने गोली मार दी और मुठभेड़ की घोषणा की। इसके पहले 23 मार्च को नारायणपुर जिले के ही कुल्लेनार में एक मुठभेड़ के बाद पीएलजीए के दो कॉमरेडों - रमेश और प्रभाकर को जिंदा पकड़कर यातनाएं देने के बाद हत्या कर दी। दक्षिण बस्तर के बेल्लमनेंड्रा और विमलागूडेम गांवों पर सरकारी बलों ने कहर बरपाया। राजनांदगांव, कांकेर से लेकर दंतेवाड़ा तक आदिवासियों को सैकड़ों की संख्या में गिरफ्तार कर यातनाएं दी जा रही हैं और झूठे मुकदमों में फंसाकर जेलों में ठूंसा जा रहा है। एक शब्द में कहें तो दण्डकारण्य में सरकारी बलों के जुल्म और आतंक लगातार जारी हैं। हालिया जवाबी हमलों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए।

दरअसल ऑपरेशन ग्रीन हंट का मकसद ही यह है कि देश के कई हिस्सों में, खासकर आदिवासी इलाकों में जारी माओवादी आंदोलन का सफाया करना और इन इलाकों को बड़े व विदेशी पूंजीपतियों की लूटखसोट के चारागाह में बदलना। खासकर झारखण्ड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, आंध्रप्रदेश और पश्चिम बंगाल के वन क्षेत्रों में सरकारों ने कॉर्पोरेट कम्पनियों के साथ सैकड़ों एमओयू कर रखे हैं। अभी-अभी सरकार ने रावघाट खदानों के निजीकरण की घोषणा कर विदेशी पूंजीपतियों को न्यौता दिया है। चूंकि इस राह में माओवादी आंदोलन ही सबसे बड़ी बाधा के रूप में खड़ा है, इसीलिए इस आंदोलन को खत्म करने के लिए यह युद्ध चलाया जा रहा है। अब इसमें सेना के उतारने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। हालांकि सेना को ‘प्रशिक्षण’ के नाम से लाया जा रहा है, लेकिन छोटे बच्चों को भी यह पता है जनता के जायज आंदोलनों को कुचलने के लिए ही सेना को उतारा जा रहा है।

छत्तीसगढ़ की भाजपाई रमन सरकार एक ओर संघर्षरत जनता पर भारी दमन चलाते हुए ही दूसरी ओर इसके खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबा रही है। सरकारी बलों के अत्याचारों और सलवा जुडूम के आतंक के खिलाफ आवाज उठाने के कारण ही रमन सरकार ने मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. बिनायक सेन को राजद्रोह के मामले में फंसाकर आजीवन कारावास की सजा दी। इसी कारण से हिमांशु कुमार द्वारा संचालित वनवासी चेतना आश्रम को ढहाकर, हिमांशु को बस्तर से ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ से ही खदेड़ दिया। ऑपरेशन ग्रीन हंट के तहत हो रहे आदिवासियों के नरसंहारों की जांच के लिए बाहर से आए हर दल को रोका गया। यहां तक कि एक महिला टीम को भी बुरी तरह प्रताड़ित कर लौटाया गया गया। अभी-अभी चिंतलनार इलाके में सरकारी आतंक का शिकार हुए ग्रामीणों से मिलने के लिए जा रहे स्वामी अग्निवेश के साथ मारपीट कर भगाया गया। और गृहमंत्री ननकीराम ने यह घोषणा की कि उनकी सरकार न सिर्फ पीयूसीएल पर प्रतिबंध लगाने जा रही है, बल्कि स्वामी अग्निवेश पर बस्तर आने पर पाबंदी लगाएगी। यहां चल रहे ‘पुलिसिया राज’ को समझने के लिए एक उदाहरण काफी है कि दंतेवाड़ा के एसएसपी रहे कल्लूरी ने माओवादी बताकर एक ग्रामीण की हत्या करने पर कोया कमाण्डो के कमाण्डर को बाकायदा एक प्रेस कॉन्फरेन्स आयोजित कर एक लाख रुपए का इनाम दिया था। और उसने यह कहकर सबको चौंका दिया था कि हर माओवादी की मौत पर वह इसी तरह इनाम देता रहेगा और उसने शपथ ली कि कम से कम 12 माओवादियों को जब तक मारा नहीं जाएगा तब तक वह नमक नहीं खाएगा!!

यहां पुलिस जो कहती है वही कानून है। यहां गृहमंत्री या मुख्यमंत्री जो कहता है वही संविधान है। ‘लोकतंत्र’ एक भद्दा मजाक बनकर रह गया यहां। पेसा कानून, 5वीं अनुसूची आदि की धज्जियां उड़ाई जाती हैं हर दिन यहां। इन्हीं हालात में जनता को आत्मरक्षा के लिए प्रतिरोध के कदम उठाने पड़ रहे हैं।

पुलिस, अर्धसैनिक बलों और एसपीओ से हमारी अपील है कि आप हमारे दुश्मन नहीं है। यह लड़ाई आपके खिलाफ नहीं है। शोषक-लुटेरों ने आपके जरिए जनता के खिलाफ यह अन्यायपूर्ण युद्ध छेेड़ दिया है। इसलिए आप जनता के खिलाफ हमलों और आतंकी कार्रवाइयों में भाग न लें। देश के असल दुश्मनों को पहचानें जो भ्रष्टाचारी, घोटालेबाज, लूटखोर व दलाल शासक खुद हैं।

भारत की कम्युनिस्ट पाटी (माओवादी) की दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी देश की समूची मेहनतकश जनता और जनवादपसंदों से आग्रह करती है कि वे -

«     ऑपरेशन ग्रीन हंट को फौरन बंद करने की मांग करें!

«     बस्तर में सेना की तैनाती और प्रशिक्षण के नाम से 750 वर्ग किलोमीटर जमीन देने के सरकारी प्रस्तावों को वापस लेने की मांग करें!

«     चिंतलनार इलाके में जनता पर किए गए अत्याचारों, गांव-दहन और हत्याओं के लिए जिम्मेदार एसएसपी कल्लूरी, आईजी लांगकुमेर, डीजीपी विश्वरंजन समेत तमाम पुलिस अधिकारियों व कोया-कोबरा कमाण्डों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग करें!

«     जेलों में बंद तमाम आदिवासियों को बिना शर्त रिहा करने की मांग करें!

 

(गुड्सा उसेण्डी)

प्रवक्ता

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